Holi 2020: रंगों से नहीं चिता की राख से खेलते हैं यहां होली, पूरी दुनिया में मशहूर है वर्षों पुरानी ये परंपरा

By विनीत कुमार | Published: March 5, 2020 09:54 AM2020-03-05T09:54:35+5:302020-03-05T09:58:51+5:30

Holi 2020: काशी के मणिकर्णिका घाट पर चिता के भस्म से होली खेलने की परंपरा कई साल पुरानी है। माता गौरी की विदाई के अगले दिन ये होली खेली जाती है।

Varanasi Masane ki Holi at Manikarnika ghat kashi where Holi played with ashes | Holi 2020: रंगों से नहीं चिता की राख से खेलते हैं यहां होली, पूरी दुनिया में मशहूर है वर्षों पुरानी ये परंपरा

मणिकर्णिका घाट पर चिता की राख से खेलते हैं होली (फाइल फोटो)

Highlightsकाशी के मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म से होली खेलने की परंपरामाता गौरी के गौना के बाद अगले दिन खेली जाती है ये होली, मसाने की होली के नाम से प्रख्यात

Holi 2020:होली का त्योहार देश भर में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। वैसे इसका सबसे खास हिस्सा रंग हैं। होली कैसी भी हो, रंगों का महत्व इसमें हमेशा से रहा है।

वैसे क्या आप जानते हैं एक जगह ऐसी भी है जहां रंगों से नहीं बल्कि चिता के राख से होली खेलने की परंपरा है। यह परंपरा सालों पुरानी है और अब भी इसे उसी उत्साह और उमंग के साथ निभाया जाता है। ये होली फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के अगले दिन खेली जाती है।

Holi: मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म की होली

काशी के बाबा विश्वनाथ मंदिर में चिता की राख से होली खेलने की परंपरा रही है। दरअसल, ऐसी मान्यता है कि फाल्गुन के शुक्ल एकादशी को भगवान शिव गौरी माता को विदा कराकर लाते हैं। इसी की खुशी में अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म की होली खेली जाती है।

पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि भगवान शिव के विवाह के कार्यक्रम बसंत पंचमी से शुरू होते हैं। बसंत पंचमी के दिन उनका तिलोकत्सव हुआ था। इसके बाद महाशिवरात्रि पर विवाह हुआ और फिर शुक्ल एकादशी पर विदाई हुई। 

शुक्ल एकादशी को ही रंगभरनी एकादशी भी कहा गया है। इस दिन माता गौरी की विदाई हुई थी। इस बार ये 6 मार्च को है। मान्यता है कि विदाई के अगले दिन बाबा विश्वनाथ अपने अड़भंगी बारातियों के साथ महाश्मशान पर दिगंबर रूप में होली खेलते हैं। दुनिया भर में ये मसाने की होली के नाम से प्रचलित है। 

कैसे खेली जाती है मसाने की होली

इस होली को खेलने के लिए भक्त चिता की भस्म के साथ अबीर और गुलाल लेकर बड़ी संख्या में उमड़ते हैं। एक ओर चिता जल रही होती है, तो वहीं दूसरी ओर भक्त चिता की राख लिए उससे होली खेलते हैं। साथ ही हर हर महादेव का जयकारा भी लगता रहता है।

काशी में इस मसाने की होली की परंपरा कई साल पुरानी है। जानकार बताते हैं कि 300 से भी ज्यादा सालों से लगातार ये होली खेली जाती रही है। बीच में हालांकि, ये कुछ वर्षों के लिए बंद भी हुआ था लेकिन पिछले करीब 30 सालों से ये लगातार अभी जारी है।

Web Title: Varanasi Masane ki Holi at Manikarnika ghat kashi where Holi played with ashes

पूजा पाठ से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे