Anant Chaturdashi: अनंत चतुर्दशी कब है, कैसे करें ये व्रत और क्या है इसकी कथा, जानिए सबकुछ
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 3, 2019 10:51 IST2019-09-03T08:11:12+5:302019-09-03T10:51:47+5:30
Anant Chaturdashi: अनंत चतुर्दशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और यह हर साल भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है। इसी दिन गणेशोत्सव का भी समापन होता है।

अनंत चतुर्दशी व्रत का महत्व और कथा
भाद्रपद मास के कुछ बड़े व्रतों में अनंत चतुर्दशी भी है जिसे देश के कई हिस्सों में किया जाता है। भगवान विष्णु को समर्पित यह व्रत हर साल भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है। इस दिन हरि की पूजा की जाती है और पुरुष दाएं जबकि स्त्रियां बाएं हाथ में 'अनंत धागा' धारण करती है। इस बार अनंत चतुर्दशी 12 सितंबर को है।
अनंत दरअसल राखी के समान ही एक खास रंग का धागा होता है जिनमें 14 गांठे होती हैं। यह एक व्रत है और इसे घर या मंदिर में ही किया जाता है। गणेश चतुर्थी के बाद गणपति का विजर्सन भी कई जगहों पर अनंत चतुर्दशी के दिन ही होता है और इसी के साथ गणेशोत्सव का समापन भी होता है।
Anant Chaturdashi 2019: अनंत चतुर्दशी व्रत के लाभ और महिमा
अनंत चतुर्दशी व्रत का जिक्र महाभारत में भी नजर आता है। मान्यता है इस व्रत को करने से व्यक्ति सभी संकटों से दूर होता है। भगवान कृष्ण की सलाह से पांडवों ने भी इस व्रत को उस समय किया था जब ने वन-वन भटक रहे थे। इसे करने दरिद्रता का नाश होता है। साथ ही दुर्घटनाओं और स्वास्थ्य की समस्याओं से रक्षा होती है। यही नहीं, ग्रहों की बाधा दूर होती है।
Anant Chaturdashi 2019: अनंत चतुर्दशी व्रत कैसे करें
इस दिन व्रती को तड़के उठना चाहिए और स्नान आदि के बाद कलश स्थापित करें। यहां भगवान विष्णु की तस्वीर लगाएं और अनंत धागे को भी रखें। इसके बाद विधिवत पूजा करें और अनंत व्रत की कथा पढ़ें या इसका श्रवण करें। पूजन में रोली, चंदन, अगर, धूप, दीप और नैवेद्य का होना अनिवार्य है।
इनको समर्पित करते समय 'ॐ अनंताय नमः' मंत्र का जाप करें। पूजा के बाद अनंत सूत्र को अपने हाथों में बांधना चाहिए और प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। इस व्रत के दिन दान की विशेष महिमा है। व्रती इस दिन आटे से रोटियां या पूड़ी बनाते हैं, जिसका आधा वे ब्राह्मण को दान करते हैं और शेष स्वयं ग्रहण करते हैं।
Anant Chaturdashi: अनंत चतुर्दशी व्रत की कथा
अनंत चतुर्दशी की कथा के अनुसार पुराने समय में सुमंत नाम के एक ऋषि थे। उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। दोनों की परम सुंदरी कन्या सुशीला थी। वह धर्मपरायण युवती थी। सुशीला जब थोड़ी बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई। पहली पत्नी के मरने के बाद सुमंत को अपने बच्चों के लालन-पालन की चिंता हुई। ऐसा विचार कर सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह किया।
कुछ समय पश्चात सुशीला का विवाह उनके पिता ऋषि सुमंत ने कौण्डिन्य ऋषि के साथ कर दिया। विवाह के बाद भी हालांकि, सुशील को दरिद्रता ही झेलनी पड़ी। एक दिन जंगलों में भटकते हुए सुशीला ने देखा- वहां पर कुछ स्त्रियां किसी देवता की पूजा पर रही थीं। सुशीला ने जब इस बारे में पूछा तो उन्होंने अनंत व्रत के महत्व के बारे में बताया। सुशीला ने जब यह सुना तो उन्होंने इस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला अनंत धागा बांध कर ऋषि कौण्डिन्य के पास आ गई।
धीरे-धीरे सुशील और कौण्डिन्य के दिन फिरने लगे। एक दिन ऋषि कौण्डिन्य ने जब यह धागा देखा तो इस बारे में पूछा। सुशीला ने पूरी बात बता दी। इससे कौण्डिन्य क्रोधित हो गये और सोचा कि उनकी मेहनत का श्रेय भला पूजा को क्यों जा रहा है। क्रोधित कौण्डिन्य ने इसके बाद वह धागा तोड़ दिया। इसके साथ ही एक दोनों के दिन एक बार फिर बदलने लगे। धीरे-धीरे उनकी सारी संपत्ति नष्ट होती गई।
कौण्डिन्य ने जब इस बार में अपनी पत्नी से चर्चा की तो पत्नी ने कहा कि अनंत भगवान का अपमान करने से ऐसा हो रहा है। कौण्डिन्य को अपनी इस गलती का ऐहसास हुआ। इसके बाद उन्होंने 14 सालों तक कौण्डिन्य ने अनंत चतुर्दशी का व्रत किया। इससे हरि प्रसन्न हुए और धीरे-धीरे दोनों के दिन एक बार फिर बदलने लगे और वे सुखपूर्वक रहने लगे। कहते हैं कि श्रीकृष्ण की बात मानकर युधिष्ठिर ने भी अनंत व्रत किया जिसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए और उनके दिन फिरे।