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पेस का कांस्य पदक ओलंपिक में भारतीय स्वर्णिम गाथाओं में से एक

By भाषा | Updated: July 4, 2021 11:45 IST

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... अमित आनंद...

नयी दिल्ली, चार जुलाई लगातार तीन ओलंपिक में ‘सिफर’ का सामना करने के बाद भारत अटलांटा ओलंपिक 1996 में जब एक बार फिर से शून्य की तरफ बढ़ रहा था तब टेनिस कोर्ट पर लिएंडर पेस ने चमत्कारिक प्रदर्शन करके कांस्य पदक जीता जिसे वह दिग्गज स्टार आज भी अपनी सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि मानता है।

पेस का पदक कांसे का जरूर था लेकिन भारतीयों के लिए इसकी चमक सोने से कम नहीं थी क्योंकि 1980 मास्को ओलंपिक में हॉकी में स्वर्ण पदक जीतने के बाद 1984 के लॉस एंजिल्स, 1988 के सियोल ओलंपिक और 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में भारत कोई पदक नहीं जीत सका था।

यही नहीं पेस व्यक्तिगत स्पर्धा में भी 1952 ओलंपिक में कासाबा दादा साहेब जाधव के बाद पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने थे। जाधव ने कुश्ती के फ्रीस्टाइल 57 किग्रा वर्ग में कांस्य जीता था।

टेनिस को 1924 में ओलंपिक खेलों से बाहर कर दिया गया था, लेकिन 1988 में इस खेल की फिर से वापसी हुई थी।

पेस के पास ओलंपिक 1992 में ही पदक जीतने का मौका था। बार्सिलोना में तब 19 साल के इस खिलाड़ी और रमेश कृष्णन की पुरुष युगल जोड़ी को जॉन बासिल फिटजगेराल्ड और टॉड एंड्रयू वुडब्रिज की ऑस्ट्रेलियाई जोड़ी से क्वार्टर फाइनल में हार का सामना करना पड़ा था। इस ओलंपिक में सेमीफाइनल में पहुंचने पर कांस्य पदक पक्का था लेकिन अंतिम आठ में भारतीय जोड़ी की हार के साथ उनका सपना टूट गया था।

पेस ने इसके बाद एकल में ध्यान देना शुरू किया और अगले चार वर्षों की मेहनत के दम पर अटलांटा ओलंपिक के लिए विश्व रैंकिंग में 127वें स्थान पर रहते हुए वाइल्ड कार्ड हासिल करने में सफल रहे।

उन्होंने इस ओलंपिक में अपने अभियान के दौरान रिची रेनबर्ग, निकोलस पिरेरिया, थॉमस एंक्विस्ट और डिएगो फुरलान को हराकर सेमीफाइनल में जगह पक्की थी, जहां उनका सामना अमेरिका के महान खिलाड़ी आंद्रे अगासी से हुआ।

पेस ने मैच के पहले सेट में अगासी को कड़ी टक्कर दी लेकिन दूसरे सेट में अमेरिकी खिलाड़ी ने पेस को कोई मौका नहीं दिया और मैच 7-6, 6-3 से अपने नाम कर लिया। इस दौरान पेस की कलाई चोटिल हो गयी और कांस्य पदक के मुकाबले में ब्राजील के फेरांडो मेलिगेनी के खिलाफ उनका यह दर्द फिर से उभर गया।

फेरांडो ने पहला सेट 6-3 से जीता लेकिन पेस ने इसके बाद दर्द पर काबू पाते हुए शानदार वापसी की और लगातार दो सेट जीतकर 3-6, 6-2, 6-4 से मुकाबला अपने नाम कर तीन अगस्त 1996 का दिन भारतीय खेल प्रेमियों के लिये यादगार बना दिया।

एकल में ओलंपिक सफलता के बाद पेस ने 2000 में सिडनी, 2004 में एथेंस, 2008 में बीजिंग, 2012 में लंदन और 2016 में रियो खेलों में भाग लिया लेकिन पदक नहीं जीत पाए।

