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के. कामराजः आजाद भारत का पहला 'किंगमेकर' जिसने राजनीति के मानक तय किए!

By आदित्य द्विवेदी | Updated: July 15, 2018 07:10 IST

- बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने तीन कार्यकाल शासन किया। प्रधानमंत्री नेहरू भी उनके काम की तारीफ करते नहीं अघाते थे। लेकिन 2 अक्टूबर 1963 को कामराज ने मुख्यमंत्री पद की कुर्सी छोड़ी और संगठन के काम में लग गए।

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स्वतंत्रता सेनानी, गांधीवादी, तीन बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष रहे कुमारासामी कामराज को स्वतंत्र भारत की राजनीति का पहला ‘किंगमेकर’ माना जाता है। पार्टी का पूरा समर्थन होने के बावजूद उन्होंने दो बार पीएम पद की कुर्सी दूसरों को सौंप दी। कामराज के जीवन में गांधी जी के आदर्श इतने हावी थे कि उन्होंने सत्ता से ऊपर संगठन को तरजीह दी। तीन बार मद्रास के मुख्यमंत्री रहने के बाद 2 अक्टूबर 1963 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से अपनी इच्छा जताई। नेहरू ने कामराज के सुझाव को गंभीरता से लेते हुए 6 केंद्रीय मंत्रियों और 6 मुख्यमंत्रियों को सरकार से हटाकर संगठन के काम में लगा दिया। इस योजना को भारतीय राजनीति में कामराज प्लान के नाम से जाना जाता है। 15 जुलाई को के. कामराज का जन्मदिन होता है।

जन्मदिन विशेषः के. कामराज के जीवन के चुनिंदा तथ्य

- कामराज का जन्म 15 जुलाई 1903 को तमिलनाडु के एक पिछड़े इलाके में गरीब परिवार में हुआ था। वो नाडर जाति के थे। उन्होंने सिर्फ 6 साल की उम्र तक पढ़ाई की और 12 साल में मजदूरी करना शुरू कर दिया।

- 18 साल की उम्र में कामराज की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई और उन्होंने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। कामराज सालों तक एक आम कार्यकर्ता के रूप में काम करते रहे। 20 साल की उम्र में उनकी मुलाकात तमिलनाडु कांग्रेस कमेटी सत्यमूर्ति से हुई। वो एक बड़े नेता और अच्छे वक्ता माने जाते थे। कामराज ने उन्हें अपना राजनीतिक गुरू बना लिया।  

- 1930 में कामराज ने नमक सत्याग्रह आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया जिसके बाद उन्हें पहली बार जेल हुई। एक बार जाना हुआ तो जेल जाने का सिलसिला जारी रहा। 

- जब भारत को आजादी मिली उस वक्त कामराज 44 साल के थे। वे 1940 से 1954 तक तमिलनाडु कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। 1954 में मद्रास के मुख्यमंत्री बने। संभवतः भारत में वो पहले गैर-अंग्रेजी भाषी मुख्यमंत्री थे।

- बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने तीन कार्यकाल शासन किया। प्रधानमंत्री नेहरू भी उनके काम की तारीफ करते नहीं अघाते थे। लेकिन 2 अक्टूबर 1963 को कामराज ने मुख्यमंत्री पद की कुर्सी छोड़ी और संगठन के काम में लग गए।

- नेहरू के निधन के बाद बड़ा सवाल था कि प्रधानमंत्री किसे बनाया जाए? कामराज के नाम की चर्चा ज़ोरों पर थी। लेकिन उस वक्त कामराज ने कहा था कि जिसे हिंदी ना आती हो उसे इस देश का प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहिए। उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री का नाम प्रस्तावित किया। ताशकंद में शास्त्री की मृत्यु के बाद कामराज ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाया। 1967 के चुनाव में कामराज अपना विधानसभा चुनाव हार गए। इससे पार्टी में उनकी प्रतिष्ठा को चोट पहुंची।

- इंदिरा गांधी से मतभेद के बाद कांग्रेस पार्टी का विभाजन हो गया। अधिकांश सदस्यों को इंदिरा गांधी अपने साथ ले गई। कामराज अकेले पड़ गए। पद छूट गया उसके बावजूद अपनी आखिरी सांस तक जनता की सेवा करते रहे। 2 अक्टूबर 1975 को दिल का दौरा पड़ने से कामराज की मौत हो गई। इसके एक साल बाद ही उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया।

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