1 / 9ओडिशा का पुरी शहर भगवान जगन्नाथ की भक्ति में डूब गया है। 4 जुलाई से शुरू हो रहे रथयात्रा में हिस्सा लेने के लिए लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचे हैं।2 / 9पुराणों में जगन्नाथ पुरी को धरती का बैकुंठ कहा गया है। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने पुरी में पुरुषोतम नीलमाधव के रूप में अवतार लिया था।3 / 9रथयात्रा के मौके पर पुरी की सड़कों पर विभिन्न वेश-भूषा में भक्त जुटे हैं। ऐसी मान्यता है कि श्री जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम के रथ खींचने से पुण्य मिलता है। तमाम भक्तों के बीच इसकी होड़ भी देखने को मिलती है।4 / 9इस आयोजन के तहत भगवान श्री जगन्नाथ सहित बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा को रथ पर सवार किया जाता है और नगर का भ्रमण कराते हुए उन्हें उनकी मौसी गुंडीचा देवी के मंदिर तक ले जाया जाता है। श्री जगन्नाथ यहां एक हफ्ते के लिए रहते हैं। 5 / 9इस विशेष आयोजन के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये हैं। एक सप्ताह चलने वाले इस महोत्सव के दौरान पुरी में करीब दो लाख श्रद्धालुओं के आने की संभावना है जो पिछले साल से 30 प्रतिशत से ज्यादा है।6 / 9आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को हर साल होने वाले इस विशेष आयोजन का समापन शुक्ल पक्ष के 11वें दिन वापस भगवान जगन्नाथ के अपने घर लौटने पर होता है। इसके लिए पिछले कई महीनों से रथ बनाने का भी काम शुरू हो जाता है।7 / 9रथ का निर्माण वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से शुरू होता है। इसमें धातु की बजाय लकड़ी के टुकड़ों का ही इस्तेमाल किया जाता है। किसकी मूर्ति कितनी बड़ी होगी, यह भी तय होता है।8 / 9इस आयोजन के मौके पर सुरक्षा इंतजामों को बरकरार रखना सबसे बड़ी चुनौती होती है। हर साल होने वाले इस आयोजन का हिंदू मान्यताओं में विशेष महत्व है। ऐसा कहते हैं कि जगन्नाथ रथयात्रा में रथ को खींचने से मुक्ति मिल जाती है।9 / 9पुरी के अलावा देश भर के दूसरे हिस्सों में भी प्रतीक के तौर पर रथयात्रा का आयोजन किया जाता है। हालांकि, सबसे अधिक महत्व पुरी की रथयात्रा का ही है। हर साल होने वाले इस विशेष आयोजन का समापन शुक्ल पक्ष के 11वें दिन वापस भगवान जगन्नाथ के अपने घर लौटने पर होता है।