मध्य प्रदेश का चौसठ योगिनी मंदिर जिसकी तर्ज पर बना हमारा संसद भवन! तंत्र-मंत्र और साधना के लिए था कभी मशहूर
By विनीत कुमार | Published: March 7, 2020 11:19 AM2020-03-07T11:19:04+5:302020-03-07T11:19:04+5:30
Yogini Temple: चौसठ योगिनी देवीयां माता काली का अवतार हैं। मान्यता है कि माता काली ने ये अवतार घोर नाम के एक दैत्य से युद्ध करते हुए लिए थे।
भारत के कई मंदिर अपनी वास्तुकला और बनावट के लिए मशहूर रहे हैं। कई मंदिर तो ऐसे हैं जिनका इतिहास सैकड़ों या फिर हजारों साल भी पुराना है। इसी में चौसठ योगिनी मंदिर भी शामिल हैं। भारत में वैसे तो कई चौसठ योगिनी मंदिर हैं लेकिन आज प्रमुख तौर पर चार ही थोड़ी ठीक-ठाक हालत में मौजूद हैं।
इसमें दो ओडिशा और दो मध्य प्रदेश में हैं। आज लेकिन हम जिस मंदिर की बात हम करने जा रहे हैं वो मध्य प्रदेश के मुरैना में स्थित है। यह चार चौसठ योगिनी मंदिरों में सबसे प्रमुख और प्राचीन भी है। कहते हैं कि भारत के संसद भवन का निर्माण इस मंदिर की बनावट से प्रभावित है। हालांकि, इस बारे में कोई लिखित उल्लेख नहीं मिलता है।
चंबल के बीहड़ में गुमनाक इलाके में मौजूद मंदिर
ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण करीब 700 साल पहले 1323 में राजा देवपाल ने तंत्र साधना के शिक्षा केंद्र के तौर पर कराया था। यह मंदिर करीब 200 फुट ऊंची पहाड़ी पर है और यहां आने के लिए करीब 150 से ज्यादा सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। वृत्तीय आधार पर निर्मित इस मंदिर में 64 कमरे हैं और हर कमरे में एक-एक शिवलिंग बना है।
साथ ही शिवलिंग के करीब देवी योगिनी की मूर्तियां भी स्थापित थी। इन्हीं मूर्तियों के आधार पर इसे चौसठ योगिनी मंदिर कहा गया। बाद के वर्षों में इनमें से कई मूर्तियों की चोरी हो गई। मंदिर के बीचो-बीच मध्य में एक खुला हुआ मंडप भी है, जिसमें एक विशाल शिवलिंग मौजूद है। ये चौसठ योगिनी मंदिर 101 खंभो पर टिका हुआ है।
संसद भवन से मिलता-जुलता ढांचा
कई जानकार मानते हैं कि भारत की राजधानी नई दिल्ली में संसद भवन समेत राष्ट्रपति भवन, नॉर्थ और साउथ ब्लॉक आदि का वास्तुशिप्ल यूरोप की रोमन वास्तुकला से प्रभावित है। हालांकि, ये भी मत है कि ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर की जोड़ी ने इन इमारतों के निर्माण में भारतीय शैली का भी मिश्रण पश्चिमी वास्तुकला के साथ किया। मुरैना का चौसठ योगिनी मंदिर ऐसा ही एक उदाहरण नजर आता है।
रात में नहीं है मंदिर में रुकने की इजाजत
यहां के स्थानीय निवासी मानते हैं कि मंदिर में आज भी तंत्र-मंत्र की साधना का असर नजर आता है। इसलिए यहां रात में रुकने की इजाजत नहीं है। तंत्र साधना के लिए इस मंदिर में शिव की योगनियों का जागृत किया जाता था।
मान्यता है कि चौसठ योगिनी माता काली का अवतार हैं। माता काली ने ये अवतार घोर नाम के एक दैत्य से युद्ध करते हुए लिए थे। चौसठ योगिनी मंदिर के अलावा इस क्षेत्र में कई और ऐतिहासिक स्थलों की जानकारी पिछले कुछ वर्षों में पुरातत्वविदों को मिली हैं। चंबर का ये क्षेत्र कई सालों तक डाकुओं के कब्जे में रहा है। इसलिए लंबे समय तक इससे पूरी दुनिया की दूरी रही।
इसी मंदिर के करीब बटेसर नाम का प्राचीन स्थल भी है। यहां छठी से नौवीं शताब्दी के बीच के 200 मंदिरों का भव्य परिसर मिला है। पास ही गढ़ी पढ़ावली नाम का गांव भी है। यहां 10वीं शताब्दी के शिव मंदिर मिले हैं। मंदिर में सैकड़ों कामुक चित्रों की मौजूदगी के कारण इसे 'मिनी खजुराहो' भी कहा जाता है।