देश के इस मंदिर में आज भी विराजमान हैं अधूरी बनी हुई मूर्तियां, ऐसे ही होती है इनकी पूजा-पढ़ें यहां

By मेघना वर्मा | Updated: May 17, 2020 13:32 IST2020-05-17T13:32:37+5:302020-05-17T13:32:37+5:30

जगहों पर कुछ ऐसी मंदिर हैं जो अपने आप में अनोखी हैं। एक ऐसी ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां अधूरी बनी हुई मूर्तियों की पूजा की जाती है। 

odisha jagannath temple puri statues is incomplete worship since decades know the story | देश के इस मंदिर में आज भी विराजमान हैं अधूरी बनी हुई मूर्तियां, ऐसे ही होती है इनकी पूजा-पढ़ें यहां

देश के इस मंदिर में आज भी विराजमान हैं अधूरी बनी हुई मूर्तियां, ऐसे ही होती है इनकी पूजा-पढ़ें यहां

Highlightsजगन्नाथ मंदिर अपने वास्तुकला के लिए भारत ही नहीं देशभर में जाना जाता है। हिन्दू धर्म में चार धामों का अत्यधिक महत्व बताया जाता है।

भारत अपनी संस्कृति और सभ्यताओं के लिए जाना जाता है। भारत क लोगों में अनेकता में भी एकता दिखाई देता है। तभी तो हर शहर और हर राज्य में मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे स्थापित होते हैं। इन्हीं धार्मिक जगहों पर कुछ ऐसी मंदिर हैं जो अपने आप में अनोखी हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां अधूरी बनी हुई मूर्तियों की पूजा की जाती है। 

हिन्दू धर्म में चार धामों का अत्यधिक महत्व बताया जाता है। इन चार धामों में जगन्नाथ पुरी धाम सबसे महत्वपूर्ण है। उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी वो मंदिर है जिनमें आज भी अधूरी मूर्तियां रखी हुई हैं। जगन्नाथ शब्द का अर्थ होता है जगत का स्वामी। इस नगरी को ही जगन्नाथपुरी कहलाती है। ये हिंदुओं का प्रमुख मंदिर है।

मंदिर के तीनों प्रमुख देवता भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और भगिनी सुभद्रा और तीनों विराजमान हैं। हर साल जगन्नाथ मंदिर से भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। जिसमें देश-विदेश से लोग शामिल होते हैं। ये उत्सव भारत के अधिकतर कृष्ण मंदिरों में मनाया जाता है। जगन्नाथ मंदिर अपने वास्तुकला के लिए भारत ही नहीं देशभर में जाना जाता है। 

वृक्ष के नीचे मिली थी मूर्ति

पौराणिक कथा के अनुसार जगन्नाथपुरी के मंदिर की इंद्रनील या नीलमणी से निर्मित मूल मूर्ति, एक वृक्ष के नीचे मिली थी। ये मूर्ति इतनी चमकदार थी कि इसे पृथ्वी में वापिस छुपा दिया गया। इसके बाद एक बार मालवा के  नरेश इंद्रदुयम को ये सपने में दिखाई दी। भगवान विष्णु ने दर्शन देकर उनसे कहा कि वो पुरी के समुद्र तट पर जाए। उन्हें वहां एक लड़की का लट्ठा मिलेगा। उसी से मूर्ति का निर्माण करवाएं। 

विश्वकर्मा उसके सामने उपस्थित हुए और मूर्ति निर्माण शुरू हुआ। विश्वकर्मा ने शर्त रखी कि एक महीने में वो मूर्ति तैयार करेंगे और ये काम एकांत में करेंगे। इसलिए एक महा तक उनके कक्ष में कोई प्रवेश ना करें। राजा से रहा नहीं गया। अंतिम कुछ दिनों में वो कमरे में दाखिल हो गए। जिस समय वे दाखिल हुए विश्वकर्मा ने बताया कि मूर्ति अभी आधी ही बन पाई हैं इनके हाथ नहीं बने हैं। अब ये मूर्तियां ऐसी ही स्थापित होंगी। 

इसके बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां इसी तरह विराजित हैं। आज भी मंदिरों में इन्हें ऐसे ही पूजा जाता है। ये मंदिर का आकर्षण इस मंदिर की रसोई है। इस रसोई को भारत की सबसे बड़ी रसोई माना जाता है। 

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