रानी झांसी से पहले इस रानी ने भी किए थे अंग्रेजों के दांत खट्टे, मरने के बाद भी नहीं आई दुश्मन के हाथ

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: December 26, 2017 05:24 PM2017-12-26T17:24:29+5:302017-12-27T09:47:45+5:30

एक ऐसी रानी की कहानी जिसने झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की तरह ही अंग्रेजों की चुनौती को स्वीकारा और अपनी अंतिम सांस तक संघर्ष किया

History of Rani Avanti Bai | रानी झांसी से पहले इस रानी ने भी किए थे अंग्रेजों के दांत खट्टे, मरने के बाद भी नहीं आई दुश्मन के हाथ

रानी झांसी से पहले इस रानी ने भी किए थे अंग्रेजों के दांत खट्टे, मरने के बाद भी नहीं आई दुश्मन के हाथ

सन् 1857, यह तब की बात है जब भारत के एक बड़े हिस्से पर अंग्रेजों का राज था। कई राज्यों पर वे अपनी हुकूमत का झंडा लहरा चुके थे और अभी भी कई ऐसे राज्य थे जो उनके निशाने पर थे। लेकिन यही वो समय था जब भारत को अपने स्वतंत्रता सैनानी मिले। कई वीरों ने आगे बढ़कर अंग्रेजों के साथ मुकाबला किया और उन्हें भारत से बाहर करने की हर पुरजोर कोशिश की। 

लेकिन सिर्फ वीर ही नहीं, इस दौरान कई वीरांगनाएं भी सामने आईं जिनमें सबसे अधिक नाम  झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का ही लिया जाता है। आम जनमानस के बीच झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की कहानी सबसे अधिक प्रसिद्ध है लेकिन इनके अलावा भी भारतीय इतिहास को वीरांगनाएं हासिल हुई थीं जिनमें से एक थीं 'अवंतीबाई'।

यह बात रानी लक्ष्मी बाई से भी पहले की है। ये कहानी उस बहादुर रानी की है जो रानी लक्ष्मी बाई की तरह ही अपने राजा को खो चुकी थी लेकिन अंग्रेजों के सामने घुटने टेकना उसे गवारा नहीं था। वो आखरी सांस तक लड़ती रही और उसकी लाश भी अंग्रेजों के हाथ ना लगी। 

तत्कालीन उत्तर प्रदेश में एक छोटा सा जिला है अमोढ़ा, एक जमाने में इसे राजा 'जालिम' की सियासत कहा जाता था। वैसे ये केवल नाम के ही जालिम थे। कम उम्र में ही राजा की निः संतान मृत्यु हो गई। जाते-जाते वे पीछे छोड़ गए अपनी रानी 'अवंतीबाई' और एक बड़ी प्रजा जिसपर अंग्रेजी सरकार अपनी पैनी नजर जमाए बैठी थी। 

राजा के जाने के बाद रानी पर राज्य और प्रजा की जिम्मेदारी आ गई। अभी रानी अपनी प्रजा और राज्य को ज्यों-त्यों संभालने में ही लगी थी कि उधर से अंग्रेजों ने धावा बोल दिया। रानी भी घबराई नहीं, उसने सेना तैयार की और खुद भी अपना घोड़ा लेकर उतर गई मैदान-ए-जंग में। 

रानी खूब बहादुरी से तब तक लड़ती रही जब तक उनका घोड़ा घायल होकर मर गया। इसके बाद रानी के सामने बड़ी चुनौती थी, लेकिन उसने हार ना मानी। अब रानी को अंग्रेजी सैनिकों ने चारों तरफ से घेर लिया। लेकिन रानी ने भी कसम खा राखी थी कि वो अंग्रेजों के हाथ नहीं लगेगी। 

रानी ने अपने वफादार सैनिकों से कहा कि अंग्रेज उन्हें हर हालत में जिंदा या मुर्दा पाना चाहते हैं, लेकिन इससे पहले वो अपनी तलवार से खुद ही अपना गला रोंदकर मुक्त हो जाएंगी। उनकी लाश भी अंग्रेजों के हाथ ना लगे इस बात का रानी ने अपने सैनिकों से वादा मांगा।

रानी ने जो कहा वो करके दिखाया। आखिरकार 2 मार्च, 1858 को रानी ने अपनी कटार से खुद को मार दिया और फिर वादे के मुताबिक उनके सैनिकों ने उनकी लाश अंग्रेजों से छिपाते हुए ठिकाने लगाई। 

तो ये थी उस रानी की कहानी जो रानी लक्ष्मी बाई की तरह हर बच्चे-बड़े की जुबान पर तो ना चढ़ पाई लेकिन इतिहास के पन्नों में बड़े अक्षरों में दर्ज है इनका नाम। हजारों तोपों से खंडहर हो चुका इनका महल उस जंग का गवाह है जिसे उत्तर प्रदेश के अमोड़ा में देखा जा सकता है।

Web Title: History of Rani Avanti Bai

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