Shri Guru Ravidas: संत रविदास का मंदिर तोड़े जाने पर पंजाब-हरियाणा में हंगामा, 500 साल पुराना है इतिहास
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 13, 2019 10:27 AM2019-08-13T10:27:28+5:302019-08-13T10:27:28+5:30
Shri Guru Ravidas: संत रविदास का मंदिर तोड़े जाने से पंजाब में उग्र विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और अब ये चिंगारी हरियाणा भी जा पहुंची है। हरियाणा के करनाल के घरौंडा में सोमवार को रविदास समाज के लोग सड़कों पर उतर आये और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला फूंका।
दिल्ली के तुगलकाबाद रोड में करीब 500 साल पुराने संत रविदास के एक मंदिर के प्रशासन द्वारा तोड़े जाने के बाद हंगामा मचा है। पंजाब में उग्र विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और अब ये चिंगारी हरियाणा भी जा पहुंची है। हरियाणा के करनाल के घरौंडा में सोमवार को रविदास समाज के लोग सड़कों पर उतर आये और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला फूंका।
वहीं, पंजाब में गुरु रविदास जयंती समारोह समिति ने 13 अगस्त को बंद का ऐलान किया है। साथ ही 15 अगस्त को काला दिवस के रूप में मनाने की अपील की है। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग कर चुके हैं। तुगलकाबाद में संत रविदास का प्रचीन मंदिर तोड़े जाने का फैसला सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद लिया गया था।
Shri Guru Ravidas: संत रविदास कौन थे?
'मन चंगा तो कठौती में गंगा'...ये कहावत हम सभी ने सुनी है। इसकी रचना संत रविदास ने ही की थी और इसके रचे जाने के पीछे भी बहुत रोचक कहानी है। संत रविदास का जन्म माघ मास की पूर्णिमा के दिन साल 1433 में वाराणसी में हुआ था। इन्हें रैदास के नाम से भी जाना जाता है। इनके पिता का नाम राघवदास और माता का नाम करमा बाई था।
संत रविदास के पिता जूते बनाने का काम करते थे। रविदास उन्हीं के साथ रहकर उनके काम में हाथ बंटाते थे। हालांकि, रविदास का शुरू से ही मन मन साधु-संतों के साथ ज्यादा लगता था। कहते हैं इस वजह से वह जब भी किसी साधु-संत या फकीर को नंगे पैर देखते तो उससे बिना पैसे लिए ही चप्पल बनाकर दे आते। इस आदत से रविदास के पिता काफी नाराज रहते।
रविदास के पिता ने एक दिन उनकी इसी आदत से परेशान होकर गुस्से में उन्हें घर से निकाल दिया। घर से निकाले जाने के बाद रविदास ने अपनी एक छोटी से कुटिया बनाई और जूते-चप्पल बनाने और उसके मरम्मत का काम शुरू कर दिया। हालांकि, साधु-संतों की सेवा की उनकी आदत ऐसे ही बनी रही।
इस दौरान श्री गुरु रविदास समाज में उस समय जारी बुराइयों, छूआ-छूत आदि पर अपने दोहों और कविताओं के जरिए चुटीले तंज भी करते थे। रविदास के समाज के लोगों से घुलने-मिलने और उनके व्यवहार के कारण हमेशा ही उनके आसपास लोगों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया था। साथ ही उनकी लोकप्रियता भी बढ़ती जा रही थी।
Shri Guru Ravidas: 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' की कैसे हुई रचना?
इस कहावत के रचे जाने की कहानी काफी दिलचस्प है। कहते हैं कि एक बार किसी पर्व के मौके पर संत रविदास के पड़ोस के कुछ लोग गंगा स्नान के लिए जा रहे थे। रास्ते में उन्हें रविदास मिले तो उन्होंने उसे भी साथ चलने के लिए कहा। हालांकि, रविदास जी ने कहा कि उन्होंने किसी को तय समय पर जूते बनाकर देने का वादा किया है इसलिए वे नहीं जा पाएंगे। साथ ही रविदास जी ने एक मुद्रा भी उन्हें दी और कहा कि उनकी ओर से इसे मां गंगा को अर्पित कर दिया जाए।
संत रविदास के पड़ोसी ने जब वह मुद्रा अर्पित की तो उसके हाथ में सोने का एक कंगन आ गया। यह देख पड़ोसी के मन में लालच आ गया और उसने सोचा कि इसे राजा को देकर प्रसन्न किया जाए। राजा को भी कंगन बहुत पसंद आया और उसने बदले में रविदास के पड़ोसी को ढेर सारे उपहार दिये। यह कंगन जब रानी के पास पहुंचा तो उन्होंने ऐसे ही एक और कंगन की इच्छा जाहिर की।
राजा ने तत्काल यह संदेश उस पड़ोसी को भिजवा दिया। पड़ोसी यह बात सुन चिंता में पड़ गया कि आखिर दूसरा ऐसा ही कंगन कहां से मिलेगा। उसने घबराकर सारी बात संत रविदास को बता दी और माफी मांगी। इस पर संत रविदास ने उसे चिंता नहीं करने को कहा। इसके बाद रविदास ने अपनी एक कठौती में थोड़ा पानी रखा और हाथ डालकर एक दूसरा कंगन निकाल लिया। पड़ोसी ने जब यह दृश्य देखा तो मारे खुशी के उछल पड़ा और इस चमत्कार के बारे में पूछा। इस पर श्री गुरु रविदास ने कहा- 'मन चंगा तो कठौती में गंगा।' इसके मायने ये हुए कि अगर मन साफ और निश्चल हो तो कठौती में रखा जल भी गंगा जल के समान पवित्र है।
Shri Guru Ravidas: तुगलकाबाद मंदिर का क्या है इतिहास
मान्यताओं के अनुसार दिल्ली के तुगलकाबाद में स्थित संत रविदास के जिस मंदिर को तोड़ा गया है उसका इतिहास करीब 500 साल पुराना है। मान्यता है कि रविदास जब बनारस से पंजाब की ओर जा रहे थे तो इसी स्थान पर 1509 में रूक कर आराम किया था। आजाद भारत में नये सिरे से यहां मंदिर का निर्माण 1954 में कराया गया।