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देश को पी टी ऊषा देने वाले मशहूर कोच ओ एम नांबियार नहीं रहे

By भाषा | Updated: August 19, 2021 20:55 IST

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भारत को पी टी ऊषा जैसी सर्वश्रेष्ठ ट्रैक एवं फील्ड स्टार देने वाले प्रसिद्ध कोच ओ एम नांबियार का उम्र संबंधी बीमारियों के कारण गुरुवार को निधन हो गया। वह 88 वर्ष के थे।नांबियार के परिवार में उनकी पत्नी लीला, तीन पुत्र और एक पुत्री है। उन्होंने कोझिकोडा जिले वडाकरा स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली।सबसे पहले द्रोणाचार्य पुरस्कार हासिल करने वाले प्रशिक्षकों में से एक और इस साल पदमश्री पुरस्कार पाने वाले नांबियार को लगभग एक सप्ताह पहले अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इसके बाद हालांकि उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी थी। नांबियार पर्किन्सन की बीमारी से पीड़ित थे।ऊषा ने बताया कि उन्हें 10 दिन पहले दिल का दौरा पड़ा था। उन्होंने इसे निजी क्षति करार दिया। उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘यह मेरे लिये बहुत बड़ी क्षति है। वह मेरे लिये पिता समान थे और यदि वह नहीं होते तो मैं इतनी उपलब्धियां हासिल नहीं कर पाती। नीरज चोपड़ा के ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद मैं पिछले सप्ताह ही उनसे मिली थी। मैं क्या बोल रही हूं वह समझ रहे थे लेकिन वह बात नहीं कर पा रहे थे। ’’पूर्व वायु सैनिक नांबियार ने कोच के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान ऊषा सहित कई अंतरराष्ट्रीय एथलीट तैयार किये। ऊषा लॉस एंजिल्स ओलंपिक 1984 में मामूली अंतर से कांस्य पदक से चूक गयी थी। ऊषा ने बाद में भी अपने कोच से करीबी संपर्क रखा था और वह पिछले सप्ताह ही उन्हें यह बताने के लिये गयी थी भाला फेंक के एथलीट चोपड़ा ने तोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता है।ऊषा के अलावा उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाले जिन एथलीटों को तैयार किया उनमें शाइनी विल्सन (चार बार की ओलंपियन और 800 मीटर में 1985 की एशियाई चैंपियनशिप की स्वर्ण पदक विजेता) और वंदना राव प्रमुख हैं।नांबियार का जन्म 1932 में कन्नूर में हुआ था। बाद में वह वायुसेना से जुड़ गये थे जिसमें उन्होंने 15 वर्ष तक सेवा की। वह 1970 में सार्जेंट के पद से सेवानिवृत हुए थे। उन्होंने राष्ट्रीय खेल संस्थान पटियाला से कोचिंग में डिप्लोमा लिया और सेना के एथलीटों को प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया।पदम श्री के लिये चुने जाने पर नांबियार ने कोझिकोड में अपने आवास पर पीटीआई से बातचीत में कहा था, ‘‘यह पुरस्कार पाकर मैं खुश हूं हालांकि यह मुझे काफी पहले मिल जाना चाहिए था लेकिन मैं तब भी खुश हूं। कभी नहीं से देर भली।’’ऊषा को 1985 में पदम श्री से सम्मानित किया गया था जबकि नांबियार को उस वर्ष द्रोणाचार्य पुरस्कार मिला था। उन्हें देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने के लिये अगले 36 वर्षों तक इंतजार करना पड़ा। उन्होंने कहा था कि जब ऊषा लॉस एंजिल्स में पदक से चूक गयी थी तो वह लगातार रोते रहे।नांबियार ने 1968 में कोचिंग का डिप्लोमा लिया था और वह 1971 में केरल खेल परिषद से जुड़े थे। ऊषा ने 1977 में एक चयन ट्रायल में दौड़ जीती थी जिसके बाद नांबियार ने उन्हें प्रशिक्षित किया था।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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