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श्रीराम मंदिरः वे तो आडवाणी को ही श्रेय देने को तैयार नहीं, राजीव गांधी को कहां से देंगे?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: August 6, 2020 16:49 IST

स्वामी की बात सही है, लेकिन बीजेपी का वर्तमान नेतृत्व श्रीराम मंदिर का श्रेय तो दूर, बीजेपी के वरिष्ठ नेता और श्रीराम मंदिर आंदोलन के नेतृत्वकर्ता लालकृष्ण आडवाणी का नाम तक लेने को तैयार नहीं है, राजीव गांधी को श्रेय कैसे देंगे?

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ठळक मुद्देकार्यक्रम से पहले खबर थी कि बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी का बयान था कि राम मंदिर निर्माण में पीएम मोदी का तो कोई योगदान नहीं है.राजीव गांधी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा था कि यदि वे दोबारा पीएम बने होते तो कब का राममंदिर बन चुका होता, उन्होंने ही विवादित स्थल का ताला खुलवाया था.श्रीराम मंदिर आंदोलन में लालकृष्ण आडवाणी की भूमिका तो सबको पता है, लेकिन इसमें राजीव गांधी का भी कम योगदान नहीं है.

जयपुरः श्रीराम भूमि पूजन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों संपन्न हो गया. हालांकि, श्रीराम मंदिर आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभानेवाले कई व्यक्ति इस अवसर पर उपस्थित नहीं थे. याद रहे, इस कार्यक्रम से पहले खबर थी कि बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी का बयान था कि राम मंदिर निर्माण में पीएम मोदी का तो कोई योगदान नहीं है.

यही नहीं, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा था कि यदि वे दोबारा पीएम बने होते तो कब का राममंदिर बन चुका होता, उन्होंने ही विवादित स्थल का ताला खुलवाया था. यकीनन, स्वामी की बात सही है, लेकिन बीजेपी का वर्तमान नेतृत्व श्रीराम मंदिर का श्रेय तो दूर, बीजेपी के वरिष्ठ नेता और श्रीराम मंदिर आंदोलन के नेतृत्वकर्ता लालकृष्ण आडवाणी का नाम तक लेने को तैयार नहीं है, राजीव गांधी को श्रेय कैसे देंगे?

श्रीराम मंदिर आंदोलन में लालकृष्ण आडवाणी की भूमिका तो सबको पता है, लेकिन इसमें राजीव गांधी का भी कम योगदान नहीं है. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने वर्ष 1985 में दूरदर्शन से रामानंद सागर के रामायण के प्रसारण में मुख्य भूमिका निभाई थी, जिसके प्रसारण से पूरा देश राममय हो गया था.

यही नहीं, राजीव गांधी ने ही वर्ष 1986 में यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के ताले खुलवाने के लिए तैयार किया, जिसके नतीजे में रामलला के दर्शन प्रारंभ हुए. समय साक्षी है, कईं राजाओं ने अपने प्रभावकाल में अपने हिसाब से इतिहास लिखवाया जरूर, लेकिन असली इतिहास को नहीं बदल पाए? यही वजह है कि अकबरनामा आज भी महज पुस्तकालयों की शोभा बढ़ा रहा है, परन्तु महाराणा प्रताप की कहानियां पूरे देश में सुनाई देती हैं!  

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