Chaitra Navratri 2022 Day 2: चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन होती है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, जानें विधि, मंत्र और कथा
By रुस्तम राणा | Updated: April 2, 2022 14:58 IST2022-04-02T14:57:00+5:302022-04-02T14:58:04+5:30
‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ तपस्या से है और ‘ब्रह्मचारिणी’ का अर्थ है- तप का आचरण करने वाली देवी। मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में तप की माला और बांए हाथ में कमंडल है।

Chaitra Navratri 2022 Day 2: चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन होती है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, जानें विधि, मंत्र और कथा
Chaitra Navratri 2022:चैत्र नवरात्रि के पावन पर्व के दूसरे दूसरे दिन मां दुर्गा के दूसरे रूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है। 3 अप्रैल, रविवार को नवरात्रि का दूसरा व्रत है। इस दिन मां ब्रह्मचारिणी पूजा करने से भक्तों की समस्त प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मां अपने भक्तों की सारी परेशानियों को दूर सकती हैं। उनकी आराधना से भक्तों की शक्ति, त्याग-तपस्या, सदाचार, संयम, आत्मविश्वास और वैराग्य में वृद्धि होती है। आइए जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि, मंत्र और कथा के बारे में।
कौन हैं मां ब्रह्मचारिणी?
‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ तपस्या से है और ‘ब्रह्मचारिणी’ का अर्थ है- तप का आचरण करने वाली देवी। मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में तप की माला और बांए हाथ में कमंडल है। जीवन की सफलता में आत्मविश्वास का अहम योगदान माना गया है। जिस व्यक्ति पर मां की कृपा हो जाए उसे अनंत लाभ की प्राप्ति होती है।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मां को दूध, दही, घृत, मधु और शक्कर से स्नान कराएं और पूजा स्थल पर उनको विराजें। अब मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान लगाकर उनकी पूजा करें। मां को अक्षत, फूल, रोली, चंदन आदि अर्पित करें। मां ब्रह्मचारिणी को पान, सुपारी, लौंग भी चढ़ाएं। इसके बाद मंत्रों का उच्चारण करें। पूजा के दौरान मां ब्रह्मचारिणी की कथा पढ़ें। अंत में आरती गाकर पूजा संपन्न करें।
मां ब्रह्मचारिणी का भोग
मां के इस स्वरुप को मिश्री, दूध और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए।
मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र
ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचारिण्यै नमः
मां ब्रह्मचारिणी की कथा
कथा के अनुसार अपने पूर्वजन्म में मां ब्रह्मचारिणी की पर्वतराज हिमालय की कन्या थीं। उन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया। कहते हैं मां ब्रह्मचारिणी ने एक हजार वर्ष तक फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। इसके बाद मां ने कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप को सहन करती रहीं। टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बावजूद भी भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए तो उन्होने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया और कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। मां ब्रह्मचारणी कठिन तपस्या के कारण बहुत कमजोर हो हो गई। इस तपस्या को देख सभी देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने सरहाना की और मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया। अपने कठोर तप के कारण ही उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा था।