चीन में नहीं भारत में पाई गई है गणेशजी की सबसे प्राचीन मूर्ति, मुंबई में लगी है प्रदर्शनी
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 28, 2019 09:06 AM2019-08-28T09:06:31+5:302019-08-28T09:06:31+5:30
मुंबई की जहांगीर आर्ट गैलरी में मंगलवार को आकृति आयोजित डॉ. प्रकाश कोठारी की प्रदर्शनी का उद्घाटन हुआ। इस अवसर पर उच्च शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े, प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक मधुर भांडारकर और संगीतकार विशाल भारद्वाज तथा पुरातत्वविद् रविशंकर उपस्थित थे।
मुंबई की जहांगीर आर्ट गैलरी में मंगलवार को आकृति आयोजित डॉ. प्रकाश कोठारी की प्रदर्शनी का उद्घाटन हुआ। इस अवसर पर उच्च शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े, प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक मधुर भांडारकर और संगीतकार विशाल भारद्वाज तथा पुरातत्वविद् रविशंकर उपस्थित थे।
पुरानी से पुरानी कलाकृतियों और वस्तुओं के संग्रहकर्ता डॉ. प्रकाश कोठारी ने दावा किया है कि गणेशजी की सबसे पुरानी मूर्ति चीन में नहीं, बल्कि भारत में ही पाई गई है। उन्होंने कहा है कि यह मूर्ति दूसरी या तीसरी शताब्दी की हो सकती है। स्थानीय के.ई.एम. अस्पताल के सेक्सुअल मेडिसिन विभाग के संस्थापक तथा चिकित्सा जगत के जाने-माने यौन विशेषज्ञ डॉ. कोठारी के अनूठे शौक ने वो कमाल कर दिखाया है, जो न सिर्फ प्रशंसनीय है बल्कि उनकी तपस्या को भी दर्शाता है।
उन्हें पता नहीं था कि विभिन्न प्रकार के 'गणेशजी' इकट्ठा करते-करते वे अपने कार्यों को एक पुस्तक का रूप दे सकेंगे। मुंबई के जहांगीर आर्ट गैलरी में मंगलवार को महाराष्ट्र के उच्च शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े, प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर और संगीतकार विशाल भारद्वाज तथा पुरातत्वविद् रविशंकर के हाथों डॉ. कोठारी की टेबल बुक 'गणेशा: थ्रू दि एजेस' (विभिन्न युगों के गणेश) का विमोचन हुआ और प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया। पुस्तक में गणेशजी की एकमात्र ऐसी मूर्ति का चित्र है, जिसे दो हाथ हैं और एक कुंडल है।
इस मौके पर डॉ. कोठारी ने कहा कि उन्हें काफी पहले से विभिन्न पुरानी कलाकृतियों को इकट्ठा करने का शौक था। इसी क्रम में उन्होंने गणेशजी की विभिन्न सामग्री से बनी मूर्तियां और चित्रकृतियां इकट्ठा कीं। आज उनके पास पहली शताब्दी से लेकर 21वीं शताब्दी तक की मूर्तियां हैं। उन्होंने कहा कि पहले यह माना जाता रहा है कि गणेशजी की सबसे पुरानी मूर्ति चीन में ईस्वी 531 की पाई गई थी, लेकिन पिछले दिनों में उन्हें ऐसी मूर्ति हाथ लगी है, जिसे पुरातत्व विशेषज्ञों ने दूसरी या तीसरी शताब्दी की करार दिया है।
इस मूर्ति के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए डॉ. कोठारी ने देशभर के कई पुरातत्व विशेषज्ञों से संपर्क किया। इसके बाद वे सभी एक नतीजे पर पहुंचे हैं। उन्होंने कहा कि पहले पश्चिमी मान्यता के अनुसार गणेशजी को 'विघ्नकर्ता' माना जाता था, लेकिन ऐतिहासिक प्रमाणों से बाद में यह सिद्ध हुआ कि गणेशजी कभी भी विघ्नकर्ता नहीं, बल्कि विघ्नहर्ता के रूप में स्थापित हुए। उन्होंने बताया कि उनके पास गणेशजी की जो मूर्तियां हैं, वे टेरा-कोटा, पत्थर, धातु, लकड़ी और हड्डियों से बनी हुई हैं। साथ ही जो चित्रकृतियां हैं वे विभिन्न कांचों, पोर्सेलिन मोल्ड्स, पुराने सिक्कों और देश-विदेश के पोस्टकार्ड पर बनी हुई हैं।
इस मौके पर तावड़े, भंडारकर और भारद्वाज ने भी संक्षिप्त में संबोधित किया। आरंभ में कविता देशपांडे ने गणेशजी का स्तुतिगान किया। कार्यक्रम का संचालन उर्वशी ने किया। इस मौके पर विभिन्न स्थानों से कला की समझ रखने वाले लोग मौजूद थे। मूर्तियों और चित्रकृतियों की प्रदर्शनी डॉ. प्रकाश कोठारी द्वारा इकट्ठा की गई मूर्तियों और चित्रकृतियों की प्रदर्शनी भी आयोजित की गई है। यह प्रदर्शनी 2 सितंबर तक सुबह 11 बजे से शाम 5 बजे तक खुली रहेगी।
इसमें सभी शताब्दियों की गणेशजी की कलाकृतियां रखी गई हैं। शौक से शुरुआत की और संग्रह हो गया डॉ. कोठारी ने कहा, 'मुझे पहले से ही दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह करने का शौक था। इसी वजह से अब तक 2000 वर्ष पूर्व की 60 से अधिक कला-वस्तुओं का संग्रह मेरे पास है। इनमें गणेशजी के 200 विविध स्वरूपों की कलाकृतियां शामिल हैं।
अपने संग्रह को और समृद्ध करने के लिए विविध स्थानों पर जाता रहता हूं। चोर बाजार से लेकर नीलामी तक में जाता हूं और वस्तुओं को एकत्रित करता हूं। इसी वजह से अब मेरे पास गणेशजी की कलाकृतियों और मूर्तियों का भरपूर संग्रह हो गया है।'