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फैज की नज्म पर बोले मुनव्वर राना, हर चीज को सांप्रदायिक बनाने के लिए की जा रही राजनीति

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 3, 2020 16:48 IST

आईआईटी कानपुर नें एक जांच कमेटी बनाई है, ये कमेटी इस बात की जांच करगी कि क्या महान पाकिस्तानी कवि फैज अहमद फैज की कविता ' हम देखेंगे ' हिंदुओं की भावनाओं के लिए आक्रामक है या नहीं।

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ठळक मुद्देमहान कवि  फैज अहमद फैज की कविता ' हम देखेंगे ' पर मचे हंगामे के बीच मशहूर उर्दू कवि  मुनव्वर राना ने प्रमुख इंजीनियरिंग संस्थान को कविता में हस्तक्षेप नहीं करते हुए  सुझाव दिया है  कि यह सब कुछ राजनीति को "सांप्रदायिक" बनाने के लिए हो रहा है।राना के बयान के बाद कुछ सदस्यों ने यह शिकायत की कि नागरिकता संशोधन एक्ट (CAA) के खिलाफ जारी प्रदर्शनों में 17 दिसंबर को परिसर में शांतिपूर्ण मार्च निकालने वाले छात्रों और जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों ने एकजुट हो कर फैज की कविता को विरोध के रूप में इनागरिकता संशोधन एक्ट (CAA)पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न से भाग रहे हिंदुओं, सिखों, जैनियों पारसियों, बौद्धों और ईसाइयों को नागरिकता प्रदान करता है, जो 31 दिसंबर, २०१४ को या उससे पहले भारत आया था ।

पाकिस्तानी शायर फैज अहमद फैज की नज्म 'हम देखेंगे' पर मचे हंगामे के बीच मशहूर शायर मुनव्वर राना ने कहा कि यह सब कुछ राजनीति को "सांप्रदायिक" बनाने के लिए हो रहा है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर नें एक जांच कमेटी बनाई है, ये कमेटी इस बात की जांच करेगी कि क्या महान पाकिस्तानी कवि फैज अहमद फैज की कविता ' हम देखेंगे ' हिंदुओं की भावनाओं के लिए आक्रामक है या नहीं।

राना ने एएनआई से बातचीत में कहा, हम आईआईटी को कविता पर फैसला लेने की इजाजत नहीं दे सकते है क्योंकि आईआईटी एक लाख वैज्ञानिक पैदा कर सकता है, लेकिन उन एक लाख वैज्ञानिकों ने मिलकर 'रामायण ' जैसा महाकाव्य नहीं लिखा है। उन्होंने कहा, बेहतर होगा कि आईआईटी इसमें किसी भी तरह का हस्तक्षेप ना करे।

कमेटी के बारे में बात करते हुए राना ने कहा, 'वो लोग कविता को नहीं समझते और जो लोग इस पर फैसला करेंगे, वो कविता के बारे में भी नहीं जानते। मुनव्वर राना से यह पूछा गया कि क्या वह इस मुद्दे में कोई राजनीति देखते हैं, तो इस पर राना ने कहा, 'वे सिर्फ राजनीति कर रहे हैं, उन्होंने सब कुछ सांप्रदायिक बनाने की कसम खाई है।

राना के बयान के बाद कुछ सदस्यों ने यह शिकायत की कि नागरिकता संशोधन एक्ट (CAA) के खिलाफ जारी प्रदर्शनों में 17 दिसंबर को परिसर में शांतिपूर्ण मार्च निकालने वाले छात्रों और जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों ने एकजुट हो कर फैज की कविता को विरोध के रूप में इस्तेमाल किया।

इसकी शिकायत निदेशक अभय करंदीकर से की गई जिसके बाद से इस मामले में ध्यान देने के लिए कमेटी का गठन किया गया। आईआईटी कानपुर कथित तौर पर इस कमेटी के निष्कर्षों और सुझाव के आधार पर सख्त कार्रवाई करेगा।

नागरिकता संशोधन एक्ट (CAA)पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न से भाग रहे हिंदुओं, सिखों, जैनियों पारसियों, बौद्धों और ईसाइयों को नागरिकता प्रदान करता है, जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत आया था ।

टॅग्स :फ़ैज़ अहमद फ़ैज़नागरिकता संशोधन कानून 2019कैब प्रोटेस्ट
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