Hanuman Jayanti 2023: भारत में वह जगह जहां हनुमानजी की पूजा करने की मनाही है, क्या है वजह और इसकी रोचक कहानी?
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: April 4, 2023 15:13 IST2023-04-04T15:10:40+5:302023-04-04T15:13:49+5:30
Hanuman Jayanti 2023: हनुमान जी की पूजा पूरे भारत में की जाती है। हालांकि एक जगह ऐसी भी जहां हनुमान जी की पूजा वर्जित है। इसकी कहानी रामायण काल से जुड़ी है।

भारत में वह जगह जहां हनुमानजी की पूजा करने की मनाही है!
Hanuman Jayanti 2023: हनुमान जयंती इस बार 6 अप्रैल को मनाई जा रही है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। हनुमान जी की भक्तों के बीच एक पहचान भगवान राम के सबसे बड़े भक्त के तौर पर भी है। साथ ही वह बल और बुद्धि के देव माने गए हैं।
हनुमान जी के बारे में यह भी कहा जाता है कि वह अमर हैं और कलयुग में भी धरती पर मौजूद हैं। पूरे भारत में लगभग हर शहर में आपको हनुमान जी के मंदिर जरूर नजर आएंगे लेकिन एक ऐसी जगह भी है जहां हनुमानजी की पूजा वर्जित है। जनिए...क्या है ये पूरी कहानी।
उत्तराखंड का एक गांव जहां हनुमान जी का नाम लेना 'गुनाह' है
उत्तराखंड के चमोली में मौजूद द्रोणागिरी गांव के लोग हनुमान जी से नाराज हैं और इसलिए उनकी पूजा नहीं करते हैं। इसके पीछे की वजह भी बेहद दिलचस्प है और कहानी रामायण काल से जुड़ी है। लगभग 14000 फीट की ऊंचाई पर बसे इस गांव के लोगों का मानना है कि हनुमान जी जिस पर्वत को संजीवनी बूटी के लिए उठाकर ले गये थे, वह यहीं स्थित था।
द्रोणागिरी के लोग तब उस पर्वत की पूजा भी करते थे। इसलिए उस पर्वत को हनुमान जी द्वारा यहां से उठाकर ले जाने के कारण आज भी यहां के लोग नाराज हैं। यही कारण है कि इस गांव में उनकी पूजा नहीं की जाती है। हनुमान जी का कोई मंदिर भी इस गांव में नहीं है।
श्रीलंका चला गया उत्तराखंड का पहाड़!
रामायण की कथा के अनुसार जब मेघनाद के बाण से लक्ष्मण बेहोश हो गये तो विभीषण के कहने पर एक वैद्य को लंका से बुलाया गया। उस वैद्य ने संजीवनी बूटी की पहचान बताते हुए उसे लाने के लिए कहा। यह काc हनुमान जी को सौंपा गया। हनुमान जब संजीवनी बूटी के लिए बताये गये स्थान पर पहुंचे तो उन्हें ठीक-ठीक इसके बारे में पता नहीं चल सका और इसलिए वे पूरा पर्वत ही उठा कर लंका चल पड़े।
श्रीलंका में श्रीपद नाम का एक पहाड़ है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह वही पहाड़ है जिसे हनुमान जी भारत से उठाकर ले गये थे। श्रीपद का मतलब यहां 'पवित्र पैर के निशान' से है। श्रीलंकाई लोग इसे रहुमाशाला कांडा कहते हैं। इस पर्वत को एडम्स पीक भी कहा जाता है।
श्रीलंका में मौजूद इस पहाड़ की बैद्ध धर्म में भी काफी मान्यता है। यहां मौजूद एक निशान को भगवान बुद्ध के बाएं पैर के निशान के तौर पर देखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि ये निशान तब के हैं जब बुद्ध पहली बार श्रीलंका आए थे। वहीं, हिंदू धर्म में इसे भगवान शिव के पैर के निशान के तौर पर देखा जाता है। दूसरी ओर मुस्लिम और ईसाई धर्म के लोग भी इस पहाड़ को एडम से जोड़ कर देखते हैं।