महाभारत: कर्ण थे असुर के अवतार, पिछले कई जन्मों से चली आ रही थी अर्जुन से दुश्मनी!

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 24, 2019 14:30 IST2019-07-24T14:30:21+5:302019-07-24T14:30:21+5:30

महाभारत में अर्जुन ने किसी तरह दानवीर कर्ण का वध किया, ये तो सभी जानते हैं। हालांकि, आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि इन दोनों की दुश्मनी किसी तरह जन्मों-जन्मों से थी।

Mahabharat story who was Karna and Arjuna and how Lord Krisna help in killing Karna | महाभारत: कर्ण थे असुर के अवतार, पिछले कई जन्मों से चली आ रही थी अर्जुन से दुश्मनी!

अर्जुन और कर्ण में जन्मों से चली आ रही थी दुश्मनी

Highlightsमहाभारत के युद्ध में अर्जुन ने किया था कृष्ण के इशारे पर कर्ण का वधपिछले कई जन्मों से कर्ण और अर्जुन में चली आ रही थी दुश्मनीपद्म पुराण में भी है अर्जुन और कर्ण के बीच जन्मों से चली आ ही दुश्मनी का जिक्र

भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद गीता में कहा है कि इंसान के साथ जो कुछ भी घटित होता है, वह उसके अच्छे और बुरे कर्मों पर निर्भर होता है। कई बार ये हमारे पिछले जन्म में किये कार्यों पर भी निर्भर होता है। महभारत में ऐसी कई कहानियां हैं जिसमें किरदारों के पुनर्जन्म का जिक्र है।

बात चाहें भीष्म पितामह की मौत का कारण बने शिखंड़ी की करें या फिर गुरु द्रोण को मारने वाले द्रौपदी के भाई दृष्टद्युम्न की। इन सभी ने पिछले जन्म में अपने साथ घटित हुई घटनाओं का बदला लेने के लिए दोबारा जन्म लिया और अपने लक्ष्य में कामयाब हुए। इन्हीं में से एक कहानी अर्जुन और कर्ण की दुश्मनी की भी है।

अर्जुन और कर्ण की दुश्मनी जन्मों से थी!

महाभारत में अर्जुन ने किसी तरह दानवीर कर्ण का वध किया, ये तो सभी जानते हैं। हालांकि, आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि इन दोनों की दुश्मनी किसी तरह जन्मों-जन्मों से थी। इसमें एक अहम भूमिका श्रीकृष्ण की भी थी जो भगवान विष्णु के अवतार थे।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार अर्जुन पूर्वजन्म में नारायण के जुड़वा भाई नर थे। नारायण भगवान विष्णु के ही अवतार थे। नर और नारायण का जन्म दंभोद्भवा नामक असुर के वध के लिए हुआ था। दंभोद्भवा ने भगवान सूर्य की कठोर तपस्या कर उनसे एक हजार कवच का वरदान मांग लिया था। इस कवच के साथ एक खास वरदान जुड़ा था। इसके अनुसार एक कवच को तोड़ने के लिए 1 हजार साल तपस्या करनी पड़ेगी और कवच के टूटते ही वह व्यक्ति भी मारा जाएगा जिसने उसे तोड़ा है।

नर-नारायण ऐसी स्थिति में बारी-बारी से तपस्या करते और दंभोद्भवा के एक-एक कवच तोड़ते जाते और पुनर्जन्म लेते। दंभोद्भवा के जब 999 कवज टूट गये तो वह जाकर सूर्य लोग में छिप गया। मान्यता है कि महाभारत काल में इसी असुर का जन्म एक कवच के साथ कर्ण के रूप में हुआ जिसका वध अर्जुन ने किया।

कर्ण-अर्जुन की दुश्मनी का जिक्र पद्म पुराण में भी

कर्ण और अर्जुन के पिछले जन्म की कथा का एक जिक्र पद्म पुराण में भी है। इसके अनुसार एक बार भगवान ब्रह्मा और महादेव के बीच किसी बात पर युद्ध शुरू हो जाता है। इस युद्ध के दौरान क्रोधित ब्रह्मदेव के शरीर से पसीना आता है और इससे एक योद्धा पैदा होता है। पसीने से जन्म के कारण इसका स्वेदजा रखा जाता है। स्वेदजा भगवान ब्रह्म के आदेश से महादेव से युद्ध के लिए जाता है। 

महादेव यह देख भगवान विष्णु के पास उपाय के लिए जाते हैं। ऐसे में विष्णु अपने रक्त से रक्तजा नाम के एक वीर को जन्म देते हैं। स्वेदजा 1000 कवच के साथ जन्मा था जबकि रक्तजा के पास 1000 हाथ और 500 धनुष थे। दोनों के बीच भयंकर युद्ध होता है। रक्तजा इस युद्ध में जब हार के करीब पहुंचते हैं तो विष्ण युद्ध विराम करा देते हैं। स्वेदजा यहां दानवीरता दिखाते हुए रक्तजा को जीवनदान दे देता है। 

इसके बाद भगवान विष्णु स्वेदजा की जिम्मेदारी सूर्य भगवान को सौंपते हैं जबकि रक्तजा को इंद्रदेव को सौंप देते हैं। विष्णु यहां वचन देते हैं कि रक्तजा अगले जन्म में स्वेदजा का जरूर वध करेगा। द्वापरयुग में रक्ताजी ही अर्जुन के रूप में और स्वेदजा कर्ण के रूप में जन्म लेते हैं। कृष्ण की मदद से इसके बाद अर्जुन आखिरकार कर्ण को मारने में सफल होते हैं।

Web Title: Mahabharat story who was Karna and Arjuna and how Lord Krisna help in killing Karna

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