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ओशो का जीवन दर्शन: लालच बुरी बला है! आठ आने में मिल रहा था लाखों का हीरा, फिर भी जौहरी ने गंवा दिया मौका

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 27, 2020 09:53 IST

ओशो का जीवन दर्शन: यदि इंसान को कोई वस्तु आधे दाम में भी मिले तो भी वह उसके लिए मोलभाव जरूर करेगा क्योंकि लालच हर इंसान के दिल में होता है। कहते हैं न चोर चोरी से जाए हेरा फेरी से न जाए।

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ठळक मुद्देलालच कई बार हमारा बड़ा नुकसान करा देती है, कुछ ऐसी ही सीख देती है ये कहानीएक जौहरी को आठ आने में मिल रहा था लाखों का हीरा, फिर भी उसने लालच के कारण मौका गंवा दिया

एक जंगल की राह से जौहरी गुजर रहा था। उसने रास्ते में देखा कि एक कुम्हार अपने गधे के गले में एक बड़ा हीरा बांधकर चला आ रहा है। यह देखकर जौहरी हैरान रह गया। उसने मन ही मन सोचा कि ये कुम्हार कितना मूर्ख है। क्या इसे पता नहीं कि ये लाखों का हीरा है और इसने इसे गधे के गले में सजाने के लिए बांध रखा है। 

जौहरी ने कुम्हार से पूछा- सुनो ये पत्थर जो तुमने गधे के गले में बांध रखा है, इसके कितने पैसे लोगे? कुम्हार ने कहा- 'महाराज इसके क्या दाम पर आप चलो इसके आठ आने दे दो। हमने तो ऐसे ही बांध दिया कि गधे का गला सूना नहीं लगे। बच्चों के लिए आठ आने की मिठाई गधे की ओर से ले जाएंगे। बच्चे भी खुश हो जाएंगे और शायद गधे को भी लगे कि उसके गले का बोझ कुछ कम हो गया।' 

जौहरी तो लेकिन जौहरी ही था। उसे लोभ आ गया। उसने कहा आठ आने तो थोड़े ज्यादा हैं। तू इसके चार आने ले ले। कुम्हार भी थोड़ा झक्की था। वह जिद्द पकड़ गया कि आठ आने नहीं तो कम से कम छह आने ही दे दो, नहीं तो इसे हम नहीं बेचेंगे।

जौहरी ने कहा पत्थर ही तो है चार आने कोई कम तो नहीं है। ऐसा कहकर जौहरी ने सोचा कि कुम्हार थोड़ी दूर जाने पर खुद आवाज देगा। हालांकि ऐसा नहीं हुआ और कुम्हार आगे चला गया। जौरही ने देखा तो उसे ख्याल आया कि बात तो बिगड़ गई। नाहक छोड़ा छह आने में ही ले लेता तो ठीक था।

जौहरी वापस लौटकर आया लेकिन तब तक बाजी हाथ से जा चुकी थी। गधा खड़ा आराम कर रहा था और कुम्हार अपने काम में लगा था। जौहरी ने पूछा क्या हुआ। पत्थर कहां है। कुम्हार ने हंसते हुए कहा महाराज उस पत्थर का एक रुपया मिला है। पूरा आठ आने का फायदा हुआ है। आपको छह आने में बेच देता तो कितना नुकसान होता। 

ये सुनकर जौहरी के माथे पर पसीना आ गया। उसका दिल बैठा जा रहा था। उसने गुस्से में कुम्हार से कहा- 'अरे मूर्ख तू बिल्कुल गधे का गधा ही रहा। जानता है उसकी कीमत, वह लाखों का था और तुमने एक रुपये में बेच दिया। तुझे एक रुपया लेकर ऐसा अहसास हो रहा है कि जैसे खजाना तेरे हाथ लग गया हो।'

उस कुम्हार ने कहा, हुजूर मैं अगर गधा नहीं होता तो क्या इतना कीमती पत्थर गधे के गले में बांध कर घूमता? मैं लेकिन आपके लिए क्या कहूं। आप तो गधे के भी गधे निकले। आपको तो पता था कि वह हीरा है और लाखों का है। फिर भी आप उसे छह आने में भी खरीदने को तैयार नहीं थे।

लालच बुरी बला है..

यदि इंसान को कोई वस्तु आधे दाम में भी मिले तो भी वह उसके लिए मोलभाव करेगा क्योंकि लालच हर इंसान के दिल में होता है। कहते हैं न चोर चोरी से जाए, हेरा फेरी से न जाए। जौहरी ने अपने लालच के कारण अच्छा सौदा गंवा दिया।  धर्म का जिसे पता है उसका जीवन अगर रुपांतरित नही हो तो उस जौहरी की भांति गधा है। जिन्हें पता नहीं है वे क्षमा के योग्य हैं, लेकिन जिन्हें पता है उनका क्या कहें? 

टॅग्स :ओशो
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