सोमवार विशेष: जब भगवान राम और शिव जी में हुआ था भयंकर युद्ध, सब कुछ हो गया था तबाह-पढ़ें ये रोचक कथा
By मेघना वर्मा | Published: April 20, 2020 08:32 AM2020-04-20T08:32:24+5:302020-04-20T08:32:24+5:30
भगवान राम, विष्णु के अवतार मानें जाते हैं। ऐसे में सृष्टि के पालनहार और भगवान शिव में युद्ध, सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लग सकता है मगर पुराणों में दोनों के बीच भीषण युद्ध की कथा सुनने को मिलती है।
भगवान शिव अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए जाने जाते हैं। एक बार जो शिव के चरणों में चला गया तो भोले भंडारी हर तरह से उसकी मदद करते हैं। किसी भी मुश्किल को उसके आगे नहीं आने देते। वहीं भगवान राम और शिव से जुड़े कई सारे प्रसंग सुनने को मिलते हैं। उन्हीं में से एक है भगवान राम और भगवान शिव का युद्ध।
बता दें भगवान राम, विष्णु के अवतार मानें जाते हैं। ऐसे में सृष्टि के पालनहार और भगवान शिव में युद्ध, सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लग सकता है मगर पुराणों में दोनों के बीच भीषण युद्ध की कथा सुनने को मिलती है। आइए आपको बताते हैं क्या है वो प्रसंग और क्यों दोनों पालनहारों को उतरना पड़ा युद्ध के मैदान में।
अश्वमेघ यज्ञ के दौरान की है बात
घटना उस समय पेश आई जब श्रीराम अश्वमेघ यज्ञ चल रहा था। राम के भाई शत्रुघ्न के अलावा इस अभियान में हनुमान जी, सुग्रीव और भरत के पुत्र पुष्कल भी थे। इस सभी के साथ कई महारथी योद्धा भी वहां मौजूद थे। इसी क्रम में अश्वमेघ घोड़ा देवपुर पहुंचा। जहां राजा वीरमणि का शासन था।
बान लिया बंदी
वीरमणि के भाई का नाम वीर सिंह था। जो बहुत पराक्रमी और बड़े शिव भक्त थे। वीरमणि के दो बेटे थे। जिनका नाम था- रुक्मांगद और शुभंगद। वीरसिंह ने शिव की तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर भगावन ने प्रदेश की रक्षा का उसे वरदान दिया था। वहीं वीर सिंह ने जब अश्वमेघ घोड़े को देखते ही उसे बंदी बना लिया। इसके बाद युद्ध करने का प्रस्ताव रखा।
शुरु हो गया भयंकर युद्ध
बताया जाता है कि राम जी की ओर से उस समय शत्रुघ्न सेना के नेतृत्व में अयोध्यान सेना और देवपुर सेना के बीच भयंकर युद्ध प्रारंभ हो गया। भरत के पुत्र पु्ष्कल और वीरमणि के बीच सीधा युद्ध हुआ। अंत में वीरमणि पुष्कल प्रहार से मूर्छित हो गए। इसके बाद शिव जी अपने भक्त की रक्षा करने के लिए नंदी, भृंगी सहित कई लोगों को युद्ध में भेज दिया।
तब खुद उतर आए मैदान में
जब युद्ध में अयोध्या की सेना कमजोर पड़ने लगी तो श्री राम और शिव दोनो ही युद्ध के मैदान में उतर आए। शिव जी ने कहा कि हे राम, आप स्वंय विष्णु के दूसरे रूप हैं। मेरी आपसे युद्ध करने की इच्छा नहीं है। लेकिन मैंने वीरमणि को उसकी रक्षा का वरदान दिया था। इसी के बाद श्री राम और शिव जी के बीच युद्ध शुरू हो गया। युद्ध में राम ने पाशुपास्त्र से शिव जी पर वार किया। इस अस्त्र पर शिव का ही वरदान था कि इससे कोई भी पराजित नहीं हो सकता।
ये अस्त्र शिवजी के हृद्यस्थल में समां गया। वह संतुष्ट हुए। प्रसन्न शिव ने राम को वरदान दिया कि सारे योद्धाओं को जीवनदान मिलेगा। इसके बाद भगवान शिव की आज्ञा पर वीरमणि ने यज्ञ का घोड़ा लौटा दिया।