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Eid- Ul-AZha 2024: कुर्बानी का त्योहार ईद-उल-अजहा, जानिए क्यों मनाई जाती है बकरीद?

By रुस्तम राणा | Updated: June 15, 2024 14:39 IST

Bakrid 2024: बकरीद के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग ईदगाहों और मस्जिदों में जमात के साथ नमाज अदा करते हैं। त्योहार की शुरुआत सुबह नमाज अदा करने के साथ होती है। लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के घर भी जाते हैं और एक दूसरे को बधाई देते हैं। 

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Eid- Ul-AZha 2024: इस साल बकरीद पूरे भारत में 17 जून, सोमवार को मनाई जाएगी। बकरीद मुस्लिम धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार है। इसे कुर्बानी का त्योहार भी कहा जाता है। रमजान महीना खत्म होने के करीब 70 दिन बाद और इस्लामिक कैलेंडर जु अल-हज्जा महीने के 10वें दिन बकरीद (Bakrid) का त्योहार मनाया जाता है। इस्लाम मजहब में इस दिन अल्लाह के नाम कुर्बानी देने की परंपरा है। मुसलमान इस दिन नामज पढ़ने के बाद खुदा की इबादत में चौपाया जानवरों की कुर्बानी देते हैं और तीन भाग में बांटकर इसे जरूरतमंद और गरीबों को देते हैं।

 कैसे मनाया जाता है ईद-उल-अजहा ?

ईद-उल-अजहा के दिन,  मुस्लिम समुदाय के लोग सुबह जल्दी उठकर नहाते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। फिर वे ईद की नमाज़ पढ़ने के लिए ईदगाह या मस्जिद जाते हैं। नमाज़ के बाद, भेड़ या बकरे की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी का मांस तीन भागों में बांटा जाता है: एक भाग गरीबों और जरूरतमंदों में बांटा जाता है, दूसरा रिश्तेदारों और दोस्तों को दिया जाता है, और तीसरा परिवार के लिए रखा जाता है।

जानें बकरीद का इतिहास

कहते हैं कि एक रात अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के ख्वाब में आकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी। इब्राहिम को पूरी दुनिया में अपना बेटा ही प्यारा था। ऐसे में वह अल्लाह पर भरोसे के साथ बेटे स्माइल की कुर्बानी के लिए तैयार हो गए। 

इब्राहिम अपने बेटे को कुर्बानी के लिए ले ही जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें एक शैतान मिला और उसने उन्हें ऐसा करने से मना किया। शैतान ने पूछा कि वह भला अपने बेटे की कुर्बानी देने क्यों जा रहे हैं? इसे सुन इब्राहिम का मन भी डगमगा गया लेकिन आखिरकार उन्हें अल्लाह की बात याद आई और कुर्बानी के लिए चल पड़े।

कहते हैं कि इब्राहिम ने बेटे की कुर्बानी देने के समय अपने आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि उन्हें दुख न हो। कुर्बानी के बाद जैसे ही उन्होंने अपनी पट्टी खोली, अपने बेटे को उन्होंने सही-सलामत सामने खड़ा पाया। 

दरअसल, अल्लाह इब्राहिम के यकीन और सब्र का इम्तहान ले रहे थे। कुर्बानी का समय जैसे ही आया तो अचानक किसी फरिश्ते ने छुरी के नीचे स्माइल को हटाकर दुंबे (भेड़) को आगे कर दिया। ऐसे में दुंबे की कुर्बानी हो गई और बेटे की जान बच गई। इसी के बाद से कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हो गई।

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