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शैली ने कहा, मेरी मां ने लोगों के मना करने के बावजूद मुझे अकेले बेंगलुरू भेजा

By भाषा | Updated: August 25, 2021 18:49 IST

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शैली सिंह बतौर एथलीट अपने कोच रोबर्ट बॉबी जार्ज की बदौलत आगे बढ़ी लेकिन उनकी मां ने शुभचिंतकों के विरोध के बावजूद ट्रेनिंग के लिये बेंगलुरू भेजकर अपनी बेटी को खेल में आगे बढ़ाने के लिये पहला बड़ा कदम उठाया था। शैली की मां विनीता ने बड़ी परेशानियां उठाते हुए अपने बच्चों को पाला। वह उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में पारीछा ताप विद्युत संयत्र के करीब गांव में अपने तीन बच्चों की पढ़ाई का खर्चा उठाने के लिये कपड़ों की सिलाई का काम करती और दो कमरों के घर के लिये 3000 रूपये के करीब किराया देतीं। नैरोबी में विश्व अंडर-20 चैम्पियनशिप में पदक विजेताओं के लिये सम्मान समारोह के कार्यक्रम में शैली ने कहा, ‘‘जब मैंने एथलेटिक्स शुरू की थी तो काफी समस्याओं का सामना किया था जिसमें डाइट (पोषण) और कई अन्य चीजें शामिल थीं। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब अंजू मैडम ने मुझे ट्रेनिंग के लिेय बेंगलुरू बुलाया तो हमारे यहां कई लोगों ने मेरी मां से कहा कि अपनी बेटी को अकेले शहर क्यों भेज रही हो। लेकिन उन्होंने कहा कि ‘यह मेरी बेटी है, मैं उसे जानती हूं और मैं उसे भेज रही हूं’। ’’ शैली ने कहा, ‘‘मेरी मां बहुत ही मजबूत और दृढ़निश्चयी है। मुझे उनसे काफी आत्मविश्वास मिलता है जिससे चीजें मेरे लिये आसान हो गयीं। ’’ शैली ने 6.59 मीटर की कूद लगाकर रजत पदक अपने नाम किया। लंबी कूद की महान एथलीट अंजू बॉबी जार्ज ने 13 साल की उम्र में उनकी प्रतिभा को देखा जो अपने पति रोबर्ट के कहने पर नवंबर 2017 में विशाखापत्तनम में हुई राष्ट्रीय अंतरराज्यीय जिला जूनियर एथलेटिक्स प्रतियोगिता में गयी थीं। और अप्रैल 2018 में इस युवा खिलाड़ी ने प्रतिभा दिखानी शुरू कर दी। यह पूछने पर कि जब विश्व चैम्पियनशिप में भारत की एकमात्र पदक विजेता अंजू ने उन्हें बेंगलुरू में ट्रेनिंग के लिये बुलाया तो शैली ने कहा, ‘‘मैं बहुत ही उत्साहित थी और मैं मैडम को ना कैसे कह सकती थी। मैं जानती कि यह मेरे अच्छे के लिये ही है और मैं इसके लिये इंतजार कर रही थी, मैं तैयार हो गयी और मेरी मां बहुत खुश थी। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं खेल को जारी रखने के लिये परेशानियों से जूझ रही थी लेकिन बेंगलुरू आकर सारी चीजें एकदम से बदल गयीं। शैली के लिये फिर नयी जिंदगी शुरू हुई। ’’ बेंगलुरू में सेंट पैट्रिक्स स्कूल की दसवीं की छात्रा शैली ने कहा कि वह प्रतियोगिताओं में भाग लेने की वजह से परीक्षा में नहीं बैठ पायी। शैली की बड़ी बहन बी.कॉम के अंतिम वर्ष में हैं और उनका छोटा भाई छठी कक्षा में है। यह पूछने पर कि नैरोबी में जीत के बाद पोडियम पर कैसा महसूस हो रहा था तो शैली ने कहा, ‘‘स्वर्ण पदक विजेता का झंडा ऊपर जा रहा था लेकिन मैं अपने राष्ट्रीय ध्वज की ओर देख रही थी जो भी ऊपर जा रहा था। मैं दूसरे स्थान पर थी लेकिन मेरे लिये यह पहला स्थान है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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