Karwa Chauth 2025: करवा चौथ का व्रत भारतीय संस्कृति में सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र व्रतों में से एक माना जाता है। इस वर्ष 10 अक्टूबर 2025 को करवा चौथ का व्रत रखा जाएगा।
यह पति-पत्नी के अटूट प्रेम, त्याग और अखंड सौभाग्य का प्रतीक है। इस व्रत को सबसे पहले किसने रखा था, इसे लेकर हिंदू धर्म में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से तीन प्रमुख हैं:
1. देवी पार्वती और भगवान शिव
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सबसे पहले करवा चौथ का व्रत देवी पार्वती ने ही अपने पति भगवान शिव के लिए रखा था। माता पार्वती ने यह कठिन व्रत इसलिए किया था ताकि उन्हें अखंड सौभाग्य (कभी न टूटने वाला वैवाहिक सुख) की प्राप्ति हो सके।
इस व्रत के प्रभाव से ही उन्हें भगवान शिव की अर्धांगिनी बनने का गौरव प्राप्त हुआ। इसीलिए सुहागिन स्त्रियाँ देवी पार्वती को पूजनीय मानकर उनसे अपने पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति का आशीर्वाद माँगती हैं।
यह कथा इस व्रत के आध्यात्मिक मूल को दर्शाती है, जहाँ एक पत्नी अपनी तपस्या से अपने पति के लिए चिरंजीवी होने की कामना करती है।
2. द्रौपदी और पांडव
महाभारत की एक कथा के अनुसार, जब पांडव अपने वनवास काल में थे और कई संकटों का सामना कर रहे थे, तब द्रौपदी अपने पतियों की सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित थीं।
द्रौपदी ने पांडवों को सभी संकटों से बचाने और उनकी सकुशल वापसी के लिए इस व्रत को किया था। अपनी परेशानी लेकर द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछा। तब भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से रखने की सलाह दी। श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन पर द्रौपदी ने यह व्रत किया। माना जाता है कि इसी व्रत के प्रभाव से पांडव अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने और सभी संकटों से सुरक्षित बाहर निकलने में सफल हुए।
3. वीरवती की कथा
वीरवती की कथा करवा चौथ के नियमों और इसके महत्व को समझाती है। वीरवती अपने सात भाइयों की इकलौती बहन थी। विवाह के बाद, अपने पहले करवा चौथ के व्रत में वह पूरे दिन की भूख-प्यास सहन नहीं कर पाई। अपनी बहन की यह पीड़ा देखकर, उसके भाइयों ने एक चाल चली। उन्होंने नगर के बाहर पीपल के पेड़ पर आग जलाकर छलनी से रोशनी दिखाई और वीरवती से कहा कि चाँद निकल आया है।
भाइयों के छल से अनजान वीरवती ने उस रोशनी को चाँद मानकर अर्घ्य दिया और व्रत तोड़ दिया। व्रत तोड़ते ही उसे खबर मिली कि उसके पति (राजा) की मृत्यु हो गई है। वीरवती ने विलाप किया और माँ पार्वती से प्रार्थना की। माँ पार्वती ने उसे बताया कि उसने छल से व्रत तोड़ा, इसलिए उसके पति की मृत्यु हुई। देवी के निर्देश पर, वीरवती ने अगले वर्ष पूरे विधि-विधान और अटूट श्रद्धा के साथ व्रत रखा। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर, स्वयं यमराज को उसके पति को जीवनदान देना पड़ा।
यह कथा बताती है कि करवा चौथ का व्रत श्रद्धा, भक्ति और निर्जला उपवास के नियमों का पालन करके ही फलदायी होता है, और एक पतिव्रता स्त्री की शक्ति उसके पति के जीवन की रक्षा कर सकती है।
इन विभिन्न कथाओं के बावजूद, करवा चौथ का मूल उद्देश्य एक ही है: एक पत्नी द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और अखंड सौभाग्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना करना।