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स्वामी विवेकानंद के 10 अनमोल विचार, सुलझा सकते हैं जीवन की हर समस्या को

By धीरज पाल | Updated: January 12, 2018 11:14 IST

किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं।

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युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत स्वामी विवेकानंद की 12 जनवरी को 155वीं जंयती सारी दुनिया मना रही है। पूरी दुनिया उनके विचारों को आज भी लोहा मानती है। उनकी सोच उनके पूरे व्यक्तित्व को दर्शाती है। ज्ञान-विज्ञान की बात हो या इंसानियत की बात हो, उनके विचार हर स्थिति में फिट बैठते हैं। न जाने आज कितने शोधार्थी उनके विचारों पर शोध करते हैं कि आखिर इतनी कम उम्र में इतने बड़े-बड़े विचार कैसे दे गए स्वामी जी। विद्यालय, संग्रहालय, पुस्तकालय, जैसी कई जगहों पर आपको कुछ देखने को मिले या न मिले लेकिन स्वामी विवेकानंद जी के विचार जरूर मिल जाते हैं। आज हम उनकी बड़ी-बड़ी बातें न करके उनके कुछ ऐसे विचार साझा करेगें जो इंसानियत पर असर डालते हैं। 

आइए जानते हैं उनकी 125वीं जयंती पर वो 10 अनमोल विचार-   

1. ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारे अंदर नीहित हैं, वो हमीं हैं जो अपनी आंखों पर हांथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है!

2. किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिए। 

3. कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है। अगर कोई पाप है, तो वो यही है, ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं।

4. अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है।

5. हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का धयान रखिये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं, विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।

6. जब तक आप खुद पे विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पे विश्वास नहीं कर सकते।

7. जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो–उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो–वे जितना शीघ्र बह जाएं उतना अच्छा ही है।

8. सभी जीवंत ईश्वर हैं–इस भाव से सब को देखो। मनुष्य का अध्ययन करो, मनुष्य ही जीवंत काव्य है। जगत में जितने ईसा या बुद्ध हुए हैं, सभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान हैं। इस ज्योति को छोड़ देने पर ये सब हमारे लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगे, मर जाएंगे। तुम अपनी आत्मा के ऊपर स्थिर रहो। 

9. जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चितंन करते हुए जगत की सहायता करते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है–अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत् को शिक्षा प्रदान करता है।

10. मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो–उससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है।

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