Shani Jayanti 2024: शनि जयंती हिंदू धर्म का प्रमुख त्योहार है। यह भगवान शनि देव का जन्मोत्सव है, जिसे धूम धाम के साथ मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, शनि जयंती प्रति वर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। हिंदू धार्मिक शास्त्रों में शनि महाराज न्याय के देवता हैं। अत: यह लोगों को उनके कर्मों (अच्छे-बुरे) के हिसाब से ही फल देते हैं। शनि जयंती या ज्येष्ठ अमावस्या के दिन शनि मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। इस दिन शनि देव का आशीर्वाद पाने के लिए भक्तों के द्वारा व्रत रखा जाता है। पवित्र नदी में स्नान किया जाता है और दान-पुण्य के कार्य किए जाते हैं।
कब है शनि जयंती 2024?
वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 05 जून शाम 07:50 पर शुरू हो रही है और इस तिथि का समापन 06 जून शाम 06:07 पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, शनि जयंती पर्व 06 जून 2024, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा और इसी दिन व्रत का पालन किया जाएगा।
शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि प्रारम्भ - 05 जून को शाम 07:50 बजेअमावस्या तिथि समाप्त - 06 जून को शाम 06:07 बजे
शनि जयंती पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।व्रत का संकल्प करें।घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।शनि देव के मंदिर जाएं।शनि देव को तेल, पुष्प अर्पित करें।शनि चालीसा का पाठ करें।शाम को विधि-विधान के साथ व्रत खोलेंइस पावन दिन पर शनि देव से जुड़ी चीजों का दान करें।
इन मंत्रों का करें जाप
ॐ शं शनैश्चराय नमःॐ प्रां प्रीं प्रौ स: शनैश्चराय नमः
शनि जयंती पर करें ये उपाय
पीपल के पेड़ के नीचे शनि देव की मूर्ति के पास तेल चढ़ाएं।चींटियों को काला तिल और गुड़ खिलाएं।चमड़े के जूते चप्पल गरीबों में दान करें।पीपल के पेड़ में केसर, चन्दन, फूल आदि अर्पित करके तेल का दीपक जलाएं।यदि नीलम धारण किया हुआ है तो इसे शनि जयंती पर उतार दें।
शनि जयंती की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, शनि महाराज सूर्य देव और छाया के पुत्र हैं। सूर्य देव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ। कुछ समय बाद उन्हें तीन संतानों के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई। इस प्रकार कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ रिश्ता निभाने की कोशिश की, लेकिन संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं। इसी वजह से संज्ञा अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में छोड़कर वहां से चली चली गईं। सूर्यलोक में छाया को सूर्य देव के तेज से कोई समस्या नहीं थी। दोनों हंसी-खुशी जीवन व्यीतीत कर रहे थे। समय बीतता गया और फिर छाया और सूर्य देव से तीन संतानों ने जन्म लिया, जिसमें शनि देव, मनु और भद्रा हैं।
कहा जाता है कि जब शनि देव मां छाया के गर्भ में थे, तो उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी, जिसके प्रभाव से शनि देव का वर्ण काला हो गया। जब शनि देव पैदा हुए, तो सूर्य देव को लगा कि काले रंग का पुत्र उनका नहीं हो सकता है। उन्होंने छाया के चरित्र पर संदेह किया। मां को अपमानित होते देखकर शनि देव क्रोध से पिता सूर्य देव की ओर देखने लगे। उनकी शक्ति से सूर्य देव काले हो गए और कुष्ठ रोग हो गया। वहां से सूर्य देव शंकर जी के शरण में गए, जहां उनको अपनी गलती पता चली। जब सूर्य देव ने क्षमा मांगी, तो फिर उनका स्वरूप पहले जैसा हो गया। इस घटना के बाद से सूर्य देव और शनि देव में रिश्ते खराब हो गए। कहते हैं दोनों के बीच शत्रुता का भाव आज तक है।