महाभारत के इस योद्धा के साथ हुआ था सबसे बड़ा छल, इस एक क्षण से बदल जाती पूरी कहानी

By मेघना वर्मा | Updated: July 3, 2018 10:25 IST2018-07-03T10:25:30+5:302018-07-03T10:25:30+5:30

सूर्य देव के मना करने के बाद जब कर्ण उन्हें जल अर्पित करने नदी के तट पर पहुंचें तो वहां इंद्र देव ने एक ब्राह्मण का रूप धारण करके उनके इंतज़ार में खड़े थे।

Danvir Karna cheated by lord Indra Dev and gives him his kavach and kundal | महाभारत के इस योद्धा के साथ हुआ था सबसे बड़ा छल, इस एक क्षण से बदल जाती पूरी कहानी

महाभारत के इस योद्धा के साथ हुआ था सबसे बड़ा छल, इस एक क्षण से बदल जाती पूरी कहानी

महाभारत के युद्ध में कर्ण की काफी महत्वपूर्ण भूमिका है। अपने विशाल नेतृत्व और वीर बहादुर योद्धाओं में से एक कर्ण ने कौरवों की ओर से युद्ध किया था लेकिन फिर भी वह कृष्ण के दिल के बहुत करीब था। इसका एक मात्र कारण यह था कि कर्ण का दिल बहुत साफ था। कर्ण को बहुत बड़ा दानी भी कहा जाता है कहते हैं उनसे अगर किसी ने कुछ मांगा हो तो वह हर कीमत पर उसे देते थे। दुर्योधन के बहुत अच्छे दोस्त होने के कारण कर्ण ने कौरवों की तरफ से यह युद्ध लड़ी थी। आज हम आपको कर्ण के जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी ही बाते बताने जा रहे हैं जो आपको काफी प्रेरित कर देंगी। साथ ही बताएंगे कैसा कर्ण ने अपना सुरक्षा कवच दान में दे दिया। 

बचपन से ही झेली थी परेशानियां

कर्ण की मां कुंती थी जो पांडवों की भी माता थी। कर्ण का जन्म कुंती और पांडु के विवाह के पहले हुआ था। सूर्य देव के आशीर्वाद से ही कुंती ने कर्ण को जन्म दिया था इसलिए कर्ण को सूर्य पुत्र के नाम से भी जाना जाता है। सूर्य पुत्र को अपने पिता यानी सूर्य देव से वचन मिला था जिसमें उन्होंने कहा था कि कर्ण को कभी कोई पराजित नहीं कर पाएगा। उनका जीवन बहुत मुश्किल में बीता था। कहा यह भी जाता है कि कर्ण अपनी मां से अलग रहते थे। उनके पूरे जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियां रहीं। वास्तव में जो चीजें कर्ण को मिलनी चाहिए वह नहीं मिल पाई। 

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सूर्य देव ने ही दी थी चेतावनी

कर्ण अपने ता-उम्र सूर्य देव को जल चढ़ाया करता था। उसी समय कर्ण से कोई कुछ भी मांग ले वह कभी इंकार नहीं करते थे। कर्ण और अर्जुन दोनों ही बड़े बलवान थे। इंद्र देव इस बात से बड़े ही चिंतित और भयभीत थे कि कर्ण के पास वह कवच है इसलिए उन्होंने निर्णय लिया कि जब कर्ण सूर्यदेव को जल अर्पित कर रहा होगा तब वे दान स्वरुप वह कवच उससे मांग लेंगे।

जब सूर्यदेव को वरुण देव के इरादों की भनक लगी तो उन्होंने फ़ौरन कर्ण को चेतावनी दी और उसे जल अर्पण करने से भी मना किया। किन्तु कर्ण ने उनकी एक न सुनी, उसने सूर्यदेव से कहा कि सिर्फ दान के भय से वह अपने पिता की उपासना करना नहीं छोड़ सकता।

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छल से ले लिया कर्ण का कवच और कुंडल

सूर्य देव के मना करने के बाद जब कर्ण उन्हें जल अर्पित करने नदी के तट पर पहुंचें तो वहां इंद्र देव ने एक ब्राह्मण का रूप धारण करके उनके इंतज़ार में खड़े थे। जैसे ही वह सूर्यदेव की पूजा समाप्त करके कर्ण देव उठे तो इंद्र देव उसके पास पहुंच गए और दान में उससे उसका कवच और कुंडंल मांग लिया। अपने स्वभाव अनुसार उसने ख़ुशी ख़ुशी वह कवच उन्हें दान में दिया।

हालांकि उसकी इस बात से प्रसन्न होकर उन्होंने कर्ण को एक अस्त्र प्रदान किया जिसका प्रयोग वह अपनी रक्षा हेतु केवल एक ही बार कर सकता था।

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