Durga Visarjan 2022: दुर्गा विसर्जन 5 अक्टूबर को, होगी मां की विदाई, जानें शुभ मुहूर्त, विधि और महत्व
By रुस्तम राणा | Updated: October 4, 2022 15:22 IST2022-10-04T15:22:59+5:302022-10-04T15:22:59+5:30
Durga Visarjan 2022 Date: दशमी तिथि (दशहरा के दिन) को दुर्गा विसर्जन किया जाता है। इस साल दुर्गा विसर्जन 5 अक्टूबर, बुधवार है। इस दिन मां के भक्तों के द्वारा ढोल-नगाड़ों के साथ मां की विदाई की जाएगी।

Durga Visarjan 2022: दुर्गा विसर्जन 5 अक्टूबर को, होगी मां की विदाई, जानें शुभ मुहूर्त, विधि और महत्व
Durga Visarjan 2022: शारदीय नवरात्रि पर्व आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होता है और नवमी तिथि तक चलता है। दशमी तिथि (दशहरा के दिन) को दुर्गा विसर्जन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा अपने नौ रूपों के साथ भक्तों के घर विराजती हैं और दसवें दिन दुर्गा विसर्जन के साथ उनकी विदाई की जाती है। लोग ढोल-नगाड़ों के साथ मां का विसर्जन करने जाते हैं। इस बीच गुलाल और अबीर के साथ होली खेली जाती है। सभी भक्त मग्न होकर विसर्जन यात्रा में शामिल होते हैं। इस साल दुर्गा विसर्जन 5 अक्टूबर, बुधवार है। आइए जानते हैं दुर्गा विसर्जन का शुभ मुहूर्त, विधि और महत्व।
दुर्गा विसर्जन 2022 शुभ मुहूर्त
दशमी तिथि प्रारंभ - 04 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 20 मिनट से
दशमी तिथि समाप्त - 5 अक्टूबर 2022 को 12 बजे होगा।
दुर्गा विसर्जन मुहूर्त - प्रात: काल मुहूर्त दुर्गा विसर्जन के लिए शुभ
दुर्गा विसर्जन विधि
दुर्गा विसर्जन से पहले मां की गुलाल, अबीर, कुमकुम और हल्दी से पूजा करें।
सबसे पहले घटस्थापना में बोए जवारे दुर्गा विसर्जन के दिन परिवार में बांटें।
थोड़े जवारे अपने पास तिजोरी में रख लें।
बाकी बचे हुए जवारे को नदी में प्रवाहित कर दें।
इन्हें फेंके नहीं नहीं तो देवी नाराज हो जाएंगी।
नौ दिनों तक मां दुर्गा को चढ़ाई गई सभी सामग्री भी मां दुर्गा के साथ विसर्जित कर दें।
दुर्गा विसर्जन का महत्व
मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि में मां आदिशक्ति स्वरूपा जगत जननी मां दुर्गा भक्तों के उनके आवाह्न पर आती हैं और 9 दिनों तक भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। नवरात्रि के बाद माता अपने लोक में लौट जाती हैं। इसी मान्यता को ध्यान में रखते हुए नवरात्रि के पहले दिन माता का आवाह्न किया जाता है, वहीं अंतिम दिन माता उन्हें विसर्जित किया जाता है यानी उनके लोक में जाने की प्रार्थना की जाती है। इसके बाद प्रतिमाओं और जवारों का नदी या तालाब में विसर्जन किया जाता है।