Mahakumbh 2025: प्रयागराज संगम के तट पर अब महाकुंभ का मेला रंग में आने लगा है. मकर संक्रांति के शाही स्नान के बाद मेला क्षेत्र में श्रद्धालुओं की श्रद्धा तो हर तरफ दिख रही हैं. तो दूसरी तरफ यहां बने 13 अखाड़ों में नए नागा साधु बनाने के लिए प्रक्रिया भी शुरू हो गई है. बता जा रहा है कि करीब आठ हजार से अधिक नए नागा साधु मौनी अमावस्या से पहले विभिन्न अखाड़ों के परिवार में शामिल किए जाएंगे. इसके लिए विभिन्न अखाड़ों में पर्ची कटनी शुरू हो गई है.
हर अखाड़े में गृहस्थ जीवन त्याग कर नागा साधु बनने के इच्छुक लोग पहुंच कर वहां हो रहे यज्ञ कर रहे जनेऊधारी ब्रह्मचारी एक साथ कुंड में हवन सामग्री डालकर पर्ची प्राप्त कर रहे हैं. इस वक्त महाकुंभ मेला क्षेत्र के बने अखाड़ों में सिर्फ ब्रह्मचारी ही नहीं बल्कि गृहस्थों को दीक्षा दिए जाने के भी कई कार्यक्रम अलग-अलग संतों की देखरेख में चल रहे हैं.
ऐसे होती है नागा बनाने की दीक्षा
गृहस्थ जीवन त्याग कर नागा साधु बनाए जाने की शुरुआत आज (शुक्रवार) सबसे पहले जूना अखाड़े में शुरू हुई. यहां नागा साधु बनने के लिए चिन्हित किए गए लोगों का मुंडन और यज्ञोपवीत संस्कार कर इन्हे विधि विधान से अखाड़े में शामिल किया गया. अब अगले दो दिन इन्हे अखाड़े के बड़े आचार्य के मार्गदर्शन में नस तोड़ (तंगतोड़) क्रिया के साथ नागा संन्यासियों की दीक्षा दी जाएगी.
अखाड़े के आचार्य किसी को नागा बनाने के लिए किए जाने वाले विधानों के बारे में बताते हैं कि हर शिष्य को नागा बनाने के दौरान दो क्रियाएं सबसे अहम होती हैं. पहली अहम क्रिया चोटी काटने की होती है. इस क्रिया के तहत शिष्य का पिंडदान कराने के बाद गुरु उनके सामाजिक बंधनों को चोटी के माध्यम से काटते हैं. चोटी कटने के बाद दोबारा कोई नागा सामाजिक जीवन में नहीं लौट सकता.
हर नागा के सामाजिक जीवन में लौटने के दरवाजे बंद हो जाते हैं. गुरु की आज्ञा ही उनके लिए आखिरी होती है. दूसरी अहम क्रिया तंग तोड़ की होती है. यह क्रिया गुरु खुद से न करके दूसरे नागा से करवाते हैं. तंग तोड़ नागा बनाने की सबसे आखिरी क्रिया होती है. इस व्यवस्था के अधीन ही गृहस्थ को नागा साधु बनाने की शुरुआत करते हुए उसे गंगा में 108 डुबकी लगानी होती हैं.
इसके बाद क्षौर कर्म और विजय हवन होता है. इस दौरान शिष्य को पांच गुरु अलग-अलग वस्तु देते हैं, जिन्हे उसे अपने साथ रखना होगा. फिर सभी शिष्यों को संन्यास की दीक्षा अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर देते हैं. इसके बाद हवन होगा और दो दिन बाद (19 जनवरी) की सुबह लंगोट खोलकर वह नागा बना दिए जाएंगे.
आचार्यों के अनुसार, हर नागा को वस्त्र के साथ अथवा दिगंबर रूप में रहने का विकल्प भी दिया जाता है. वस्त्र के साथ रहने वाले अमृत स्नान के दौरान नागा होकर ही स्नान करेंगे. मौनी आमावस्या से पहले हर अखाड़े में यह सारे संस्कार पूरे कर किए जाएंगे, ताकि मौनी आमावस्या के स्नान में इन नए साधुओं को भी अखाडे के महामंडलेश्वर के संगम में डुबकी लगाने का मौका मिल सके.
24 घंटे बिना भोजन के करनी होगी तपस्या
जूना अखाड़े के महंत रमेश गिरि के मुताबिक, अखाड़ों के लिए कुंभ न सिर्फ अमृत स्नान का अवसर होता है बल्कि उनके विस्तार का भी मौका होता है. हर अर्ध कुंभ और महाकुंभ के दौरान ही नए नागा संन्यासियों की दीक्षा होती है. प्रशिक्षु साधुओं के लिए भी प्रयागराज कुंभ की नागा दीक्षा अहम होती है.
नाग दीक्षा की शुरुआत आज (17 जनवरी) मेला क्षेत्र में धर्म ध्वजा के नीचे तपस्या के संस्कार के साथ शुरू हो गई. अब अगले 24 घंटे तक हर शिष्य बिना भोजन-पानी के तपस्या संस्कार को पूरा करेगा. इसके बाद अखाड़ा कोतवाल के साथ सभी शिष्य गंगा तट पर जाएंगे. जहां उन्हें नागा बनाने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी.