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Kartik Purnima 2021: कार्तिक पूर्णिमा कल, जानिए स्नान-दान और पूजा का शुभ मुहूर्त

By रुस्तम राणा | Updated: November 18, 2021 13:42 IST

कार्तिक पूर्णिमा से मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी के समीप और तालाब, सरोवर या गंगा तट पर दीप जलाने से या दीप दान करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर सुख समृद्धि का वरदान देती हैं।

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हिन्दू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान, दीपदान और भगवान की आराधना का विधान है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से समस्त प्रकार से रोग-दोष और पापों से छुटकारा मिलता है। इस बार कार्तिक पूर्णिमा 19 नवंबर, शुक्रवार को है। महत्व पूर्ण बात ये है कि इस दिन चंद्रग्रहण भी लग रहा है। ये ग्रह सुबह 11 बजकर 34 मिनट से शाम 5 बजकर 33 मिनट तक रहेगा। हालांकि उपछाया चंद्रग्रहण होने के कारण यहां सूतक काल मान्य नहीं है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन वाराणसी में देव दिवाली भी मनाई जाती है। 

कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा तिथि शुरू: 18 नवंबर को सुबह 11 बजकर 55 मिनट से प्रारंभपूर्णिमा तिथि समाप्त: 19 नवंबर को दोपहर 02 बजकर 25 मिनट तक

इस विधि से करें गंगा स्नान

कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। अगर संभव ना हो तो घर में ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है। इसके बाद देवी तुलसी का पौधा और भगवान विष्णु की अर्चना करें।

कार्तिक पूर्णिमा का महत्‍व

कार्तिक पूर्णिमा से मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी के समीप और तालाब, सरोवर या गंगा तट पर दीप जलाने से या दीप दान करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर सुख समृद्धि का वरदान देती हैं। वहीं विष्णु जी को तुलसी पत्र की माला और गुलाब का फूल चढ़ाने से हर मनोकामना पूरी होती हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान की परंपरा भी है। मान्‍यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्‍नान करने से पुण्‍य प्राप्‍त होता है। शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत के लिए भी कार्तिक पूर्णिमा का दिन बेहद अच्‍छा माना जाता है।

पौराणिक कथा

हिन्दू धर्म के अनुसार त्रिपुरासुर ने देवताओं को पराजित कर उनके राज्‍य छीन लिए थे। भगवान शिव ने इसी दिन त्रिपुरासुर का वध किया था। इसीलिए इसे त्रिपुरी पूर्णिमा या त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। उसकी मृत्‍यु के बाद देवताओं में उल्लास था। इसलिए इस दिन को देव दिवाली कहा गया। देवताओं ने स्‍वर्ग में दीये जलाए थे।

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