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ओशो का जीवन दर्शन: भगवान किससे जल्दी प्रसन्न होते हैं? मंदिर में कचरा फेंकने वाली बुढ़िया की ये कहानी देती है बड़ी सीख

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: February 7, 2020 09:28 IST

ओशो का जीवन दर्शन: भगवान को खुश करने और उनकी कृपा हासिल करने के लिए हम इंसान क्या कुछ नहीं करते। कई बार महंगे से महंगे भेंट हम भगवान को समर्पित करते हैं। इससे क्या वाकई परमात्मा खुश होते हैं?

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ठळक मुद्देओशो ने अपनी कहानी में बताया है भगवान को प्रसन्न करने का एक आसान तरीकाभगवान केवल महंगे उपहारों और मिष्ठान से खुश नहीं होते, समर्पण भी है जरूरी

भगवान को हम खुश करने के लिए क्या-क्या नहीं करते। हर कोई अपनी क्षमता से भगवान को क्या कुछ नहीं चढ़ाता है। कोई हजारों या लाखों रुपये के वस्त्र-आभूषण भगवान को अर्पण करता है तो कोई लड्डू या अन्य मिष्ठान चढ़ाकर उन्हें खुश करने की कोशिश करता है।

भगवान क्या केवल इन बातों से खुश होते हैं? अगर भगवान महंगे उपहारों से खुश होते तो इंसान की हर मनोकामना पूर्ण क्यों नहीं होती है? ऐसे में ये सवाल उठता है कि आखिर भगवान किस बात से जल्दी प्रसन्न होते हैं। एक इंसान ऐसा क्या करे जिससे हमेशा उस पर भगवान का आशीर्वाद बना रहे। इस सवाल का जवाब अध्यात्मिक गुरु ओशो द्वारा कही गई इस खूबसूरत कहानी से मिलता है।

कचरा चढ़ाने वाली महिला से जब भगवान हुए खुश

बहुत पहले पुराने समय में एक बुढ़िया रहती थी। वह बहुत गरीब थी। ऐसे में उसके पास जो कुछ होता, वह सब कुछ परमात्मा पर चढ़ा देती थी। यहां तक उसके घर से रोज सुबह जो कचरा निकलता, वह भी बुढ़िया जाकर मंदिर में डाल आती और कहती- तेरा तुझको ही अर्पित। 

गांव के लोगों ने जब ये देखा तो वो नाराज हो गए। उन्होंने बुढ़िया को कई बार समझाने की कोशिश की और बताया कि फूल चढ़ाओ, मिठाई चढ़ाओ, लेकिन भगवान को कचरा कौन चढ़ाता है?

कुछ दिन बाद एक साधु भी उस गांव से गुजरा तो उसने भी यही देखा कि बुढ़िया मंदिर गई और भगवान की ओर कचरा फेंककर कहा- हे भगवान, तेरा तुझको ही समर्पित। साधु ने भी उसे समझाने की कोशिश की और पूछा- तूम ये क्या कह रही हो?

बुढ़िया ने भगवान की ओर इशारा कर कहा- 'मुझसे मत पूछो। उस भगवान से ही पूछो। मैंने जब सब कुछ उसे दे दिया तो कचरा क्यों बचाऊं?'

साधु ने उसी रात एक सपना देखा कि वह स्वर्ग में है और परमात्मा के सामने खड़ा है। सुबह का समय है और तभी अचानक एक टोकरी भर कचरा सीधा भगवान के चरणों में आकर गिरा। साधु से रहा नहीं गया। उसने परमात्मा से कहा, 'यह बाई एक दिन भी नहीं चूकती। मैं जानता हूं इसे, कल ही तो मैंने इसे देखा था और कल ही मैंने उसे समझाते हुए पूछा था कि तू ये क्या करती है?'

साधु ने स्वर्ग में रहते हुए ये भी देखा कि बहुत से लोग जो रोज सुबह भगवान को फूल चढ़ाते हैं, मिठाई चढ़ाते हैं, लेकिन उनकी कोई भी चीज परमात्मा तक नहीं पहुंची। साधु को ये देखकर हैरानी हुई। उन्होंने भगवान से पूछा- 'आपको फूल-मिठाई चढ़ाने वाले लोग भी हैं। रोज सुबह से पड़ोसियों के पेड़ों से फूल तोड़ते हैं। घर के आसपास से फूल तोड़कर आपको चढ़ाते हैं, लेकिन उनके फूल तो यहां दिखाई नहीं दे रहे हैं।'

भगवान ने इसका जवाब देते हुए कहा, 'जो आधा-अधूरा चढ़ाता है, मुझ तक उसका कुछ नहीं पहुंचता। इस महिला ने अपना सब कुछ मुझे चढ़ा दिया है। ये कुछ भी अपने पास नहीं रखती है। जो सब कुछ मुझे समर्पित करता है, उसका चढ़ावा ही मुझ तक पहुंचता है।'

टॅग्स :ओशो
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