Hanuman Jayanti: हनुमान जी बल और बुद्धि के भगवान माने गए हैं। भक्तों के बीच उनकी सबसे बड़ी पहचान रामभक्त के रूप में है। हनुमान जी को लेकर ऐसी भी मान्यता है कि वे अमर हैं और आज भी पृथ्वी लोक पर मौजूद हैं। यही वजह है कि धरती पर जहां भी राम कथा होती है, वहां एक जगह खाली छोड़ी जाती है। मान्यता है कि वहां स्वयं हनुमान आकर विराजते हैं। इन सबके बीच एक मान्यता य़े भी है कि हनुमान की पूजा करने वाले हमेशा शनिदेव के प्रकोप से बचे रहते हैं। शनिदेव कभी भी हनुमान जी के भक्तों पर अपनी वक्र दृष्टि नहीं डालते हैं। आखिर क्यों ऐसा कहा जाता है? क्या है कहानी, आईए जानते हैं...
हनुमान जी के भक्तों पर नहीं पड़ता शनिदेव का प्रकोप
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार हनुमान जी समुद्र के किनारे अपने अराध्य श्रीराम के ध्यान में डूबे थे। ठीक उसी समय उनसे कुछ दूर सूर्यपुत्र शनि भी विचरण कर रहे थे। शनिदेव को उस समय अपनी शक्ति का बहुत घमंड था। उनकी वक्र दृष्टि गीली बालू पर जहां-जहां पड़ती, वहां का बालू सूख जाता। यह देश शनि का अहंकार और बढ़ जाता था।
ऐसे ही घूमते-घूमते उनकी नजर वहीं रेत पर ध्यान लगाए बैठे हनुमान जी पर पड़ी। हनुमान जी को देखते हुए शनि देव के दिमाग में शरारत सूझी। उन्होंने उन्हें परेशान करने के लिए वानर कहते हुए संबोधित किया और आखें खोलने के लिए कहा। शनिदेव ने अपने अहंकार में हनुमान जी को चेतावनी दी कि वे उनकी सुख-शांति नष्ट कर देंगे और कहा कि इस ब्रह्मांड में कोई नहीं जो उनका सामना कर सके।
शनिदेव की बातों को ऐसे दिया हनुमान जी ने जवाब
शनिदेव को लगा कि उनकी धमकी भरी बातें सुनकर हनुमान जी उनके चरणों में गिर जाएंगे। हनुमान जी ने अपनी आंखे खोली और विनम्रता पूर्वक पूछा महाराज आप कौन हैं और इस तपती बालू पर चलते हुए क्यों कष्ट उठा रहे हैं। कोई सेवा हो तो बताएं।'
यह सुनकर शनिदेव का गुस्सा बढ़ गया। उन्हें हनुमान जी द्वारा उनका परिचय पूछना अपमान जैसा लगा। उन्होंने कहा- मूर्ख तू मुझे नहीं जानता। मैं शनि हूं। आज मैं तेरी राशि पर आ रहा हूं। साहस हो तो मुझे रोक ले। इस पर हनुमान जी ने फिर विनम्रतापूर्वक कहा- 'महाराज आप अपना पराक्रम कहीं और जाकर दिखाएं और मुझे श्रीराम की अराधना करने दें।'
हनुमान ने दिखाया रौद्र रूप
हनुमान जी के लगातार जवाब सुनकर शनिदेव के क्रोध का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने हनुमान जी का एक बांह पकड़ा और अपनी ओर खींचने लगे। अब तो हनुमान जी का भी धैर्य जवाब दे गया। उन्होंने श्रीराम का नाम लेकर धीरे-धीरे अपनी पूंछ बढ़ानी शुरू कर दी।
इसके बाद हनुमान जी ने अपने पूंछ में शनिदेव को पूरी तरह जकड़ लिया। गुस्से में शनिदेव को अहसास नहीं रहा कि हनुमान जी को खींचने की बजाय वह खुद फंसते जा रहे हैं। जब तक कुछ पत चलता काफी देर हो चुकी थी। इसके बाद शनिदेव हनुमान जी की पूंछ की लपेट तोड़ने की कोशिश करने लगे लेकिन सफल नहीं हो पा रहे थे।
इससे शनिदेव का गुस्सा और बढ़ गया और उन्होंने फिर चीखकर कर कहा- 'तुम क्या श्रीराम भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। देखो मैं तुम्हारे साथ क्या करता हूं।'
श्रीराम के बारे में सुनकर हनुमान जी का भी क्रोध बढ़ गया। उन्होंने उछल-उछलकर समुद्र तट पर तेजी से दौड़ना शुरू कर दिया। उनकी लंबी पूंछ कहीं शिलाओं से टकराती, कहीं बालू पर घिसटती तो कहीं नुकीली शाखाओं वाले वृक्षों और कंटीली झाड़ियों से रगड़ खाती। इससे शनिदेव का हाल बेहाल होने लगा। उनके वस्त्र फट गए। सारे शरीर पर खरोंचे लग गई।
शनिदेव के क्षमा मांगने पर हनुमान जी हुए शांत
शनि ने स्थिति बिगड़ती देख मदद के लिए सभी देवताओं का आह्वान किया। हालांकि फायदा नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने खुद हनुमानजी से क्षमा की गुहार की। उन्होंने माफी मांगते हुए हनुमानजी से कहा- मुझसे बड़ी गलती हो गई। मुझे अपने अहंकार का फल मिल गया। मुझे माफ कर दीजिए। भविष्य में मैं आपकी छाया से भी दूर रहूंगा।
हनुमानजी इसके बाद रूके और कहा कि केवल मेरी छाया नहीं मेरे भक्तों की छाया से भी दूर रहना। शनिदेव ने तभी वचन दिया कि वे हनुमान जी के भक्तों सहित उनसे भी दूर रहेंगे जो उनका नाम लेते हैं।