अनिल भंडारी
''खेत में फसल नहीं होती, फसल होती है तो बारिश खाने नहीं देती. पसेरीभर अनाज घर में नहीं आया तो बच्चे क्या खाएंगे? सब बर्बाद हो गया. ऐसा लगता है कि मैं मर जाऊं तो अच्छा, लेकिन मुझे मरना नहीं है.'' रुंधे गले से यह सब कहते हुए उखंडा पिट्ठी क्षेत्र की पार्वती कदम फफक-फफक कर रोने लगीं और उनकी हालत देखकर हम भी स्तब्ध हो गए. उन्होंने कहा कि मैं, 'बच्चों को ढांढस बंधा रही थीं कि 'धूप निकलेगी तो सब सूख जाएगा. अंकुर फूटे हुए बाजरे के दाने दिखाते हुए कहा, 'देखो क्या सूखा, सब तो उग आए हैं' और फिर रोने लगीं.
मूसलाधार बारिश से बर्बाद हो गई बाजरे की फसल को सड़क किनारे सुखा रही पार्वती और उनके पति मारुति कदम चिंताग्रस्त दिखाई दिए. हाथ में फसल बीमा के कागज थे. पार्वती के तीन बेटे हैं. इस परिवार के पास केवल कुछ ही एकड़ खेती है. बारिश से नुकसान होने की खबर सुनकर पुणे में रहने वाला एक बेटा आश्रुबा मिलकर लौट गया. दूसरा बेटा सोमनाथ वाहन चालक था. ब्लड कैंसर हो जाने से उसकी मौत हो गई. तीसरा बेटा परमेश्वर उस्मानाबाद जिले के वाशी में हमाली का काम करता था.
दीवार गिरने से उसके मलबे में दबकर उसकी भी मौत हो गई. पार्वती ने बताया कि वे फसल नुकसान के पंचनामे की लिए आई हैं. इस दौरान उन्होंने प्राकृतिक आपदा की मार ने किस तरह उनको झकझोर दिया, वह आपबीती बताई. भले ही बेमौसम बारिश ने फसलें बर्बाद कर दी हैं, लेकिन उनके मन में जीने का जज्बा अब भी दिखाई दे रहा था.
उखंडा पिट्ठी पहुंचने के बाद एक झोपड़ीनुमा होटल में तुकाराम भोंडवे, लक्ष्मण ठोसर से मुलाकात हुई. इस गांव में सौ से सवा सौ किसान परिवार और जनसंख्या लगभग डेढ़ हजार है. तुकाराम ने कहा की धरती पर बोझ बढ़ गया है. उसका क्या किया जा सकता है. खेत में कुछ भी नहीं बचा. एक डंठल तक नहीं. सोयाबीन भीग गई और उसमें अंकुर फूट आए हैं.
चारों तरफ-तरफ पानी ही पानी. पानी कहां से आया और कहां गया, इसका कुछ पता ही नहीं है. इस बार बारिश अच्छी हुई थी और फसलें भी अच्छी थीं. लेकिन... बेमौसम बारिश ने सब बर्बाद कर दिया. लगभग हाथ में आई हुई फसल निकल गई. अब रोने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है.