'लाभ का पद' का क्या होता है? संविधान में क्या कहा गया है 'ऑफ‌िस ऑफ प्रॉफिट' के बारे में

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: January 20, 2018 13:51 IST2018-01-19T16:00:39+5:302018-01-20T13:51:06+5:30

आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्या ऑफ‌िस ऑफ प्रॉफिट यानी लाभ के पद पर होने के चलते जाने की आशंका है। पर क्या संविधान में इसके बारे में लिखा गया है?

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'लाभ का पद' का क्या होता है? संविधान में क्या कहा गया है 'ऑफ‌िस ऑफ प्रॉफिट' के बारे में

चुनाव आयोग ने शुक्रवार (19 दिसंबर) को आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्या रद्द करने के लिए राष्ट्रपति को संस्तुति भेज दी है। उन पर ऑफ‌िस ऑफ प्रॉफिट यानी लाभ के पद पर होने का आरोप हैं। आरोप के मुताबिक आप के 21 विधायकों को पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल ने संसदीय सचिव के पद पर नियुक्ति की थी। बाद में हाईकोर्ट ने इन नियुक्तियों को असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया था। लेकिन याचिकाकर्ता प्रशांत पटेल ने कहना है कि नियुक्ति और हाईकोर्ट का फैसला आने के बीच कुछ महीने आप के ये विधायक लाभ के पद पर रहे थे। इसमें विधायक जनरैल सिंह से आरोप हटा दिए गए थे क्योंकि उन्होंने लोकसभा चुनाव के लिए विधायक के पद से इस्तीफा दे दिया था। ऐसे में जानने की जरूरत है कि लाभ का पद होता क्या है।

संविधान में लाभ के पद का पहला उल्लेख

इस बारे में संविधान के अनुच्छेद 102 (1)(क) में उल्लेख है।

संविधान की भाषा में- इस अनुच्छेद के अनुसार, 'कोई व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा यदि वह भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोड़कर, जिसको धारण करने वाले का निरर्हित न होना संसद ने विधि द्वारा घोषित किया है, कोई लाभ का पद धारण करता है।'

आम भाषा में- इसके आम मायने हैं कि किसी भी शख्स को संसद का सदस्य बनने के लिए जरूरी है कि वह किसी भी तरह के पद पर ना हो। लेकिन लाभ पद क्या है इसमें इसकी व्याख्या नहीं की गई है। हां, यह कहा गया है कि सांसद या विधायक ऐसे किसी और पद पर नहीं हो सकता, जहां अलग से सैलरी, अलाउंस या बाकी फायदे मिलते हों। 

लाभ के पद के लिए दिए गए स्पष्टीकरण

संविधान की भाषा में- अनुच्छेद 102 (1)(क) में लाभ के पद के हुए उल्लेख पर बाद में स्पष्टीकरण कर दिया गया है। इसमें कहा है, 'कोई व्यक्ति केवल इस कारण भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का या ऐसे राज्य का मंत्री है।'

आम भाषा में-  आम शब्दों में किसी प्रदेश सरकार के नेता को केवल इसलिए लाभ के पद पर नहीं माना जाएगा कि वह किसी केंद्र सरकार में मंत्री हैं।

संविधान में लाभ के पद के लिए हुआ दूसरा उल्लेख

भारतीय संविधानक अनुच्छेद 103 (1) व (2) में फिर इसका उल्लेख है।

संविधान की भाषा में- 103 (1) में कहा गया है, यदि यह प्रश्न उठता है कि संसद के किसी सदन का कोई सदस्य अनुच्छेद 102 के खंड (1) में वर्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न राष्ट्रपति को विनिश्चय के लिए निर्देशित किया जाएगा और उसका विनिश्चय अंतिम होगा।

आम भाषा में- अगर ऐसा कोई मामला उठता है तो इसमें राष्ट्रपति का फैसला अंतिम होगा।


संविधान की भाषा में- अनुच्छेद 103 (2) में कहा गया है कि लाभ के पद से संबंधित उठे किसी मामले के लिए राष्ट्रपति चुनाव आयोग से मशविरा कर सकता है।


संविधान में लाभ के पद के लिए हुआ तीसरा उल्लेख

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 191(1)(क) राज्यों में लाभ के पद संबंधित मामलों का जिक्र है। आम आदमी पार्टी के विधायकों की सदस्यता को लेकर इसी अनुच्छेद के तहत कार्रवाई होगी।

संविधान की भाषा में- इसमें कहा गया है, 'किसी राज्य की विधायिका के सदस्य के रूप में निर्वाचन के लिए इसी तरह की निरर्हता का उपबंध करता है।' लेकिन यहां भी लाभ के पद की व्यख्या नहीं की गई। अनुच्छेद 191 (1)(ए) और पब्लिक रिप्रेजेंटेटिव एक्ट के सेक्शन 9 (ए) के तहत भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट में सांसदों-विधायकों को अन्य पद लेने से रोकने के बारे में है।

लाभ के पद को समझाने के लिए 2001 में सुप्रीम कोर्ट में गठित की थी तीन सदस्यीय खंडपीठ

