लाइव न्यूज़ :

Shardiya Navratri 2021: शक्ति की आराधना से होता है सात्विक प्रवृत्तियों का संवर्धन

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: October 9, 2021 07:33 IST

आज मनुष्य विचलित हो रहा है, हिंसा की प्रवृत्तियां प्रबल हो रही हैं, परस्पर अविश्वास पनप रहा है और चित्त अशांत हो रहा है। स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तरों पर जीवन मूल्यों का क्षरण भी परिलक्षित हो रहा है। ऐसे कठिन समय में जगदंबा का स्मरण, वंदन और अर्चन हमारा मार्ग प्रशस्त करेगा। साधना और समर्पण का कोई विकल्प नहीं है।

Open in App

शारदीय नवरात्रि एक अत्यंत महत्वपूर्ण भारतीय पर्व है जब शक्ति की आराधना का अवसर उपस्थित होता है। इस समय ग्रीष्म और वर्षा के संतुलन के साथ शीत ऋतु का आगमन हो रहा होता है। इसके साथ ही प्रकृति की सुषमा भी निखरती है। इस तरह के परिवर्तन के साथ प्रकृति हमारे लिए शक्ति और ऊर्जा के संचय का अवसर निर्मित करती है। यह शक्ति मूलत: आसुरी प्रवृत्तियों को वश में रखने के लिए होती है। आसुरी प्रवृत्तियां प्रबल होने से मद आ जाता है और तब प्राणी हिंसक हो उठता है। 

उचित-अनुचित का विवेक नहीं रहता और मदांध होकर उत्पात करने और दूसरों को अकारण कष्ट पहुंचाने की प्रवृत्ति बढ़ती है। ऐसी आसुरी शक्तियों से रक्षा और सात्विक प्रवृत्ति के संवर्धन के लिए शक्ति की देवी की आराधना की जाती है। वैसे तो देवी नित्यस्वरूप वाली हैं, अजन्मा हैं, समस्त जगत उन्हीं का रूप है और सारे विश्व में वह व्याप्त हैं, फिर भी उनका प्राकट्य अनेक रूपों में होता है। अनेकानेक पौराणिक कथाओं में शुभ, निशुम्भ, महिषासुर, रक्तबीज राक्षसों के उन्मूलन के लिए देवी विकराल रूप धारण करती हैं और राक्षसों के उत्पात से मुक्ति दिलाती हैं।

देवी वस्तुत: जगदंबा हैं और हम सभी उनके निकट शिशु हैं। वे मां रूप में सबकी हैं और आश्वस्त करती हैं कि निर्भय रहो। वह भक्तों के लिए सुलभ हैं। उनकी भक्ति की परंपरा में नवदुर्गा प्रसिद्ध हैं। इनमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि की परिगणना होती है परंतु देवी के और भी रूप हैं जिनमें चामुंडा, वाराही, ऐंद्री, वैष्णवी, माहेश्वरी, कुमारी, लक्ष्मी, ईश्वरी और ब्राह्मी देवी प्रमुख रूप से चर्चित हैं। ये सभी रूपों में दैत्यों के नाश, भक्तों के लिए अभय और देवताओं के कल्याण के लिए शस्त्न धारण करती हैं।

देवी कवच में प्रार्थना की गई है कि जया आगे, विजया पीछे, बायीं तरफ अजिता और दायीं ओर अपराजिता हमारी रक्षा करें। देवी कवच में ही पूरे शरीर के अंगों तथा योग-क्षेम के लिए देवी के अनेक रूपों को संकल्पित किया गया है और इनका स्मरण करते हुए निष्ठापूर्वक अपनी रक्षा के लिए शरणागत भाव से अपने को अर्पित किया गया है।

कमल के आसन पर विराजमान जगदंबा के श्री अंगों की कांति उदयकाल के सहस्रों सूर्य के समान है। वे सभी प्रकार के अस्त्न-शस्त्नों से सुसज्जित रहती हैं। वे प्राणियों की इंद्रियों की अधिष्ठात्री हैं और सबमें व्याप्त रहती हैं। चिति (चैतन्य) रूप में इस समस्त जगत में परिव्याप्त देवी चेतना, बुद्धि, निद्रा, कांति, लज्जा, शांति, श्रद्धा, वृत्ति, स्मृति, तुष्टि, दया आदि रूपों में प्रणम्य हैं।

