मौनी अमावस्या पर अवश्य पढ़ें व्रत कथा, मिलता है अश्वमेध यज्ञ जितना फल

By धीरज पाल | Published: January 15, 2018 12:41 PM2018-01-15T12:41:18+5:302018-01-15T13:58:38+5:30

मौनी अमावस्या को सोमवती अमावस्या भी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन अधिक से अधिक दान करने से पुण्य मिलता है।

mauni magha amavasya know vrat katha ganga significance and puja | मौनी अमावस्या पर अवश्य पढ़ें व्रत कथा, मिलता है अश्वमेध यज्ञ जितना फल

मौनी अमावस्या पर अवश्य पढ़ें व्रत कथा, मिलता है अश्वमेध यज्ञ जितना फल

इस वक्त माघ महीना चल रहा है। यह महीना हिंदू धर्म में सबसे पवित्र महीना माना जाता है। माघ के दौरान कहा जाता है कि पवित्र नदी में स्नान करने से पुण्य प्राप्त होता है। माघ महीने के पहले पर्व मकर संक्रांति का बेहद महत्व है। इसके साथ ही इस महीने में पड़ने वाली अमावस्या, जिसे मौनी अमावस्या कहते हैं, इसका भी सर्वाधिक महत्व। मौनी अमावस्या को सोमवती अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन मान्यता है कि अधिक से अधिक दान करने से पुण्य और पितरों का आशीर्वाद मिलता है।

मौनी अमावस्या के दिन दान देने के अलावा मौन रहने का भी महत्व है। कहा जाता है कि संस्कृत के मुनि (साधु) शब्द से ही मौन शब्द की उत्पत्ति हुई थी। इसदिन शुभ मुहूर्त में गंगा या किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने का महत्व है। 

शुभ मुहूर्त में करें पवित्र नदी में स्नान 

इस बार मौनी अमावस्या का शुभ मुहूर्त 16 जनवरी को है। मौनी अमावस्या पर गंगा स्नान करने का सबसे अधिक महत्व है। यदि संभव हो तो इस दिन गंगा स्नान जरूर करें।

मौनी अमावस्या की प्रचलित कथा 

कांचीपुरी में देवस्वामी नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी धनवती, सात पुत्र एवं एक पुत्री के साथ रहता था। उसकी पुत्री का नाम गुणवती था। ब्राह्मण ने सातों पुत्रों का विवाह करके बेटी के लिए वर खोजने अपने सबसे बड़े पुत्र को भेजा। उसी दौरान किसी पंड‍ित ने पुत्री की जन्मकुण्डली देखी और ऐसी बात बताई जिसे जान सभी चकित रह गए।

पंड‍ित के अनुसार देवस्वामी की पुत्री की जन्म कुण्डली में एक दोष था, जिसके कारण उसकी कन्या विधवा हो जाएगी। इस दोष का हल निकालने का प्रश्न आया तब पंडित ने बताया कि सोमा का पूजन करने से वैधव्य दोष दूर होगा। सोमा एक धोबिन है और उसका निवास स्थान सिंहल द्वीप है। उसे जैसे-तैसे प्रसन्न करो और गुणवती के विवाह से पूर्व उसे यहां बुला लो।

तब देवस्वामी का सबसे छोटा लड़का बहन को अपने साथ लेकर सिंहल द्वीप जाने के लिए सागर तट पर चला गया। सागर पार करने की चिंता में दोनों एक वृक्ष की छाया में बैठ गए। जिस पेड़ की छाया में वे बैठे थे उसके ठीक ऊपर एक घोंसले में गिद्ध का परिवार रहता था। उस समय घोंसले में गिद्ध के बच्चे थे, जो दोनों भाई-बहन की बातों को ध्यान से सुन रहे थे।

शाम होने पर जब उन बच्चों की मां वापस लौटी तो उन्होंने भोजन नहीं किया। वे मां से बोले, नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं। जब तक वे कुछ नहीं खा लेते, तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे। तब दया और ममता के वशीभूत गिद्ध माता उनके पास गई और दोनों भाई-बहन को भोजन दिया और साथ ही सागर पार कराने का वचन भी दिया।

गिद्ध मां की मदद से दोनों भाई-बहन अगले दिन सिंहल द्वीप की सीमा के पास पहुंच गए। वहां उन्हें सोमा का घर भी मिल गया, लेकिन उसे प्रसन्न करने हेतु दोनों भाई-बहन ने छिपकर ही कुछ योजना बनाई। वे दोनों नित्य प्रात: उठकर सोमा का घर झाड़कर लीप देते थे।

एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा कि हमारे घर कौन बुहारता है, कौन लीपता-पोतता है? सोमा से झूठी प्रशंसा हासिल करने हेतु सभी ने कहा कि हमारे सिवाय और कौन बाहर से इस काम को करने आएगा? किंतु सोमा को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। इसलिए एक रात उसने जागकर उन लोगों को खोजने की कसम खाई जो ऐसा कर रहा है।

तब अपनी आंखों से उसने उन दो भाई-बहन को यह कार्य करते हुए देखा। ऐसा करने का कारण पूछने पर भाई ने सोमा को बहन संबंधी सारी बात बता दी। सोमा ने उनकी श्रम-साधना तथा सेवा से प्रसन्न होकर उचित समय पर उनके घर पहुंचने का वचन देकर कन्या के वैधव्य दोष निवारण का आश्वासन दे दिया। मगर भाई ने उससे अपने साथ चलने का आग्रह किया। आग्रह करने पर सोमा उनके साथ चल दी।

चलते समय सोमा ने बहुओं से कहा कि मेरी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहान्त हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट मत करना। मेरा इन्तजार करना। और फिर सोमा बहन-भाई के साथ कांचीपुरी पहुंच गई। दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया। सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया। सोमा ने तुरन्त अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया।

तुरन्त ही उसका पति जीवित हो उठा। सोमा उन्हें आशीर्वाद देकर अपने घर चली गई। उधर गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जामाता तथा पति की मृत्यु हो गई। सोमा ने पुण्य फल संचित करने के लिए मार्ग में अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष की छाया में विष्णुजी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं कीं। अंतत: उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे।

Web Title: mauni magha amavasya know vrat katha ganga significance and puja

पूजा पाठ से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे