भीष्म अष्टमी हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। यह पर्व हर साल माघ मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार भीष्म अष्टमी पर्व 8 फरवरी (मंगलवार) को मनाया जाएगा। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि इस दिन भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्याग दिए थे। इस दिन व्रत करने का विशेष महत्व होता है। कहते हैं कि इस दिन व्रत रखने से संस्कारी संतान की प्राप्ति होती है और व्रती के सारे कष्ट व पाप नष्ट हो जाते हैं।
भीष्म अष्टमी 2022 पूजा मुहूर्त
अष्टमी तिथि का आरंभ- 08 फरवरी, दिन मंगलवार सुबह 06 बजकर 15 मिनट अष्टमी तिथि का समापन- 09 फरवरी, दिन बुधवार सुबह 08 बजकर 30 मिनट पूजा मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 29 मिनट से दोपहर 01 बजकर 42 मिनट तक।
भीष्म अष्टमी व्रत विधि
सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी अथवा जलकुंड में स्नान करें, बिना सिले वस्त्र धारण करें। अब दाहिने कंधे पर जनेऊ धारण कर या दाहिने कंधें पर गमछा रखें।हाथ में तिल और जल लें और दक्षिण की ओर मुख कर लें। इसके बाद इस मंत्र का जाप करें- "वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतिप्रवराय च गंगापुत्राय भीष्माय, प्रदास्येहं तिलोदकम् अपुत्राय ददाम्येतत्सलिलं भीष्मवर्मणे"मंत्र जाप के बाद तिल और जल के अंगूठे और तर्जनी उंगली के मध्य भाग से होते हुए पात्र में छोड़ें। जनेऊ या गमछे को बाएं कंधे पर डाल लें और गंगापुत्र भीष्म को अर्घ्य दें। आप भीष्म पितामह का नाम लेते हुए सूर्य को जल दें।
भीष्म अष्टमी व्रत का महत्व
यदि आप पितृदोष से मुक्ति या संतान की प्राप्ति के लिए यह व्रत काफी महत्व रखता है क्योंकि महाभारत के सभी पात्रों में भीष्म पितामह विशिष्ट स्थान रखते हैं। कहा जाता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। भीष्म अष्टमी पर जल में खड़े होकर ही सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। पुराणों के मुताबिक उन्होंने अपने पिता की खुशी के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया। साथ ही उन्हें न्यायप्रिय, सत्यनिष्ठ एवं गंगापुत्र के रूप में भी जाना जाता है।
पौराणिक कथा
महाभारत के सबसे प्रबल योद्धाओं में से एक थे भीष्म पितामह जो हस्तिनापुर के राजा शांतनु और देवनदी गंगा के पुत्र थे। भीष्म पितामह ने महाभारत की लड़ाई में कौरवों की ओर से युद्ध किया था। उन्हें अपने पिता से इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। पुराणों में बताया गया है कि युद्ध के मैदान में जब भीष्म पितामह को तीर लगे, वह समय मलमास का था जो शुभ कार्यों के लिए उत्तम नहीं होता है।
अर्जुन ने शिखंडी की आड़ में भीष्म पर इस कदर बाण वर्षा की कि उनका शरीर बाणों से बंध गया और वह बाण शैय्या पर लेट गए किंतु उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति और प्रभु कृपा के चलते मृत्यु को धारण नहीं किया क्योंकि उस समय सूर्य दक्षिणायन था। जैसे ही सूर्य ने मकर राशि में प्रवेश किया और सूर्य उत्तरायण हो गया, भीष्म ने अर्जुन के बाण से निकली गंगा की धार पान कर प्राण त्याग, मोक्ष प्राप्त किया। भीष्म पितामह ने भीष्म अष्टमी के दिन ही अपने प्राण त्यागे थे।