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राहुल गांधी की कैलाश यात्रा पर विवाद, पंडितजी से जानिए धार्मिक स्थलों पर क्यों नहीं खाना चाहिए नॉनवेज

By गुलनीत कौर | Updated: September 5, 2018 14:37 IST

Rahul Gandhi ate chicken in Nepal on Kailash Yatra: 31 अगस्त की सुबह राहुल कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए भारत से रवाना हुए थे और रात को नेपाल में उन्होंने डिनर किया था।

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कैलाश मानसरोवर की धार्मिक यात्रा के लिए निकले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी विवादों में हैं। मीडिया खबरों के मुताबिक कैलाश जाने के लिए राहुल नेपाल से होकर गए हैं और नेपाल में 31 अगस्त को उन्होंने एक रेस्तरां में 'चिकन' यानी नॉन-वेज खाया। राहुल एक जाने-माने नेता हैं और धार्मिक यात्रा के दौरान नास्तिक भोजन करने के उनके ऐसे काम पर राजनीति और धार्मिक, दोनों जगत में उनकी निंदा की जा रही है।

दरअसल 31 अगस्त की सुबह ही राहुल कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए भारत से रवाना हुए थे। उनके प्लान के मुताबिक वे सीधे नेपाल पहुंचे। वहां पहुँचने पर उन्होंने 'वूटू' रेस्तरां में डिनर किया। चूंकि राहुल की इस यात्रा पर सभी लोग नजरें गढ़ाए हुए हैं तो कुछ मीडियाकर्मियों ने रेस्तरां के वेटर से पूछा कि डिनर में राहुल ने क्या आर्डर किया था। पूछने पर वेटर ने बताया कि राहुल ने दो बार डिनर आर्डर किया था जिसमें उन्होंने 'चिकन कुरकुरे' भी मंगवाया था। यह एक नॉन-वेज आइटम है। 

इसके बाद से ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लोगों ने इस खबर को मुद्दा बना लिया है और लगातार राहुल गांधी की आलोचना की जा रही है। इस खबर के सत्य होने के पीछे अभी कुछ ही मीडिया संस्थानों ने पैरवी की है, लेकिन कांग्रेस पार्टी की तरफ से कोई बयान नहीं आया है। नेपाल के रेस्तरां में गए राहुल की तस्वीर भी रेस्तरां के फेसबुक पेज पर मौजूद है जो इस बात का सबूत है कि राहुल उस रेस्तरां में गए तो जरूर थे।

ये भी पढ़ें: कैलाश मानसरोवर की कठोर यात्रा से जुड़ी 10 रोचक बातें, जहां जा रहे हैं राहुल गांधी

बहरहाल सच्चाई क्या है, यह तो वक्त बताएगा। लेकिन तीर्थ यात्रा के दौरान नॉन-वेज खाने की मनाही क्यों होती है और यदि खाया जाए तो इसका धार्मिक पहलू से क्या बुरा परिणाम होता है, इस बाबत हमने ज्योतिर्विद पं दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली से बातचीत की। उन्होंने तीर्थ यात्रा के दौरान तामसिक भोजन ना खाने के पीछे दो बड़े कारण बताए हैं:

1. तीर्थ यात्रा पर जाते समय व्यक्ति एक सकारात्मक सोच लेकर जाता है। तीर्थ यात्रा हमें इस संसार की बुराईयों से दूर, सकारात्मक ऊर्जा की ओर ले जाती है। यात्रा के दौरान हमें पापों से मुक्ति मिलती है और हम भगवान से जुड़ जाते हैं। परंतु इसे दौरान यदि हम जीव हत्या करें, जीव भक्षण करें, तो हमारे तीर्थ यात्रा पर जाने का उद्देश्य समाप्त हो जाता है। हमारा भगवान से अलगाव हो जाता है। 

2. दूसरा कारण जो त्रिपाठी जी बताते हैं वह ज्योतिष शास्त्र से जुड़ा है। उनके मुताबिक तीर्थ यात्रा पर जाने से हमें सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और प्रभु की कृपा से आने वाला भविष्य सुखद बनता है। परंतु इसी यात्रा के दौरान जीव हत्या करने और मांस खाने से कुंडली में मौजूद मंगल ग्रह का व्यक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ने लगता है। जो कि उसके आने वाले भविष्य पर भारी पड़ता है।

कुल मिलाकर ये दो ऐसे कारण हैं जिसकी वजह से तीर्थ यात्रा के दौरान नॉन-वेज से परहेज करना चाहिए। एक संस्कृत की पंक्ति में कहा गया है, "अन्यत्र हिकृतं पापं तीर्थ मासाद्य नश्यति, तीर्थेषु यत्कृतं पापं वज्रलिपो भविष्यति"। अर्थात् यदि व्यक्ति जीवन में कोई पाप करता है तो तीर्थ यात्रा पर पूजा-पाठ कर उस पाप से मुक्ति पाई जा सकती है। परंतु तीर्थ यात्रा के दौरान ही यदि कोई पाप किया जाए तो जीवन भर की गयी पूजा-पाठ का फल नष्ट हो जाता है। 

यही कारण है कि तीर्थ यात्रा के दौरान सिर्फ और सिर्फ धार्मिक कार्य करने की ही सलाह दी जाती है। और ऐसा कोई भी कार्य करने की मनाही होती है जो पाप के सामान हो। 

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