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Guru Gobind Singh Jayanti 2020: गुरु गोबिंद सिंह ने दिया था 'पंच ककार' का सिद्धांत, जानिए क्या है इनका महत्व

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 2, 2020 08:20 IST

Guru Gobind Singh Jayanti 2020: गुरु गोबिंद सिंह सिखों के सिखों के दसवें गुरु हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही पांच ककार का सिद्धांत दिया जिसका सिख धर्म में आज भी बहुत महत्व है।

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ठळक मुद्देGuru Gobind Singh Jayanti 2020: आज गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंतीबिहार के पटना में हुआ था गुरु गोबिंद सिंह का जन्म, सिख धर्म में पंच ककार का दिया था सिद्धांत

Guru Gobind Singh Jayanti 2020:गुरु गोबिंद सिंह जी की आज जयंती है। ये पर्व सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी के जन्मदिन का प्रतीक है। बिहार की राजधानी पटना में जन्में गुरु गोबिंद सिंह को गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा करने और इस पवित्र किताब को गुरु रूप में स्थापित करने का भी श्रेय है। साथ ही उन्होंने पांच ककार का सिद्धांत भी दिया जिसका सिख धर्म में आज भी बहुत महत्व है।

सिख धर्म में इन ककार को सभी खालसा सिखों को धारण करना अनिवार्य माना गया है। इसमें केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कछहरा शामिल है। मान्यता है कि इन सभी के बिना किसी भी खालसा का वेश पूरा नहीं माना जाता है। आइए जानते हैं, क्या हैं ये पांच ककार और क्या है इनका महत्व.... 

खालसा पंथ की स्थापना

ये वह समय था जब जब औरंगजेब का शासन था। उसके अत्याचारों से तंग आकर गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों को एकजुट किया। यह 1699 का बैसाखी का दिन था। दूर दूर से संगत को न्योता भेजा गया। लाखों की संख्या में लोग एकत्र हुए। उसी दिन गुरु गोबिंद  ने 'खालसा पंथ' की स्थापना की। 'पांच प्यारों' को अमृत छका कर सिख से 'सिंह' बनाया और उन्हें ‘पांच ककार’ धारण कराये। खालसा का मतलब ये हुआ कि वह सिख जो गुरु से जुड़ा है और किसी का गुलाम नहीं है। वह पूरी तरह से स्वतंत्र है।

सिख धर्म के ये हैं पांच ककार

सिख धर्म के पांच ककार हैं- कंघा, कड़ा, किरपान, केश (बाल) और कछहरा हैं। इनमें सबसे पहला ककार कंघा है। एक अमृतधारी सिख साधारण नहीं, बल्कि लकड़ी के कंघे का इस्तेमाल करता है। वह इसे अपने बालों में पगड़ी के नीचे धारण करता है। वहीं, दूसरा ककार कड़ा है। नियम के अनुसार ये कड़ा दाहिने हाथ में पहना जाना चाहिए। सिख धर्म में इस कड़े को सुरक्षा का प्रतीक माना गया है। 

सिख धर्म में पांच ककार में कछहरा भी शामिल है। आम तौर पर जिस तरह के अंदरूनी वस्त्र लोग पहनते हैं, यह कछहरा उससे अलग है। नियमों के अनुसार यह कछहरा सूती कपड़े का ही होना चाहिए। इसे इस उद्येश्य से बनाया कि उस जमाने में जब सिख योद्धा युद्ध के मैदान में जाएं तो घुड़सवारी करते समय या युद्ध करते समय उनका तन भी ढका रहे और परेशानी भी नहीं हो। तब कछहरा पहनने की रीति बनाई गई। 

सिख धर्म की पहचान केश या बाल भी है। गुरु गोबिंद सिंह जी के अनुसार केश ‘अकाल पुरख’ की ओर से सिख को दी गई देन है, एक सम्मान है जिसे कभी भी खुद से अलग नहीं करना चाहिए। इसलिए एक अमृतधारी सिख या किसी भी सिख को अपने बाल नहीं कटवाने चाहिए। यही कारण है कि सिख पगड़ी बांधते हैं।

साथ ही अमृतधारी सिख हर समय अपने कमर के पास एक छोटी किरपान भी रखते हैं। यह भी पांच ककारों में से एक है। नियमों के अनुसार इसे 24 घंटे पहने रखना जरूरी होता है। गुरु गोबिंद सिंह जी की शिक्षा के अनुसार अनुसार एक सिख को हमेशा 'बुराई' से लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए।

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