Maharashtra Assembly Election 2019: आगामी विधानसभा चुनाव में जाति समीकरण का नहीं काम
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 7, 2019 08:05 IST2019-09-07T08:05:19+5:302019-09-07T08:05:19+5:30
इस बार चुनाव प्रचार की अपेक्षा चुनावी रणनीति ज्यादा महत्वपूर्ण बन गई है. इसकी प्रमुख वजह यह बताई जा रही है कि कांग्रेस और राकांपा के नए नेताओं को उम्मीदवार बनाने से सत्तारूढ़ भाजपा-शिवसेना को कई जगह सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है.

Maharashtra Assembly Election 2019: आगामी विधानसभा चुनाव में जाति समीकरण का नहीं काम
वेंकटेश केसरी
महाराष्ट्र के आगामी विधानसभा चुनाव में इस बार जाति समीकरण निर्णायक कारक नहीं रहेगा. 1960 में राज्य की स्थापना के बाद पहली बार ऐसा होगा. इसके पूर्व सभी बड़े दलों के लिए जातिगत समीकरण चुनाव जीतने और हारने की बड़ी वजह हुआ करते रहे हैं.
पूर्व में मराठा, मुस्लिम और दलित समुदाय का समन्वय कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक रहा, परंतु 1978 के चुनाव में यह वोट बैंक खिसक गया. राज्य में दूसरा बड़ा बदलाव 1990 के चुनाव में तब सामने आया जब मंडल कमीशन की रिपोर्ट की पृष्ठभूमि के विरोध में मतदान किया गया.
भाजपा और शिवसेना ने संयुक्त रूप से ओबीसी और असंतुष्ट मराठा समुदाय को अपने पाले में करने का प्रयास कर राजनीतिक जमीन तैयार की. इसी समय पीडब्ल्यूपी, जनता परिवार और कम्युनिस्ट पार्टियां कमजोर पड़ने लगीं और हिंदुत्व के मुद्दे ने जोर पकड़ा शुरू किया. इसी दौर में कांग्रेस-राकांपा तथा भाजपा-शिवसेना करीब आए और आघाड़ी और युति की नींव पड़ी.
इस बार हालात बदल गए हैं. सत्तारूढ़ भगवा साङोदारों को स्थापित और साधन संपन्न मराठा नेताओं को पार्टी में प्रवेश देने के बाद अब ओबीसी वर्ग का भरोसा जीतने में काफी पापड़ बेलने पड़ेंगे. उधर कांग्रेस और राकांपा के पास तो युवा पीढ़ी को आगे बढ़ाकर मुकाबले को युवा बनाम बुजुर्ग नेता का बनाने का भी वक्त नहीं बचा.
फिलहाल कांग्रेस को राज्य में अपने नेताओं को ही साधकर रखने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है तो भाजपा चुनावी संग्राम के लिए शिवसेना पर निर्भर नहीं रह गई है और महाराष्ट्र को शत-प्रतिशत भाजपा राज्य बनाने में जुटी है. शिवसेना की स्थिति यह है कि वह अपने बूते पर राज्य में चुनाव नहीं जीत सकती,वहीं भाजपा ने सीट बंटवारे को लेकर शिवसेना के आगे झुकने से इनकार कर दिया है.
प्रचार की अपेक्षा रणनीति ज्यादा महत्वपूर्ण
इस बार चुनाव प्रचार की अपेक्षा चुनावी रणनीति ज्यादा महत्वपूर्ण बन गई है. इसकी प्रमुख वजह यह बताई जा रही है कि कांग्रेस और राकांपा के नए नेताओं को उम्मीदवार बनाने से सत्तारूढ़ भाजपा-शिवसेना को कई जगह सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है. अगर चुनाव प्रचार की बात की जाए तो कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जैसे कई स्टार प्रचारक हैं.