Shiva Holi: कामदेव और शिव शंकर की कथा?, होली से क्या है संबंध?
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 14, 2025 05:23 IST2025-03-14T05:23:11+5:302025-03-14T05:23:11+5:30
Shiva Holi: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलाष्टक के दौरान आठ ग्रह उग्र अवस्था में रहते हैं इसलिए होलाष्टक के समय कोई शुभ व मांगलिक कार्यक्रमों का आयोजन नहीं किया जाता है।

सांकेतिक फोटो
Shiva Holi: हिंदू सनातन धर्म में होली एक प्रमुख त्योहार है। भारत सहित दुनियाभर में रहने वाले हिंदू हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा रात्रि में होलिका दहन करते हैं और उसके अगले दिन होली मनाते हैं। होली का त्योहार होलिका दहन के साथ ही शुरू होता है, फिर इसके अगले दिन रंग-गुलाल के साथ होली खेली जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलाष्टक के दौरान आठ ग्रह उग्र अवस्था में रहते हैं इसलिए होलाष्टक के समय कोई शुभ व मांगलिक कार्यक्रमों का आयोजन नहीं किया जाता है। इस होली में साल का पहला चंद्र ग्रहण भी लगने जा रहा है।
ज्योतिष गणनाओं के अनुसार चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। इसलिए होली पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। होली पर लोग आपसी मतभेद भुलाकर एक दूसरे को रंग लगाते हैं। इसके अलावा होली को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक के तौर भी मनाया जाता है। इसके अलावा भी होली को लेकर भारत में कई तरह की पौराणिक कहानियां या किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं।
Shiva Holi: होली की शिवकथा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होली को लेकर शिव और कामदेव की एक कथा बेहद प्रचलित है। होली से जुड़ी कामदेव और शिव शंकर की कथा पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवी पार्वती शिव जी से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन गहन तपस्या में लीन भगवान भोलेनाथ का ध्यान उनकी ओर नहीं गया।
जब मां पार्वती से प्रभु निलकंठ की समाधी नहीं टूटी को प्रेम के देवता कामदेव मां की सेवा में उपस्थित हुए। उन्होंने प्रभु शिव की समाधि भंग करने के लिए उन्हें लक्षित करके पुष्प बाण चला दिया, जिसके कारण महादेव की तपस्या भंग हो गई। तपस्या भंग होने की वजह से भगवान शिव बेहद क्रुद्ध हुए। उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और कामदेव प्रभु शिव के क्रोधग्नि में जलकर भस्म हो गए।
उसके बाद शिव जी ने पार्वती की ओर देखा। इस करह से हिमवान की पुत्री पार्वती की आराधना सफल हुई और शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया लेकिन कामदेव के भस्म होने के बाद उनकी पत्नी रति को असमय ही वैधव्य सहना पड़ा। उसके बाद रति ने शिव की घोर आराधना की। जब शिव अपने निवास पर लौटे।
तो कहते हैं कि रति ने भोलनाथ को अपनी सारी व्यथा और कामदेव के बिना अपना जीवन नर्क के समान बताया। रति कि करुण दशा देखकर प्रभु शिव को भान हुआ कि कामदेव तो सर्वथा निर्दोष हैं क्योंकि उन्होंने माता पार्वती की सहायता के लिए उनपर पुष्पबाण चलाया था। दरअसल पूर्व जन्म में हुए दक्ष प्रसंग में प्रभु शिव को अपमानित होना पड़ा था।
दक्ष द्वारा किये गये शिव के अपमान से आहत होकर दक्षपुत्री सती ने आत्मदाह कर लिया था। उन्हीं सती ने पार्वती के रूप में जन्म लिया और इस जन्म में भी शिव का ही वरण किया। कामदेव का दोष मात्र इतना था कि उन्होंने प्रभु की समाधि तुड़वाने में मां पार्वती का सहयोग किया था।
इसके बाद शिव जी कामदेव को जीवित कर दिया। उसे नया नाम दिया मनसिज। प्रभु शिव ने कहा कि अब तुम अशरीरी हो। उस दिन फागुन की पूर्णिमा थी। आधी रात गए लोगों ने होली का दहन किया था। सुबह तक उसकी आग में वासना की मलिनता जलकर प्रेम के रूप में प्रकट हो चुकी थी।
कामदेव अशरीरी भाव से नए सृजन के लिए प्रेरणा जगाते हुए विजय का उत्सव मनाने लगे। यही दिन होली का दिन होता है। उत्तर भारत में वहीं कई जगहों पर होली के समय आज भी रति के विलाप को लोकधुनों और संगीत में उतारा जाता है।