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Mauni Amavasya 2022 Upay: मौनी अमावस्या पर जरूर करें ये 4 उपाय, धन, वैभव से होंगे संपन्न

By रुस्तम राणा | Updated: January 23, 2022 14:27 IST

मौनी अमावस्या के दिन पवित्र नदियों खासकर प्रयाग के संगम में स्नान एवं दान आदि करने का महत्व है। ऐसा करने से जातक को सकारात्मक उर्जा मिलती है। साथ ही दुख, गरीबी से मुक्ति मिलती है और कार्यों में भी सफलता मिलती है।

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मौनी अमावस्या इस साल 1 फरवरी, (मंगलवार) को है। हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में माघ अमावस्या (मौनी अमावस्या) का विशेष महत्व बताया गया है। वैसे तो शास्त्रों में माघ मास को ही बेहद पवित्र महीना माना गया है। मौनी अमावस्या पर मौन व्रत रखा जाता है इस कारण इसे मौनी अमावस्या कहा जाता है। 

मौनी अमावस्या के दिन पवित्र नदियों खासकर प्रयाग के संगम में स्नान एवं दान आदि करने का महत्व है। ऐसा करने से जातक को सकारात्मक उर्जा मिलती है। साथ ही दुख, गरीबी से मुक्ति मिलती है और कार्यों में भी सफलता मिलती है। मौनी अमावस्या के दिन इन उपायों को जरूर करना चाहिए :- 

जरूर करें गंगा स्नान

ऐसा कहते हैं कि मौनी अमावस्या के दिन पवित्र गंगा नदी का पानी अमृत बन जाता है। इसलिए इस दिन गंगा में स्नान का महत्व बहुत बढ़ जाता है। कई लोग तो केवल मौनी अमावस्य ही नहीं बल्कि पूरे माघ महीने में गंगा में स्नान करते हैं। यदि घर पर स्नान करें तो नहाने के जल में कुछ बूंदे गंगा जल की अवश्य मिलाएं।

तिल के दान का है विशेष महत्व

जानकारों के अनुसार मौनी अमावस्या के दिन तिल के दान का विशेष महत्व है। साथ ही अन्न, तेल, सूखी लकड़ी, गर्म कपड़े, अन्य वस्त्र, कंबल आदि का भी दिन किया जा सकता है। ग्रह दोष दूर करने के लिए भी इन चीजों का दान बेहद महत्वपूर्ण होता है।

चावल, खीर, मिश्री और बताशा करें दान

मौनी अमावस्या के दिन दूध, चावल, खीर, मिश्री और बताशा आदि भी दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा दूध देने वाली गाय, दर्पण आदि भी दान किए जा सकते हैं। इन चीजों के दान से अच्छे स्वास्थ्य और ज्ञान की प्रप्ति होती है। 

पितरों के निमित्त करें तर्पण

नियमों के अनुसार साधक को स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। इसके बाद दान आदि करना चाहिए। मौनी अमावस्या कि दिन पितरों का तर्पण करने की भी मान्यता है। मौनी अमानस्या के दिन पितृगण पितृलोक से आकर संगम में स्नान करते हैं। साथ ही देवता भी अदृश्य रूप में इस दिन गंगा में स्नान करते हैं। यही कारण है कि पितरों के तर्पण की इस दिन परंपरा है। 

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