पेस और पुरुष युगल में उनके सबसे सफल जोड़ीदारों में से एक महेश भूपति सिडनी ओलंपिक में कोई खास सफलता हासिल नहीं कर पाये थे।

एथेंस ओलंपिक से पहले पेस और भूपति की जोड़ी टूट गयी थी लेकिन उन्होंने देश के लिए फिर से एक साथ आने का फैसला किया। कांस्य पदक के मुकाबले में हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

इसके चार साल बाद पेस और भूपति के मनमुटाव की खबरें किसी से छिपी नहीं थी। जिसका असर बीजिंग ओलंपिक में दोनों के खेल पर भी दिखा और यह जोड़ी बिना कोई प्रभाव छोड़े इन खेलों से बाहर हो गयी।

लंदन ओलंपिक से पहले भारतीय टेनिस खिलाड़ियों के मतभेद खुलकर सामने आ गये। एआईटीए (अखिल भारतीय टेनिस संघ) के प्रयासों के बावजूद भूपति और रोहन बोपन्ना दोनों ही पेस के साथ खेलने के लिए तैयार नहीं थे।

एआईटीए को फिर भूपति और बोपन्ना तथा पेस और विष्णु वर्धन की जोड़ियों को खेलों के इस महासमर में भेजने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस फैसले पर नाखुशी जताते हुए पेस ने धमकी दी कि मिश्रित युगल में सानिया मिर्जा के साथ उनकी जोड़ी नहीं बनायी गयी तो वह ओलंपिक से नाम वापस ले लेंगे। सानिया हालांकि भूपति के साथ जोड़ी बना कर खेलना चाहती थी लेकिन एआईटीए ने पेस को उनका जोड़ीदार बना दिया। इस ओलंपिक में कोई भी भारतीय जोड़ी पदक जीतने के करीब नहीं पहुंच पायी।

टीम चयन की यह चिक-चिक रियो ओलंपिक (2016) में भी जारी रही, जहां बोपन्ना ने पेस को जोड़ीदार बनाने पर नाराजगी जताई। यह दोनों के मनमुटाव का ही असर था कि यह जोड़ी पहले दौर में बाहर हो गयी। महिला युगल में भी भारत को निराशा हाथ लगी जहां टेनिस स्टार सानिया मिर्जा अपनी जोड़ीदार प्रार्थना थोंबारे के साथ पहले दौर में हारकर बाहर हो गयी थी।

सानिया और बोपन्ना की मिश्रित युगल जोड़ी ने हालांकि क्वार्टर फाइनल में एंडी मर्रे और हीथर वॉटसन की जोड़ी को 6-4,6-4 हराकर कर पदक की उम्मीदों को बनाये रखा था।

सेमीफाइनल में अमेरिका की वीनस विलियम्स और राजीव राम की जोड़ी ने भारतीय खिलाड़ियों को पहला सेट गंवाने के बाद 2-6, 6-2, 10-2 से पराजित कर दिया। इसके बाद कांस्य पदक मुकाबले में भारतीय जोड़ी को चेक गणराज्य की एल हादेका और रादेक स्टेपानेक की जोड़ी के हाथों 1-6, 5-7 से हार झेलनी पड़ी।

तोक्यो ओलंपिक में भी भारत को पदक दिलाने की उम्मीदें सानिया से ही होगी। सानिया और अंकिता रैना आगामी तोक्यो ओलंपिक में महिला युगल टेनिस में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी। सानिया इसके साथ ही ओलंपिक में चार बार भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली महिला खिलाड़ी भी बन जाएंगी, जबकि अंकिता का यह पहला ओलंपिक होगा।

पुरुष एकल या युगल में किसी भारतीय खिलाड़ी के लिए ओलंपिक का टिकट हासिल करना अब लगभग नामुमकिन है। यह पिछले कुछ वर्षों से जारी भारतीय टेनिस की दुर्दशा को भी दर्शाता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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