Basant Panchami 2022 Date: कब है बसंत पंचमी, जानें तिथि, शुभ महूर्त, पूजा विधि और महत्व
By रुस्तम राणा | Updated: January 31, 2022 17:04 IST2022-01-31T17:04:35+5:302022-01-31T17:04:35+5:30
धार्मिक मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की उत्पत्ति हुई थी। यही कारण है कि छात्रों, कला, संगीत, पढ़ने-लिखने आदि कार्यों से जुड़े लोगों के लिए ये दिन काफी महत्वपूर्ण है।

Basant Panchami 2022 Date: कब है बसंत पंचमी, जानें तिथि, शुभ महूर्त, पूजा विधि और महत्व
Basant Panchami 2022: हिंदू धर्म में बसंत पंचमी का पर्व मां सरस्वती को समर्पित है। मां सरस्वती ज्ञान और सुरों की देवी हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल माघ मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। इस साल बसंत पंचमी पर्व 5 फरवरी शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन माता सरस्वती की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। ऐसी मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन से वसंत ऋतु की भी शुरुआत होती है। धार्मिक ग्रंथों में इसका भी उल्लेख है कि इसी दिन माता सरस्वती की उत्पत्ति हुई थी। यही कारण है कि छात्रों, कला, संगीत, पढ़ने-लिखने आदि कार्यों से जुड़े लोगों के लिए ये दिन काफी महत्वपूर्ण है।
सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त
पंचमी तिथि प्रारंभ: 5 फरवरी को प्रातः 3.47 बजे से
पंचमी तिथि समाप्त: 6 फरवरी को प्रातः 3.46 बजे तक
सरस्वती पूजा की विधि
बसंत पंचमी के दिन साधक को सुबह जल्दी उठें।
साफ-सफाई के बाद स्नान आदि के बाद पूजा की तैयारी करें।
माता सरस्वती की प्रतिमा या तस्वीर को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें।
इसके बाद चंदन, अक्षत, हल्दी, रोली सहित पीले या सफेद रंग के फूल और पीली मिठाई माता को अर्पित करें।
पूजा के स्थान पर वाद्य यंत्र और किताबों को माता के सामने रखें।
इसके बाद मां सरस्वती की वंदना का पाठ करें।
मां सरस्वती के लिए व्रत भी रख सकते हैं।
बसंत पंचमी की कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान ब्रह्मा ने जब संसार को बनाया तो पेड़-पौधों और जीव जन्तु सब कुछ दिख रहा था। इसके बावजूद वे अपने सृजन से बहुत खुश नहीं थे। उन्हें कुछ कमी महसूस हो रही थी। इसके बाद उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर छिड़का तो सुंदर स्त्री के रूप में एक देवी प्रकट हुईं। इनके एक हाथ में वीणा और दूसरा हाथ आशीर्वाद देने के मुद्रा में था। वहीं, अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। मान्यताओं के अनुसार इन सुंदर देवी ने जब वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के सभी जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हुई।
इससे ब्रह्माजी अति प्रसन्न हुए और उन्होंने सरस्वती को वीणा की देवी के नाम से संबोधित करते हुए वागेश्वरी नाम दिया। हाथों में वीणा होने के कारण उनका एक नाम वीणापाणि भी पड़ा। मां सरस्वती को शारदा, शतरूपा, वाणी, वाग्देवी, वागेश्वरी और भारती भी कहा जाता है। वैसे माता सरस्वती के जन्म को लेकर 'सरस्वती पुराण' और 'मत्सय पुराण' में भी अलग-अलग उल्लेख मिलते हैं।