ज्यादा प्यार नहीं मिलता तो क्या हुआ, बड़े होकर सबसे सफल बनते हैं 'मिडल चाइल्ड'

By गुलनीत कौर | Updated: July 27, 2018 12:15 IST2018-07-27T12:15:14+5:302018-07-27T12:15:14+5:30

साल 2001 में 46.6 फीसदी भारतीय महिलाएं ऐसी थीं जिन्होंने 2 से ज्यादा बच्चे प्लान किए। लेकिन अब के आंकड़ों के मुताबिक 54 फीसदी महिलाएं 2 या फिर दो से भी कम बच्चे चाहती हैं। 

Are you a middle child, new findings says middle child concept might vanish soon | ज्यादा प्यार नहीं मिलता तो क्या हुआ, बड़े होकर सबसे सफल बनते हैं 'मिडल चाइल्ड'

ज्यादा प्यार नहीं मिलता तो क्या हुआ, बड़े होकर सबसे सफल बनते हैं 'मिडल चाइल्ड'

मां-बाप के लिए पहला बच्चा हमेशा ही स्पेशल होता है। और उसे पालने के लिए उन्हें काफी जद्दोजहद भी करनी पड़ती है। लेकिन जैसे ही दूसरा बच्चा पैदा होता है, पहले बच्चे का प्यार शिफ्ट होकर दूसरे पर आ जाता है और फिर वो मां-बाप का दुलारा बच्चा कहलाता है। लेकिन इसके बाद जैसे ही तीसरा बच्चा आता है, उनका सारा समय वही ले लेता है। दूसरी तरफ पहले बच्चे की बढ़ती उम्र के साथ उसकी ओर भी उनकी जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं। ऐसे में बच कौन गया? दूसरे नंबर का बच्चा यानी 'मिडल चाइल्ड'। 

मिडल चाइल्ड बनता है सफल

इस मिडल चाइल्ड पर मां-बाप तब ध्यान देते हैं जब उन्हें सबसे छोटे की परवरिश से थोड़ी मोहलत मिलती है या फिर किसी समय बड़े बच्चे की जिम्मेदारी कम महसूस हो तो उन्हें बीच का बच्चा भी याद आता है। अकसर मिडल चाइल्ड को पेरेंट्स नजरअंदाज कर देते हैं और यह काफी नेचुरल है। वर्षों से यह देखा जा रहा है कि पहले और दूसरे के बाद जब तीसरा बच्चा आ जाता है तो बीच वाले बच्चे पर पेरेंट्स ध्यान नहीं दे पाते हैं। लेकिन फिर भी आगे चलकर यही बच्चा तीनों में से सबसे अधिक सफल कहलाता है। 

जी हां, अमेरिका में हुए एक शोध के मुताबिक अमूमन सभी मामलों में मिडल चाइल्ड ही अपने अन्य भाई-बहनों की तुलना में अधिक समझदार और सफल बनता है। हालाकि पेरेंट्स का उसके प्रति कम योगदान होता है, यही कारण है कि वह अपने दम पर चीजों को जानता है, समझता है और स्वतन्त्र होकर अपने फैसले लेता है।

इस मिडल चाइल्ड की सोच भी अपने भाई-बहनों और यहां तक कि परिवार के बाकी सदस्यों से अलग होती है। पेरेंट्स का इनकी लाइफ में दखल कम होने के कारण ये अपने मन से अपने दोस्त चुनते हैं, अपना समय अपने हिसाब से ही खर्च करते हैं और उम्र से पहले ही परिपक्व हो जाते हैं। शोधकर्ता केटरिन कहती हैं कि भले ही पेरेंट्स अपने मिडल चाइल्ड को कितना ही इग्नोर क्यों ना कर लें, लेकिन आगे चलकर इसी बच्चे पर उन्हें सबसे अधिक गर्व होता है। क्योंकि यह बच्चा अचानक उनकी उम्मीदों से काफी परे सफल बनकर दिखाता है।

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खत्म हो सकता है मिडल चाइल्ड कांसेप्ट

लेकिन शोध के दौरान कुछ ऐसे फैक्ट्स भी निकलकर सामने आए हैं जो दुनिया के सभी मिडल चाइल्ड के चेहरे पर उदासी ला सकते हैं। शोध के अनुसार जल्द ही दुनिया से मिडल चाइल्ड का कांसेप्ट ही खत्म हो जाएगा। क्योंकि आजकल के कपल एक या फिर ज्यादा से ज्यादा दो ही बच्चे प्लान करना चाहते हैं। ऐसे में मिडल चाइल्ड का होना मुमकिन ही नहीं। 

साल 1976 में अमेरिका में हुए एक शोध के मुताबिक 40 से 44 वर्षीय 40 फीसदी महिलाओं के कम से कम 2 से 4 बच्चे थे। इनमें से 25 फीसदी के तीन बच्चे थे, 24 फीसदी के दो और केवल 11 फीसदी महिलाएं ऐसी थीं जिनके पास सिंगल चाइल्ड था। लेकिन अब यह आंकड़ा काफी बदल गया है।

भारतीय महिलाएं चाहती हैं 1-2 बच्चे

भारत में भी कुछ ऐसा ही हाल है। साल 2001 में 46.6 फीसदी भारतीय महिलाएं ऐसी थीं जिन्होंने 2 से ज्यादा बच्चे प्लान किए। लेकिन अब के आंकड़ों के मुताबिक 54 फीसदी महिलाएं 2 या फिर दो से भी कम बच्चे चाहती हैं। 

इसके पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं जिनमें से बढ़ती महंगाई सबसे बड़ा कारण है। बच्चों की परवरिश से लेकर पढ़ाई, खाना-पीना, लाइफस्टाइल, हर चीज महंगी हो रही है। आजकल के कपल्स अपनी आने वाली पीढ़ी की भी चिंता करते हैं। जीने के संसाधन उनके लिए भी बाख जाएं इसलिए वे इन्हें कम से कम इस्तेमाल करना चाहते हैं। और यह भी कम बच्चे प्लान करने के कई कारणों में से एक है। 

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