साल 2001 में सुप्रीम कोर्ट में एक मामला पहुंचा, शिबू सोरेन का। तब उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय खंडपीठ गठित की। उस वक्त झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन की संसद सदस्यता रद्द करने का मामला था। तब आरोप का आधार यह था कि राज्य सभा में निर्वाचन हेतु नामांकन पत्र दाखिल करते समय वह झारखंड सरकार द्वारा गठित अंतरिम झारखंड क्षेत्र स्वायत्त परिषद के अध्यक्ष के रूप में लाभ का पद धारण कर रहे थे।

तब कोर्ट ने अनुच्छेद 102(1)(क) और अनुच्छेद 191(1)(क) लाभ के पद को समझाने को कहा। उक्त निर्णय में यह बात स्पष्ट हुई 'लाभ का पद धारण करने के कारण संसद की सदस्यता के लिए निरर्हत होने का आधार संसद सदस्य के रूप में उस व्यक्ति के कर्तव्य और हित के बीच टकराव की आशंका है।' यानी लाभ के पद और संसद का सदस्य होने दोनों में नेता के निजी कर्तव्यों और उनके हित में टकराव की आशंका है। यहां भी लाभ के पद की सटीक व्याख्या नहीं हो पाई।

'लाभ के पद' की व्याख्या के लिए हो चुका है जेपीसी का गठन

16 मई, 2006 को लोकसभा में लाभ के पद की व्याख्या के लिए एक विधेयक पारित किया गया था। तब तत्कालीन यूपीए सरकार और विपक्ष एनडीए में जबर्दस्त हंगामा हुआ था। उस दिन दिनभर चली बहस के बाद यह विधेयक ध्वनिमत से पारित हुआ था। तब इसमें राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सहित करीब 45 पदों को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखा गया।

लेकिन यह विधेयक भी लाभ का पद संवैधानिक शब्द लाभ का पद की व्याख्या नहीं करता था। इससे पहले लोकसभा में 'ऑफिस ऑफ प्राफिट' की मुकम्मल परिभाषा के संसद के दोनों सदनों की 15 सदस्यीय एक संयुक्त संसदीय कमिटी गठित की थी। लेकिन बाद में यह कमेटी और विधेयक दोनों ही किसी परिणाम पर नहीं पहुंच पाए।


संसद (निरर्हता निवारण) अधिनियम, 1959 में लाभ के पद का उल्लेख

संसद (निरर्हता निवारण) अधिनियम, 1959 के अनुसार यदि किसी सांविधिक या गैर-सांविधिक निकाय अथवा कंपनी में सदस्य अथवा निदेशक के तौर पर कार्यरत व्यक्ति प्रतिपूरक भत्ते के अलावा किसी अन्य पारिश्रमिक का हकदार नहीं है तो वह संसद सदस्य बनने के अयोग्य नहीं माना जाएगा।

यहां प्रतिपूरक भत्ते का मतलब है उतनी धनराशि है जो संसद सदस्यों को मिलने वाले दैनिक भत्ता, वाहन भत्ता, आवास किराया भत्ता अथवा यात्रा भत्ता से अधिक न हो।

लाभ के पद पर होने बावजूद इन लोगो हैं संसदीय सदस्य बनने की छूट 

संसद (निरर्हता निवारण) अधिनियम, 1959 में कुछ पदों को लाभ का पद होने के बावजूद उन्हें संसद सदस्य बन सकने की निरर्हता से छूट दी गई है।

इस अधिनियम अपवाद रूप में इसका उल्लेख किया गया है। इसमें केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार में मंत्री, राज्य मंत्री या उप मंत्री, संसद में विपक्ष के नेता, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, तथा राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष; एन.सी.सी., प्रादेशिक सेना या रिजर्व एवं सहायक वायु सेना अथवा होमगार्ड के सदस्य; मुम्बई, कलकत्ता या मद्रास के शेरिफ; किसी विश्वविद्यालय की सिंडिकेट, सीनेट, कार्यकारिणी समिति, परिषद अथवा कोर्ट के अध्यक्ष अथवा सदस्य; किसी विशेष प्रयोजन से भारत सरकार द्वारा विदेश भेजे गए प्रतिनिधिमंडल या मिशन के सदस्य; किसी लोक महत्व के मामले में सरकार को सलाह देने के लिए गठित किसी अस्थायी समिति के अध्यक्ष अथवा सदस्य; तथा ग्राम राजस्व अधिकारी आते हैं।

अभी भी व्याख्या की बांट जोह रहा है 'लाभ का पद'

संविधान की गरिमा का खयाल रखते हुए ‘लाभ के पद’ पर बैठा कोई व्यक्ति उसी वक्त विधायिका का हिस्सा नहीं हो सकता। लेकिन लाभ के पद की परिभाषा पर पूरी तरह से स्पष्ट कोई पंक्ति नहीं है।

संवैधानिक शब्द 'लाभ के पद' की स्पष्ट परिभाषा किए जाने की आवश्यकता और इस विषय पर संविधान विशेषज्ञों के बीच बहस को जन्म दे दिया है। संविधान में या संसद द्वारा पारित किसी अन्य विधि में 'लाभ के पद' को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है।

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