Shiva Tandava Stotram: शिव तांडव स्तोत्र रावण (Ravan) द्वारा संस्कृत में भगवान शंकर की वह आराधना है, जिसके पाठ से मनुष्य को शिव का असीम भक्ति और कृपा प्राप्त होती है। महादेव की महिमा का वर्णन करता शिव तांडव स्तोत्र रावण की शिव के प्रति भक्ति का रचनात्मकता की पराकाष्ठा मानी जाती है। इसके पाठ से शिव भक्तों को आंतरिक शांति के साथ भगवान रूद्र की कृपा मिलती है।
मान्यता है कि शिव तांडव के हर दिन पाठ सुख और समृद्धि मिलती है लेकिन सावन में शिव पूजन के लिए इसका पाठ विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि शिव तांडव के जाप से, शिवलिंग पर जलाभिषेक से मनुष्य के आत्मबल में वृद्धि होती है।
रावण ने कैसे की शिव तांडव की रचना
रावण महादेव का महान भक्त थाष अनेक कहानियां में प्रचलित है कि वह सुदूर दक्षिण स्थित लंका से रोज शिव की आराधना करने के लिए कैलाश पर्वत पर आया करता था। वो प्रभु शिव की प्रशंसा में उनके समक्ष स्तुति करता था। इसी क्रम में रावण ने 1008 छंदों की रचना कर डाली, जिसे शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जाना गया।
रावण संगीत में बहुत प्रवीण था। उसकी शिव स्तुति सुनकर भोलेनाथ बहुत आनंदित होते थे। शिव तांडव ऐसे विशिष्ठ मंत्रों का संकलन है, जिसके पाठ से मनुष्य को विशेष फलों की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और हर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
शिव तांडव स्तोत्र में शंकर का वर्णन रुद्र रूप में मिलता है। यह स्तोत्र बताता है कि शिव जी कैसे संहार करते हैं और समस्त ब्रह्मांड को अपने अधीन कर सकते हैं। शिव के इसी रूप को प्राप्त करने के लिए तांडव स्तोत्र का पाठ किया जाता है।
शिव तांडव स्तोत्र में भोलेनाथ के कई अवतारों का वर्णन है। मसलन इस पाठ में रावण ने शिव को प्रमुख रूप से चंद्रमौलीश्वर, नटराज और अर्धनारीश्वर कहा है। चंद्रमौलीश्वर शिव का एक प्रमुख अवतार है जो शिव के मुंडमाला में चंद्रमा सुशोभित होते हैं। नटराज रूप में शिव का वर्णन करते हुए उनकी नृत्य कला की प्रशंसा की जाती है, जो जीवन और मृत्यु के चक्र को प्रतिष्ठित करती है। अर्धनारीश्वर रूप में शिव की अद्वितीयता का वर्णन किया जाता है, जहां उनका शरीर अर्ध नारिश्वर रूप में है।
शिव तांडव स्तोत्र (Shiva Tandava Stotra)
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥
धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥
जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥
ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥
कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