राज्य सभा चुनाव 2018: तो क्या सपा-बसपा से गोरखपुर-फूलपुर का ऐसे बदला लेंगे अमित शाह?

By खबरीलाल जनार्दन | Published: March 22, 2018 08:00 AM2018-03-22T08:00:42+5:302018-03-22T08:00:42+5:30

राज्य सभा की 25 सीटों के लिए 23 मार्च को मतदान होना है। उत्तर प्रदेश की 10 सीटों में से नौ पर हार-जीत लगभग तय है। असल मुकाबला बाकी बची एक सीट के लिए है जिसपर सपा के साथ मिलकर बसपा भाजपा को टक्कर दे रही है।

Rajya Sabha Elections 2018: Amit Shah will take revenge of Gorakhpur-Phulpur to SP & BSP | राज्य सभा चुनाव 2018: तो क्या सपा-बसपा से गोरखपुर-फूलपुर का ऐसे बदला लेंगे अमित शाह?

राज्य सभा चुनाव 2018: तो क्या सपा-बसपा से गोरखपुर-फूलपुर का ऐसे बदला लेंगे अमित शाह?

Highlightsराज्यसभा में एनडीए मजबूत और विपक्ष कमजोर पड़ेगा, एनडीए सबसे बड़े गठबंधन के तौर पर उभर सकता हैराज्यसभा में यूपी की जिस सीट के लिए सपा-बसपा गठबंधन हुआ, अमित शाह ने उसी में सेंध लगा दी है

राज्यसभा में 23 मार्च (शुक्रवार) को होने जा रहे 25 सीटों के चुनाव में सबसे दिलचस्प मुकाबला एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) बनाम समाजवादी पार्टी (सपा)-बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबंधन में होने जा रहा है। लेकिन इस बार बीजेपी की कमान राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने खुद अपने हाथों में ले ली है। उन्होंने गोरखपुर-फूलपुर उपचुनावों में बीजेपी की हार का बदला चुकाने का पूरा इंतजाम कर लिया है।

राजनीति में एक दूसरे के 22 सालों के दुश्मन सपा-बसपा बीते महीने जब बीजेपी के खिलाफ एक साथ आए तो जमकर विश्लेषण हुए। उनमें सबसे तार्किक विचार यह था कि दोनों में एक अघोषित संधि हुई है। वह ये कि उपचुनावों में बसपा, सपा को समर्थन देगी और राज्यसभा चुनावों में सपा, बसपा को। लेकिन कैसे? संधि का आधार क्या था? गोरखपुर-फूलपुर में अप्रत्याशित जीत के बाद अब इस गठबंधन की कसौटी अब और ज्यादा नजरों में गड़ गई है। आइए उस गणित को समझते हैं, जिस पर बसपा ने सपा को समर्थन दिया था।

राज्यसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश 

राज्यसभा में उत्तर प्रदेश की 10 सीटों पर चुनाव होने हैं। राज्यसभा चुनावों के नियमानुसार इनमें से 8 सीटों पर बीजेपी की जीत सुनिश्चित है। और 1 सीट पर सपा की जीत तय है। बची 1 सीट। इसी 1 सीट के मायावती ने 22 साल की दुश्मनी भुलाकर अखिलेश को समर्थन दिया था।

यूपी उलझी 1 राज्यसभा सीट का गणित

403 विधानसभा सदस्यों वाले उत्तर प्रदेश से राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए किसी भी उम्मीदवार को 37 विधायकों के वोट चाहिए। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के बीजेपी व उसके सहयोगी दलों के पास 324 विधायक हैं। इसलिए एनडीए अपने महज 296 विधायकों से ही 8 सीटें जीत जाएगी। जबकि 28 विधायक फिर भी शेष बचेंगे। इसलिए बीजेपी ने निर्दलीय उम्मीदवार अनिल अग्रवाल को सपा-बसपा गठबंधन के समक्ष खड़ा कर दिया है। इन्हें जीताने के लिए अमित शाह को प्रदेश के 9 अन्य विधायक अपने पक्ष में लाने हैं।

यहां सवाल उठता है कि मायावती का दांव क्या था? तो ये कि यूपी में सपा के 47 सीटें हैं इसलिए एक सीट जया बच्चन की पक्की है। इसके बाद बचे विधायक 10। ये बसपा प्रत्याशी भीमराव अंबेडकर के पक्ष वोट करेंगे। लेकिन खुद बसपा के पास 19 विधायक हैं। ऐसे में सपा-बसपा गठबंधन को चुनाव जीतने के लिए चाहिए 8 विधायकों का और समर्थन चाहिए। उन्हें 7 कांग्रेसी विधायकों का सीधा सपोर्ट मिल रहा है। इसलिए अब फिर से बीजेपी को मात देने के लिए चाहिए था बस 1 विधायक का वोट।

लेकिन यही अमित शाह ने गणित लगा दी। राज्यसभा चुनावों के ऐन पहले दिग्गज सपा नेता नरेंद्र अग्रवाल को बीजेपी में ले आए। अब वे डंके की चोट पर कह रहे हैं कि मेरा सपा विधायक बेटा नितिन अग्रवाल बीजेपी के पक्ष में वोट करेगा। जिस ताक में बसपा ने सपा को उपचुनावों में सपोर्ट किया अमित शाह ने उसी में सेंध लगा दी। बसपा को सपोर्ट करने के लिए सपा के पास बस 9 विधायक बचे। उन नौ में से भी हालिया अखिलेश की डिनर पार्टी में पांच नदारत रहे। उम्मीद की जा रही है कि इसमें अमित शाह पैतरे लगा चुके हैं। 

