Chhath Puja 2025: छठ पूजा एक अत्यंत पवित्र, प्राचीन और अनोखा पर्व है। यह केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि कठोर तपस्या, अनुशासन और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। इस साल छठ की शुरुआत शनिवार 25 अक्तूबर को नहाय-खाय से हो रही है। वहीं 27 को संध्या अर्घ्य और 28 अक्तूबर को उषा अर्घ्य के साथ समाप्त होगी। छठ पूजा में बनने वाले मीठे पकवान से लेकर जश्न के बारे में तो हर कोई जानता है लेकिन ऐसे बहुत कम लोग है जो इस त्योहार से जुड़े इन रोचक तथ्यों के बारे में जानते हैं। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं इसके बारे में सबकुछ...
1- दुनिया का एकमात्र पर्व जहाँ डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है
छठ पूजा की सबसे बड़ी और अनूठी विशेषता यह है कि यह दुनिया का शायद एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें डूबते हुए (अस्ताचलगामी) और उगते हुए (उदयाचलगामी) दोनों सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि जीवन में हर स्थिति (उदय या अस्त) का सम्मान करना चाहिए।
2- सूर्य देव के साथ उनकी शक्ति की भी पूजा
आमतौर पर यह पर्व सूर्य देव को समर्पित माना जाता है, लेकिन इसमें सूर्य की शक्तियों (पत्नियाँ) ऊषा (भोर की देवी) और प्रत्यूषा (संध्या की देवी) की भी पूजा होती है। उषा और प्रत्यूषा को सूर्य की ऊर्जा और शक्ति का मुख्य स्रोत माना जाता है, इसलिए छठ में संयुक्त रूप से इनकी आराधना की जाती है।
3- एकमात्र हिन्दू त्यौहार जहाँ पुरोहित (पंडित) की आवश्यकता नहीं
छठ पूजा एकमात्र ऐसा बड़ा हिन्दू त्योहार है, जिसे संपन्न कराने के लिए किसी पुरोहित (पंडित) की आवश्यकता नहीं होती है। व्रती (व्रत करने वाले) स्वयं ही कठोर नियमों का पालन करते हुए सभी अनुष्ठानों को करते हैं, जो इस पर्व की सादगी और शुद्धता को दर्शाता है।
4- 36 घंटे का कठोर निर्जला व्रत
यह व्रत अपनी कठोरता के लिए प्रसिद्ध है। व्रती (महिलाएँ और कुछ पुरुष) 36 घंटे से अधिक समय तक निर्जला (बिना पानी के) व्रत रखते हैं। इस दौरान वे जमीन पर सोते हैं और अत्यंत सादगीपूर्ण जीवन जीते हैं।
5- छठ कोशी भराई का अनोखा रिवाज
तीसरे दिन संध्या अर्घ्य के बाद 'कोशी भराई' का एक विशेष अनुष्ठान होता है। इसमें गन्ने के तनों से एक छोटा सा मंडप बनाया जाता है और उसके नीचे मिट्टी के दीये जलाकर ठेकुआ, फल आदि प्रसाद से भरी हुई टोकरियाँ रखी जाती हैं। यह मंडप पंच तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है।
6- वेदों से जुड़ा सबसे प्राचीन वैदिक पर्व
छठ पूजा की जड़ें प्राचीन वैदिक काल से जुड़ी हुई हैं। यह माना जाता है कि यह त्योहार ऋग्वेद काल से चला आ रहा है, जहाँ सूर्य देव और उनकी देवी उषा (छठी मैया) की उपासना का उल्लेख मिलता है।
7- वैज्ञानिक और स्वास्थ्य लाभ
सूर्य को अर्घ्य देने के समय का वैज्ञानिक महत्व है। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें सबसे कम हानिकारक होती हैं। इस समय नदी या तालाब के पानी में खड़े होकर अर्घ्य देने से शरीर को सुरक्षित रूप से विटामिन-डी और सौर ऊर्जा प्राप्त होती है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।
8- सिलाई रहित नए वस्त्रों का नियम
व्रत के दौरान व्रती नए कपड़े पहनते हैं, लेकिन यह परंपरा है कि कपड़े बिना सिलाई वाले या बहुत सादे होने चाहिए। महिलाएँ साड़ियाँ और पुरुष धोती या सादे कुर्ते पहनते हैं, जो पवित्रता और सादगी को बनाए रखने का प्रतीक है।
9- प्रसाद में विशेष रूप से ठेकुआ और ईख (गन्ना)
छठ के प्रसाद में ठेकुआ (गेहूँ के आटे और गुड़ से बना) और गन्ना (ईख) सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। गन्ना, जिसे सीधा और सीधा खड़े रहने वाला माना जाता है, सूर्य को अर्घ्य देते समय टोकरी (दउरा) में रखा जाता है।
10- छठ पूजा इस तरह से की जाती है जिससे शरीर में कैल्शियम और विटामिन डी का अधिकतम अवशोषण होता है, जो महिलाओं के लिए बेहद फायदेमंद है। छठ पूजा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी मदद करती है।
11- सूर्य देव को अर्घ्य देने की प्रथा बेबीलोन सभ्यता और प्राचीन मिस्र की सभ्यता में भी प्रचलित थी।
(डिस्क्लेमर: आर्टिकल में मौजूद जानकारियां और दावे सामान्य ज्ञान पर आधारित है, लोकमत हिंदी किसी दावे की पुष्टि नहीं करता है। सटीक जानकारी के लिए कृपया विशेषज्ञ की सलाह लें।)