गृहस्थ जीवन में फंस चुके थे तुलसीदास, पत्नी की एक फटकार ने बनाया 'गोस्वामी'

By गुलनीत कौर | Updated: August 17, 2018 09:23 IST2018-08-17T09:23:46+5:302018-08-17T09:23:46+5:30

जन्म के समय ज्योतिषी ने कहा कि यह बालक अनिष्टप्रद है, जिसकी वजह से इनकी माता ने इसे अपनी दासी को पालन-पोषण के लिए सौंप दिया।

Tulsidas Jayanti special: Life story of goswami tulsidas | गृहस्थ जीवन में फंस चुके थे तुलसीदास, पत्नी की एक फटकार ने बनाया 'गोस्वामी'

गृहस्थ जीवन में फंस चुके थे तुलसीदास, पत्नी की एक फटकार ने बनाया 'गोस्वामी'

सावन के महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्मदिवस माना जाता है। हिन्दू धर्म में यह दिन तुलसीदास जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस साल तुलसीदास जयंती 17 अगस्त को है। देशभर में, विशेष तौर से उत्तर प्रदेश, जो कि उनका जन्म स्थल है, यहां ये दिन धूमधाम से मनाया जाता है। कई धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

तुलसीदास जी के जीवन की कहानी बेहद दिलचस्प है। जन्म के समय ज्योतिषी ने कहा कि यह बालक अनिष्टप्रद है, जिसकी वजह से इनकी माता ने इसे अपनी दासी को पालन-पोषण के लिए सौंप दिया। लेकिन खुद दूसरे ही दिन मां का निधन हो गया। दासी ने पूरी जिम्मेदारी से इनका लालन-पोषण किया किन्तु जब ये साढ़े पांच वर्ष के हुए तब दासी भी संसार छोड़कर चली गई। वे अनाथ होकर इधर-उधर भटकने लगे।

तब स्वामी नरहर्यानंद जी ने इन्हें आसरा दिया और अपने साथ अयोध्या ले गए। तुलसीदास अपने गुरु जी की हर बात मानते और धर्म के मार्ग पर चले हुए बड़े हो गए। उनका विवाह भारद्वाज गोत्र की सुंदरी कन्या रत्नावली से हुआ। पत्नी की अत्यंत सुंदरता से प्रभावित होकर तुलसीदास अपने जीवन का लक्ष्य भूलने लगे। उन्हें पत्नी से एक क्षण की दूरी भी बर्दाश्त ना होती। इस बात से परेशान होकर उनकी पत्नी अपनी मायके चली गए।

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उस समय तुलसीदास कहीं बाहर गए हुए थे। घर लौटकर जैसे ही उन्हने मालूम हुआ कि उनकी पत्नी पीहर चली गयी है तो वे उसी क्षण अपने ससुराल के लिए निकल गए। तुलसीदास को देखकर उनकी पत्नी अत्यंत क्रोधित हो उठी और उन्हें समझाया कि तुम विवाह के कारण अपने जीवन का लक्ष्य गवा बैठे हो। तुम क्या थे और क्या बन गए हो। धर्म ही तुम्हारा मार्ग है और यही तुम्हें जीवन में सफल ही बनाएगा। 

पत्नी की यह बात सुन तुलसीदास की आंखें खुल गयी। वे चुपचाप वहां से निकल आए। उन्होंने अकहिर्कार फैसला किया कि वे धर्म के मार्ग पर चलेंगे और भगवान राम को पाकर ही रहेंगे। वहां से वे सीधा प्रयाग आए और यहां अपनी समाधि लगाई। 

Web Title: Tulsidas Jayanti special: Life story of goswami tulsidas

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