आज भी इस मूर्ति में धड़कता है भगवान कृष्ण का दिल, मंदिर के पुजारी भी हैं हैरान

By गुलनीत कौर | Published: December 26, 2018 07:08 PM2018-12-26T19:08:33+5:302018-12-26T19:08:33+5:30

जगन्नाथ मंदिर की कृष्ण मूर्ति को हर 12 साल बाद दोबारा से बनाया जाता है। इस मूर्ति को बनाने के लिए खास लकड़ी और विशेष कारीगरों को उपयोग में लाया जाता है। 

Mystery of Lord Krishna murti in Jagannath Temple, Puri, Orissa | आज भी इस मूर्ति में धड़कता है भगवान कृष्ण का दिल, मंदिर के पुजारी भी हैं हैरान

आज भी इस मूर्ति में धड़कता है भगवान कृष्ण का दिल, मंदिर के पुजारी भी हैं हैरान

भगवान कृष्ण की जन्म भूमि मथुरा-वृन्दावन में उनके बचपन से जुड़ी अनगिनत कहानियाँ प्रचलित हैं। इस जन्म भूमि से मीलों दूर दक्षिण भारत के जगन्नाथ में कृष्ण से जुड़ी रोचक कथाएं सुनने को मिलती हैं। कहते हैं यहां के जगन्नाथ मंदिर में स्वयं कृष्ण का वास है। यहां की एक मूर्ति के भीतर पिंड रूप में कृष्ण का दिल धड़कता है। 

इससे जुड़ी एक कहानी पुराणों में दर्ज है। इस कहानी के अनुसार द्वापर युग के अंत में भगवान विष्णु ने अपने मानवीय अवतार कृष्ण का त्याग किया था। जब उन्होंने इस युग में अपना शरीर छोड़ा और वैकुण्ठ की ओर प्रस्थान कर गए तो पीछे से पांडवों ने मिलकर कृष्ण का अंतिम संस्कार किया। कहा जाता है कि कृष्ण का शरीर तो जलकर राख हो गया लेकिन दिल निरंतर जलता ही रहा। उसकी अग्नि शांत होने का नाम ही नहीं ले रही थी।

फिर ईश्वर के आदेशानुसार पांडवों ने उस जलते हुए दिल का पिंड बनाया और उसे जल में प्रवाहित कर दिया। जल में जाते ही इस पिंड ने लट्ठे का रूप ले लिया। यह लट्ठा बहता हुआ दक्षिण भारत की ओर निकल गया और वहां राजा इन्द्रद्युम्न को मिल गया। राजा भगवान कृष्ण का बहुत बड़ा भक्त था, इसलिए जब उसे उस लट्ठे की सच्चाई मालूम हुई तो उसने इसे एक कृष्ण मूर्ति के भीतर स्थापित करवा दिया। 

तब से लेकर आजतक इस लट्ठे को कृष्ण की मूर्ति के भीतर ही स्थापित किया जा रहा है। जगन्नाथ मंदिर की कृष्ण मूर्ति को हर 12 साल बाद दोबारा से बनाया जाता है। इस मूर्ति को बनाने के लिए खास लकड़ी और विशेष कारीगरों को उपयोग में लाया जाता है।

कहते हैं कि इस मंदिर की कृष्ण मूर्ति को पहली बार जिन कारीगरों ने बनाया था, उन्हीं के वंशजों से यह मूर्ति तैयार कराई जाती है। कृष्ण का दिल कहे जाने वाले लट्ठ में ब्रह्मा का वास माना जाता है। इसलिए इस लट्ठ को देखने या हाथों से छूने की अनुमति कारीगरों को भी नहीं होती है। 

लट्ठ को मूर्ति के भीतर स्थापित करते समय कारीगरों/पुजारियों की आंखों पर पत्ती बाँध दी जाती हैं। उनके हाथों पर भी कपड़ा लिपटा होता है। मूर्ति बनाने वाले पुजारी कहते हैं कि मूर्ति के भीतर लट्ठा स्थापित करने के लिए जब वह लट्ठ हमारे हाथ में आता है तो ऐसा लगता है कि कोई खरगोश हाथों में फुदक रहा है। वह लट्ठ खरगोश की खाल जैसा मुलायम होता है।

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जगन्नाथ मंदिर के पंडितों के अनुसार किसी को भी कृष्ण के दिल वाले इस लट्ठे को देखने की अनुमति नहीं होती है। इसके पीछे मान्यता है कि जो कोई भी इस लट्ठ को देख ले उसकी मृत्यु हो जाती है। जिसदिन कृष्ण की मूर्ति में लट्ठ को स्थापित किया जाता है उसदिन उड़ीसा सरकार द्वारा पोरे राज्य की बिजली काट दी जाती है। किसी को भी उजाला करने की अनुमति नहीं होती। गहरे अँधेरे में कृष्ण की मूर्ति में लट्ठ को स्थापित किया जाता है। 

Web Title: Mystery of Lord Krishna murti in Jagannath Temple, Puri, Orissa

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