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Jivitputrika Vrat 2019: जिउतिया व्रत की कथा क्या है और महिलाएं क्यों करती हैं इसे, जानिए

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 14, 2019 11:21 IST

Jivitputrika Vrat 2019: जिउतिया व्रत पुत्रों की लंबी उम्र और स्वस्थ्य जीवन की कामना के लिए किया जाता है। यह व्रत हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है।

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ठळक मुद्देअश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है जिउतिया निर्जला उपवास करती हैं महिलाएं, इस व्रत को जिउतिया या जितिया व्रत भी कहते हैं

Jivitputrika Vrat 2019: हिन्दू धर्म में कई व्रत हैं जिनका अपना-अपना महत्व है। कुछ व्रतों का आधार धार्मिक है तो वहीं कुछ क्षेत्रीय परंपराओं के आधार पर किये जाते हैं। ऐसा ही एक व्रत ‘जीवित्पुत्रिका व्रत’ है। यह व्रत मुख्य रूप से नेपाल के कुछ इलाकों, बिहार, यूपी में मनाया जाता है।

यह व्रत महिलाएं अपने पुत्र की लंबी उम्र और स्वस्थ्य जीवन की कामना के लिए करती हैं। इस व्रत में वे निर्जला उपवास करती हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। वैसे इस व्रत की शुरुआत सप्तमी से नहाय-खाय के साथ हो जाती है और नवमी को पारण के साथ इसका समापन होता है। इसे जिउतिया या जितिया व्रत भी कहते हैं।

Jivitputrika Vrat 2019: जिउतिया व्रत की कथा 

कथा के अनुसार गन्धर्वों के एक राजकुमार थे जिनका नाम ‘जीमूतवाहन’ था। वह बहुत उदार और परोपकारी थे। बहुत क्रम में उन्हें सत्ता मिल गई थी लेकिन उन्हें वह मंजूर नहीं था। इनका मन राज-पाट में नहीं लगता था। ऐसे में वे राज्य छोड़ अपने पिता की सेवा के लिए वन में चले गये। वहीं उनका मलयवती नाम की एक राजकन्या से विवाह हुआ।

एक दिन जब वन में भ्रमण करते हुए जीमूतवाहन ने वृद्ध महिला को विलाप करते हुए दिखी। उसका दुख देखकर उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने वृद्धा की इस अवस्था का कारण पूछा। इस पर वृद्धा ने बताया, 'मैं नागवंश की स्त्री हूं और मेरा एक ही पुत्र है। पक्षीराज गरुड़ के सामने प्रतिदिन खाने के लिए एक नाग सौंपने की प्रतिज्ञा की हुई है, जिसके अनुसार आज मेरे ही पुत्र ‘शंखचूड़’ को भेजने का दिन है। आप बताएं मेरा इकलौता पुत्र बलि पर चढ़ गया तो मैं किसके सहारे अपना जीवन व्यतीत करूंगी।

यह सुनकर जीमूतवाहन का दिल पसीज उठा। उन्होंने कहा कि वे उनके पुत्र के प्राणों की रक्षा करेंगे। जीमूतवाहन ने कहा कि वे स्वयं अपने आपको उसके लाल कपड़े में ढककर वध्य-शिला पर लेट जाएंगे। जीमूतवाहन ने आखिकार ऐसा ही किया। ठीक समय पर पक्षीराज गरुड़ भी पहुंच गए और वे लाल कपड़े में ढके जीमूतवाहन को अपने पंजे में दबोचकर पहाड़ के शिखर पर जाकर बैठ गए।

गरुड़जी यह देखकर आश्चर्य में पड़ गये कि उन्होंने जिन्हें अपने चंगुल में गिरफ्तार किया है उसके आंख में आंसू और मुंह से आह तक नहीं निकल रहा है। ऐसा पहली बार हुआ था। आखिरकार गरुड़जीने जीमूतवाहन से उनका परिचय पूछा। पूछने पर जीमूतवाहन ने उस वृद्धा स्त्री से हुई अपनी सारी बातों को बताया। पक्षीराज गरुड़ हैरान हो गए। उन्हें इस बात का विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई किसी की मदद के लिए ऐसी कुर्बानी भी दे सकता है।

गरुड़जी इस बहादुरी को देख काफी प्रसन्न हुए और जीमूतवाहन को जीवनदान दे दिया। साथ ही उन्होंने भविष्य में नागों की बलि न लेने की भी बात कही। इस प्रकार एक मां के पुत्र की रक्षा हुई। मान्यता है कि तब से ही पुत्र की सुरक्षा हेतु जीमूतवाहन की पूजा की जाती है।

टॅग्स :बिहारउत्तर प्रदेशनेपाल
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