आज मनुष्य विचलित हो रहा है, हिंसा की प्रवृत्तियां प्रबल हो रही हैं, परस्पर अविश्वास पनप रहा है और चित्त अशांत हो रहा है। स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तरों पर जीवन मूल्यों का क्षरण भी परिलक्षित हो रहा है। ऐसे कठिन समय में जगदंबा का स्मरण, वंदन और अर्चन हमारा मार्ग प्रशस्त करेगा। साधना और समर्पण का कोई विकल्प नहीं है। 

इस अवसर पर भगवान राम का स्मरण आता है जिन्होंने रावण के साथ हुए युद्ध के क्षणों में शक्ति की आराधना की थी। हिंदी के महान कवि महाप्राण निराला ने ‘राम की शक्ति पूजा’शीर्षक कविता रची थी जिसे काव्य जगत में विशेष ख्याति मिली थी। श्रीराम ने देवी दुर्गा की आराधना में 108 नील कमल अर्पित करने का निश्चय किया और अंत में एक कमल कम पड़ गया, तब श्रीराम के मन में यह भाव आया।

यह है उपाय, कह उठे राम ज्यों मंद्रित घनकहती थीं माता मुङो सदा राजीवनयन।दो नील कमल हैं शेष अभी, यह पुरश्चरणपूरा करता हूं देकर मात: एक नयन।कहकर देखा तूणीर ब्रह्मशर रहा झलकले लिया हस्त, लक-लक करता वह महाफलक।ले अस्त्र वाम पर, दक्षिण कर दक्षिण लोचनले अर्पित करने को उद्यत हो गये सुमनजिस क्षण बंध गया बेधने को दृग दृढ़ निश्चयकांपा ब्रह्माण्ड, हुआ देवी का त्वरित उदय-साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम!कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।देखा राम ने, सामने श्री दुर्गा, भास्वरवामपद असुर-स्कन्ध पर, रहा दक्षिण हरि पर।ज्योतिर्मय रूप, हस्त दश विविध अस्त्न सज्जितमन्द स्मित मुख, लख हुई विश्व की श्री लज्जित।है दक्षिण में लक्ष्मी, सरस्वती वाम भागदक्षिण गणोश, कार्तिक बायें रणरंग रागमस्तक पर शंकर! पदपद्मों पर श्रद्धाभरश्री राघव हुए प्रणत मन्द स्वर वन्दन कर।होगी जय, होगी जय, हे पुरुषोत्तम नवीनकह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।

श्रीराम में शक्ति में शक्ति का निवेश हुआ और रावण परास्त हुआ। विजयादशमी आज भी रावण दहन के साथ संपन्न होती है और सात्विक वृत्ति तथा सद्गुण की विजय की गाथा का स्मरण दिलाती है। देवी दुर्गा सकल जगत का मंगल करने वाली हैं। आवश्यकता है अपने में सात्विक गुणों के संधान की और श्रद्धा की।

टॅग्स :नवरात्रिनवरात्री महत्व
Open in App

संबंधित खबरें

भारतVIDEO: गोरखनाथ मंदिर में CM योगी ने कन्या पूजन किया, देखें वायरल वीडियो

बॉलीवुड चुस्कीVIDEO: शिल्पा शेट्टी ने पति राज कुंद्रा के साथ कन्या पूजन किया, देखें वीडियो

पूजा पाठनवरात्रि: उपनिषद में वर्णित है देवी का ब्रह्मरूप, ‘प्रज्ञान  ब्रह्मं’ ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ की गूंज

पूजा पाठShardiya Navratri 2025: नवरात्रि के बाद कलश, चावल और नारियल का ऐसे करें इस्तेमाल, जानें क्या है नियम

पूजा पाठShardiya Navratri 2025: नवरात्रि में कब करना चाहिए कन्या पूजन, क्या कहता है शास्त्र विधान

पूजा पाठ अधिक खबरें

पूजा पाठAaj Ka Rashifal 06 December 2025: आज आर्थिक पक्ष मजबूत, धन कमाने के खुलेंगे नए रास्ते, पढ़ें दैनिक राशिफल

पूजा पाठPanchang 06 December 2025: जानें आज कब से कब तक है राहुकाल और अभिजीत मुहूर्त का समय

पूजा पाठAaj Ka Rashifal 05 December 2025: आज 4 राशिवालों पर किस्मत मेहरबान, हर काम में मिलेगी कामयाबी

पूजा पाठPanchang 05 December 2025: जानें आज कब से कब तक है राहुकाल और अभिजीत मुहूर्त का समय

पूजा पाठPanchang 04 December 2025: जानें आज कब से कब तक है राहुकाल और अभिजीत मुहूर्त का समय