बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व विभिन्न राज्यों की गैर-भाजपाई सरकारों को गिराने में लगा हुआ है, लेकिन ऑपरेशन लोटस.... कर्नाटक में सफल, एमपी में आधा-सफल और राजस्थान में अ-सफल रहा, क्यों?दरअसल, तीनों राज्यों की सियासी तस्वीरें अलग-अलग हैं.
कर्नाटकः यहां प्रदेश के कांग्रेस नेताओं की अतिमहत्वकांक्षा के कारण, जेडीएस और कांग्रेस साथ-साथ नहीं चल पाए, जिसके नतीजे में बीजेपी को अवसर मिल गया, वह कर्नाटक में न केवल सरकार बनाने में कामयाब रही, बल्कि जनता की अदालत में भी इसलिए कामयाब रही कि विधानसभा उप-चुनाव में त्रिकोणात्मक संघर्ष हो गया, बीजेपी विरोधी वोट बंट गए!
मध्यप्रदेशः यहां पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को ज्योतिरादित्य सिंधिया की सियासी ताकत का अंदाजा नहीं था, लिहाजा वे लगातार उनकी राजनीतिक उपेक्षा करते रहे. परिणाम यह रहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी का दामन थाम लिया. बहुमत खोने के बाद कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया और शिवराज सिंह मुख्यमंत्री बन गए. यहा बीजेपी सरकार बनाने में तो सफल रही है, परन्तु यह सफलता इसलिए आधी है कि उप-चुनाव में जनता की अदालत में जरूरी सफलता नहीं मिली तो हाथ में आई सत्ता, फिसल भी सकती है.
राजस्थानः यहां सीएम अशोक गहलोत ने न केवल बीजेपी के ऑपरेशन लोटस को एक्सपोज करके असफल कर दिया है, बल्कि अपना बहुमत भी सबके सामने प्रदर्शित कर दिया है. यदि उन्हें विधानसभा में बहुमत साबित करने का मौका मिल गया तो राजस्थान में भविष्य में भी ऑपरेशन लोटस के लिए दरवाजे बंद हो जाएंगे.
और अब.... राजस्थान के सियासी संग्राम में बीजेपी के एक्सपोज होने के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने तो विपक्ष को खुली चुनौती ही दे डाली है कि- विपक्ष उनकी सरकार गिराने की हिम्मत दिखाए?