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भारत में एक ऐसी जगह जहां वर्जित है हनुमान जी की पूजा, रामायण से जुड़ी है ये दिलचस्प कहानी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 25, 2020 10:05 IST

उत्तराखंड के द्रोणागिरी गांव में हनुमान जी की पूजा नहीं होती है। इसका कारण यहां के लोगों की नाराजगी है। ये कहानी रामायण से जुड़ी है।

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ठळक मुद्देउत्तराखंड के द्रोणागिरी गांव में आज भी नहीं होती हनुमान जी की पूजारामायण और संजीवनी बूटी से जुड़ी है कहानी, यहां के लोग हनुमान जी से नाराज रहते हैं

भगवान राम के भक्त और मान्यताओं के अनुसार कलियुग में भी धरती पर मौजूद हनुमान जी हिंदुओं के प्रमुख अराध्य देवों में से एक हैं। भारत के कोने-कोने में हनुमान जी का मंदिर मिल जाएगा। हालांकि, क्या आप जानते हैं इसी देश में एक ऐसी भी जगह है जहां हनुमान जी की पूजा वर्जित है।

यहां किसी भी हाल में उनकी पूजा नहीं की जाती है। इसके पीछे ये कारण बताया जाता है कि यहां रहने वाले आज भी हनुमान जी के किए एक काम से नाराज हैं। दिलचस्प ये भी है कि ये जगह उत्तराखंड में स्थित है जिसे देवों की भूमि भी कहा गया है।

उत्तराखंड के द्रोणागिरी गांव में नहीं होती हनुमान जी की पूजा

उत्तराखंड का द्रोणागिरी गांव चमोली के जोशीमठ को नीती गांव से जोड़ने वाले मार्ग पर स्थित है। लगभग 14000 फीट की ऊंचाई पर बसे इस गांव के लोगों का मानना है कि हनुमान जी जिस पर्वत को संजीवनी बूटी के लिए अपने हाथों में उठाकर ले गये थे, वह यहीं स्थित था। द्रोणागिरी के लोग उस पर्वत की पूजा भी करते थे। 

इसलिए ऐसा कहा जाता है कि उस पर्वत को हनुमान जी द्वारा यहां से उठाकर ले जाने के कारण आज भी लोग नाराज हैं। यही कारण है कि इस गांव में उनकी पूजा नहीं की जाती है। यहां तक कि यहां लाल रंग का झंडा भी नहीं लगाया जाता है।

अब श्रीलंका में मौजूद है संजीवनी बूटी वाला पहाड़!

रामायण की कथा के अनुसार जब मेघनाद के बाण से लक्ष्मण बेहोश हो गये तो विभीषण के कहने पर एक वैद्य को लंका से बुलाया गया। उस वैद्य ने संजीवनी बूटी की पहचान बताते हुए उसे लाने के लिए कहा। यह कार्य हनुमान जी को सौंपा गया। हनुमान जब संजीवनी बूटी के लिए बताये गये स्थान पर पहुंचे तो उन्हें ठीक-ठीक इसके बारे में पता नहीं चल सका और इसलिए वे पूरा पर्वत ही उठा कर लंका चल पड़े।

श्रीलंका में श्रीपद नाम का एक पहाड़ है जिसके बारे में कहा जाता है कि ये वही पहाड़ है जिसे हनुमान जी भारत से उठाकर ले गये थे। यह करीब 2200 मीटर ऊंचा है। श्रीपद का मतलब यहां 'पवित्र पैर के निशान' से है। श्रीलंकाई लोग इसे रहुमाशाला कांडा कहते हैं। इस पर्वत को एडम्स पीक भी कहा जाता है। 

इस पहाड़ की बैद्ध धर्म में काफी मान्यता है। यहां मौजूद एक निशान को भगवान बुद्ध के बाएं पैर के निशान के तौर पर देखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि ये निशान तब के हैं जब बुद्ध पहली बार श्रीलंका आए थे। वहीं, हिंदू धर्म में इसे भगवान शिव के पैर के निशान के तौर पर देखा जाता है। मुस्लिम और ईसाई धर्म के लोग भी इस पहाड़ को एडम से जोड़ कर देखते हैं।

टॅग्स :हनुमान जीरामायणश्रीलंका
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