Gombe Habba Festival 2024: नवरात्रि के लिए कर्नाटक गोम्बे हब्बा के लिए तैयार

By अनुभा जैन | Updated: October 6, 2024 16:39 IST2024-10-06T16:39:03+5:302024-10-06T16:39:03+5:30

Gombe Habba 2024 Date: गुड़ियों के माध्यम से भारतीय इतिहास और पुराणों की कहानियों को बताना कर्नाटक में गोम्बे हब्बा (गुड़ियों का त्यौहार) के रूप में जानी जाने वाली एक पुरानी परंपरा है। 

Gombe Habba Festival 2024 Karnataka gears up for Gombe Habba for Navratri | Gombe Habba Festival 2024: नवरात्रि के लिए कर्नाटक गोम्बे हब्बा के लिए तैयार

Gombe Habba Festival 2024: नवरात्रि के लिए कर्नाटक गोम्बे हब्बा के लिए तैयार

बेंगलुरु: दक्षिण भारत में दशहरा और नवरात्रि के उत्सव की विशिष्ट अभिव्यक्ति क्षेत्रीय परंपराओं और कथाओं द्वारा दर्शाई जाती है। त्यौहार की एक ऐसी ही अनूठी अभिव्यक्ति गुड़ियों की सजावट या डॉल डिस्प्ले है। गुड़ियों के माध्यम से भारतीय इतिहास और पुराणों की कहानियों को बताना कर्नाटक में गोम्बे हब्बा (गुड़ियों का त्यौहार) के रूप में जानी जाने वाली एक पुरानी परंपरा है। 

हर साल दशहरा गुड़िया या गोम्बे हब्बा की परंपरा का जश्न नवरात्रि के समय मुख्य स्थान ले लेता है। भारतीय कला और संस्कृति का प्रदर्शन और डॉल नेरेशन थीम की एक श्रृंखला के साथ इस परंपरा को जीवित रखना शारदा नवरात्रि के समय में बेंगलुरु और पूरे कर्नाटक के घरों में आम तौर पर देखा जा सकता है। गुड़ियों के त्यौहार में लकड़ी और मिट्टी की कई तरह की गुड़िया एकत्र करना और उन्हें एक बहु-मंच पर प्रस्तुत करना शामिल है। 

गोम्बे हब्बा थीम- गुड़ियों का प्रदर्शन रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता और हिंदू पुराणों की कहानियों पर केंद्रित होने के साथ ही चार धाम, तिरुपति, कैलाश मानसरोवर आदि तीर्थस्थलों पर भी प्रकाश डाला जाता है। लोग इन गुड़ियों के माध्यम से पुरी की प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा और तिरुपति ब्रह्मोत्सवम भी प्रदर्शित करते हैं। 

इसी क्रम में, बेंगलुरु के भारतीय विद्या भवन में अनूठी गुड़ियों की व्यवस्था के माध्यम से पौराणिक महाकाव्य रामायण का प्रदर्शन देखा जा सकता है। रामायण के 10 विषयों को बताने के लिए लगभग 2500 गुड़ियों को रखा गया है। इस महाकाव्य के कई पहलुओं को गुड़ियों के माध्यम से दर्शाया गया है। विषयगत प्रस्तुति रामायण के विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है- चाहे वह भगवान राम की वीरता हो, सीता माँ का भगवान राम के प्रति अटूट स्नेह हो, हनुमान की माँ सीता और भगवान राम के लिए निस्वार्थ सेवा हो या कई अन्य लोगों की बिना शर्त वफादारी हो। 

क्या है रिवाज- गुड़िया उत्सव नवरात्रि के पहले दिन से शुरू होता है। इन नौ दिनों के दौरान, गुड़ियों को फिर से व्यवस्थित नहीं किया जाता है या उन्हें छुआ भी नहीं जाता है क्योंकि माना जाता है कि वे अब जीवित हो गई हैं। हर सुबह गुड़ियों और कलश की पूजा फूलों, प्रार्थनाओं और प्रसाद के साथ की जाती है। विजयादशमी के दिन गुड़ियों की अंतिम पूजा की जाती है। 

गोम्बे हब्बा कलश को उत्तर दिशा में हिलाने के साथ समाप्त होता है और यह इस बात का प्रतीक है कि कोई देवी को अलविदा कह रहा है। गुड़ियों को सुला दिया जाता है और फिर उन्हें अगले नवरात्रि के दौरान जगाया जाता है। कर्नाटक में गोम्बे हब्बा की विशेषता पट्टाडा गोम्बे है - लकड़ी और मिट्टी से बनी गुड़ियों की जोड़ी और राजा और रानी की पोशाक। विजयनगर साम्राज्य के समय से मैसूर वोडेयार ने इस परंपरा को जारी रखा। पट्टाडा गोम्बे की एक जोड़ी नवविवाहित बेटी को उसके माता-पिता द्वारा उपहार में दी जाती है और ऐसा माना जाता है कि पट्टाडा गोम्बे एक विवाहित जोड़ा है जो नवरात्रि के दौरान लड़की के मायके आया है। 

गोम्बे हब्बा से जुड़ी किवदंतियां- गुड़िया प्रदर्शन की प्रासंगिकता को समझाने के लिए कुछ कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। कुछ लोगों का मानना है कि त्यौहार की नौ रातों के दौरान सभी गुड़ियांएं जीवित हो जाती हैं और उन्हें विजयदशमी या दशहरा की रात को फिर से सुला देना चाहिए। एक अन्य मान्यता के अनुसार, ये गुड़ियांएं देवी की सेना का प्रतिनिधित्व करती हैं। एक और व्याख्या यह है कि गुड़िया बुराई के खिलाफ लड़ाई में देवी की ऊर्जा हैं। लेकिन गुड़िया की व्यवस्था के पीछे आम धारणा इन नौ रातों में कलश की पूजा के माध्यम से दिव्य देवी को घर आमंत्रित करना है।

यह उल्लेख करना उचित है कि ये गुड़ियांएं एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंपी जाती हैं। मेरा मानना है कि ये रंगीन गुड़ियांएं हमारे पुराणों और सांस्कृतिक विरासत में निहित सार्थक संदेश और जीवन के सबक देती हैं। गुड़िया उत्सव हमारे देश के शिल्पकारों के कौशल का जश्न मनाने और भारत में गुड़िया बनाने की प्राचीन परंपरा को प्रदर्शित करने का एक सुअवसर है।

Web Title: Gombe Habba Festival 2024 Karnataka gears up for Gombe Habba for Navratri

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