बीच में उपचुनावों की ही तरह बसपा बड़ा अनोखा दांव लगा दिया था। बसपा, बीजेपी के सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के ही चार विधायक उड़ाने की ताक में थी। लेकिन अमित शाह ने नाराज सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर को डिनर पर बुलाया और गोट्टी सेट कर दी। अमित शाह इस विधा के माहिर खिलाड़ी हैं। अब चुनाव नतीजों के बाद साफ होगा कि अमित शाह 5 विधायक जुटा पाए या सपा-बसपा गठबंधन 2 विधायक। लेकिन एक बार फिर यूपी बीजेपी और सपा-बसपा गठबंधन का रणक्षेत्र बन गया है। योगी आदित्यनाथ सूबे के विधायकों को राजभवन में ‌डिनर करा रहे हैं तो अखिलेश अपने निवास पर।

राज्यसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के अलावा पांच राज्य

कर्नाटक: कुल सीट-4
- कांग्रेस: एल हनुमनथईया, सईद नसीर, जीसी चंद्रशेखर, जेडीएस से बीएम फारूख, बीजेपी: राजीव चंद्रशेखर।
- कांग्रेस की 2 सीट पर जीत तय, तीसरी सीट पर भी विरोधियों से बहुत आगे। बीजेपी की 1 सीट पर जीत लगभग तय

पश्चिम बंगाल: कुल सीट-5
- कांग्रेस: अभिषेक मनु सिंघवी, टीएमसी: नदीमुल हक, सुभाशीष चक्रवर्ती, अबीर बिस्वास और डा. संतुनु सेन, लेफ्ट: रॉबिन देव।
- टीएमसी के चार और कांग्रेस के एक उम्मीदवार की जीत तय 

झारखंड: कुल सीट- 2
- भाजपा: समीर उरांव और प्रदीप सांथालिया, कांग्रेस: धीरज साहू।
- बीजेपी की एक सीट पक्की, दूसरी पर भी बीजेपी का दांव कांग्रेस से बेहतर

तेलंगाना: कुल सीट- 3
- टीआरएस: जे संतोष कुमार, लिंगइया, बी प्रकाश मुदिराज, कांग्रेस:पी बलराम नाइक।
- टीआरएस की 2 सीट तय, तीसरी सीट पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की समर्थन से कांग्रेस बहुत आगे

छत्तीसगढ़: कुल सीट- 1
- बीजेपी: सरोज पांडेय, कांग्रेस: लेखराम साहू।  
- मामला कोर्ट में, कांग्रेस उम्मीदवार बीएसपी के समर्थन से बीजेपी बहुत आगे

राज्यसभा में भी NDA का पाला मजबूत, सबसे बड़ा गठबंधन बनने की उम्मीद

राज्यसभा 2018 चुनाव में क्या
उच्च सदन के 233 निर्वाचित सदस्यों में इस साल 16 राज्यों के 58 सांसद सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इन्हीं के बाबत चुनाव कराए जा रहे हैं। लेकिन नामांकन की अंतिम तारीख तक 10 राज्यों से 33 राज्यसभा सांसद निर्विरोध चुन लिए गए। अब बचे 6 राज्यों की 25 सीटों पर 23 मार्च को मतदान होंगे। जैसा कि हमने ऊपर बताया इन छह राज्यों में सबसे दिलचस्प मुकाबला उत्तर प्रदेश में होने जा रहा है।

अब तक राज्यसभा की स्‍थ‌िति क्या?
कुल 245 सदस्यों के उच्च सदन में फिलवक्त कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष के 123 सांसद हैं। जबकि बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के 83 व आमतौर पर राज्यसभा में एनडीए को बाहर से समर्थन देने वाली ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) के 13 व चार निर्दलीय सांसद हैं। दो पक्षों में बांटें तो लोकसभा में प्रचंड बहुत वाला एनडीए यहां विपक्ष से कमजोर है।

राज्यसभा में बनने जा रहे नये समीकरण
इस बार एनडीए के 24 सांसद सेवानिृत्त हो रहे हैं। जबकि बीजेपी व सहयोगी दलों के 33-38 से ज्यादा सीटें जीतने की उम्मीद है। ऐसे में राज्यसभा में एनडीए की दावेदारी 83 से बढ़कर 92 से 98 तक पहुंचने के आसार हैं। जबकि बाहरी समर्थनों को गिनें तो यह अंक 115 सांसदों की संख्या पार करते हैं।

इसके अलावा तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस), भारतीय राष्ट्रीय लोक दल (आईएनएलडी) और वायएसआर कांग्रेस जैसी पार्टियां भी हैं, जो पूरी तरह बीजेपी के खिलाफ नहीं हैं और वे जब तक कोई ठोस कारण न हो सरकार का विरोध नहीं करेंगी।

दूसरी ओर कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों के 30 सांसद सेवानिवृत्त हो रहे हैं। जिसके बाद उनके करीब 93 सदस्य बचेंगे। लेकिन इनमें से 17 से 20 के ही जीतने की उम्मीद है। ऐसे में विपक्ष 123 सीटों की तुलना में करीब 108 से 111 सीटों पर ही सिमटता नजर आ रहा है।

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